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इस मशीन से फसल के अवशेषों से भी मिलेगा ज्यादा पैसा...

आम तो आम गुठलियों के भी दाम। यह कहावत तो आपने अनेकों बार सुनी होगी, मगर हकीकत से वास्ता बहुत कम हुआ होगा। दिल्ली आइआइटी में फिजिक्स इंजीनियरिंग के छात्र रहे अंकुर कुमार ने इस कहावत को व्यावहारिक रूप में सत्य कर दिखाया है। उनके इस आइडिया से किसानों को डबल मुनाफा होगा। किसान खेत में फसल उगाकर पैसे तो कमाएंगे ही, फसल के बचे अवशेष को भी कैश (इस्तेमाल) कर पाएंगे।

आम तो आम गुठलियों के भी दाम। यह कहावत तो आपने अनेकों बार सुनी होगी, मगर हकीकत से वास्ता बहुत कम हुआ होगा। दिल्ली आइआइटी में फिजिक्स इंजीनियरिंग के छात्र रहे अंकुर कुमार ने इस कहावत को व्यावहारिक रूप में सत्य कर दिखाया है। उनके इस आइडिया से किसानों को डबल मुनाफा होगा। किसान खेत में फसल उगाकर पैसे तो कमाएंगे ही, फसल के बचे अवशेष को भी कैश (इस्तेमाल) कर पाएंगे।

बिहार के हाजीपुर के महुआ इलाके के निवासी अंकुर ने ऐसी मशीन बनाई है, जो कृषि संबंधित किसी भी तरीके के अवशेष का पल्प तैयार करने में सक्षम है। फिर उस पल्प से कागज या फिर इको फ्रेंडली कप, प्लेट आदि को भी तैयार किया जा सकता है। अंकुर ने इस मशीन और पल्प बनाने के तरीके का पेटेंट फाइल किया है। आइडिया को दिल्ली-आइआइटी ने दिया अवार्ड.

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अंकुर बताते हैं, बचपन से ही हमें विज्ञान की किताब में रिसाइकिलिंग का तरीका बताया जाता था। मुझे भी शुरू में किसी प्रोडक्ट को रिसाइकल करने में दिलचस्पी थी, मगर आइआइटी में पढ़ाई के दौरान मैंने महसूस किया कि किसी प्रोडक्ट को रिसाइकिलिंग करने से प्रदूषण बहुत अधिक मात्रा में होता है। इंजीनिय¨रग की पढ़ाई के दौरान मैं ऐसी खोज में लगा था, इससे अवशेष को फिर से इस्तेमाल करने लायक बनाया जा सके। हमारी रिसर्च टीम में दिल्ली आइआइटी की छात्रा प्राचीर और कनिका भी शामिल हैं। ये दोनों मेरी बैचमेट हैं। पढ़ाई के दौरान हमारे आइडिया से प्रभावित होकर आइआइटी दिल्ली प्रशासन ने हमें डिजाइन इनोवेशन अवार्ड के लिए चुना है।' 

अंकुर व उनकी टीम के इस आइडिया को प्रमोट करने का मकसद ग्रामीण उद्यमिता को बढ़ावा देना है। साथ ही किसानों को डबल मुनाफा पहुंचाना है। अंकुर बताते हैं, इस मशीन को ग्रामीण इलाके में सेट-अप कर के युवा अच्छी आमदनी कमा सकते हैं। घर बैठे स्टार्ट-अप करने का यह उम्दा आइडिया है।' हालांकि इस मशीन की कीमत करीब 35 लाख रुपये है, जिसे बैंक से फाइनेंस कर खरीदा भी जा सकता है। मशीन से एक बार में करीब आधा टन पल्प तैयार किया जा सकता है। इस मशीन के डंप जोन में किसी भी तरह का कृषि अवशेष डाला जा सकता है। पुआल, केले का तना, ईख के पत्ते या रेसे, घास, जूट और खर-पतवार आदि से भी पल्प तैयार किया जाता है।

सूचना : किसान भाइयों अगर आपको कृषि सम्बंधित कोई भी जानकारी चाहिए, या आपके साथ कुछ गलत हुआ है, जिसे आप औरों के साथ साझा करना चाहते है तो कृषि जागरण फोरम में रजिस्टर करें.

अंकुर बताते हैं, जिस मशीन के कृषि अवशेष का पल्प तैयार होगा उसे किसान या उद्यमी चाहे तो बाजार में खुद बेच सकते हैं। वे चाहें तो पल्प की मार्केटिंग में हम उनकी सहायता करेंगे। इस पल्प से अच्छी क्वालिटी का राइटिंग पेपर तैयार किया जाता है। इसके अलावा सांचे में डालकर इको फ्रेंडली कप प्लेट भी तैयार किया जाता है।' एक्सपर्ट बताते हैं कि अंकुर के इस आइडिया से पर्यावरण को बहुत फायदा होगा। पंजाब, हरियाणा और अब तो बिहार में भी किसान खेत में ही अवशेष को जला देते हैं। इससे पर्यावरण को नुकसान तो पहुंचता ही है, खेत की उर्वर क्षमता पर भी असर पड़ता है। अंकुर व उनकी टीम आइआइटी-दिल्ली से इंजीनिय¨रग की पढ़ाई करने के बाद प्लसेमेंट ऑफर को ठुकराकर इस आइडिया को धरातल पर उतारने में लगी है।

English Summary: This machine will also get more money from crop residues ... Published on: 11 May 2018, 12:19 AM IST

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