जिन मधुमक्खियों को देखते ही आप उन्हें मारने के लिए दौड़ते हैं, उन्हें बचाने के लिए अपनी लाखों रुपयों की नौकरी छोड़ पुणे का एक आईटी इंजीनियर पिछले चार सालों से जुटा हुआ है। वह शख्स न सिर्फ शहरी इलाकों में मधुमक्खियों की जान बचाता है बल्कि उनके रहने के लिए एक आर्टिफिशियल बॉक्स नुमा घर भी देता है।
हम बात कर रहे हैं रायपुर में पैदा हुए और वर्तमान में पुणे में रह रहे 32 वर्षीय इंजीनियर अमित गोडसे की। आज से चार साल पहले तक अमित एक बड़ी आईटी कंपनी में लाखों की सैलरी पर नौकरी कर रहे थे।
बात वर्ष 2013 की है। अमित जिस सोसाइटी में रहते थे, उसमें मधुमक्खियों ने एक बड़ा छत्ता बनाया था। सोसाइटी के लोग उनसे डरते थे और एक दिन उन्होंने पेस्ट कंट्रोल करने वालों को बुलाया और सभी मधुमक्खियों को मार डाला।
अमित ऑफिस से लौटे तो उन्हें जमीन पर सैकड़ों मधुमक्खियां मरी हुई नजर आईं। इस घटना ने उन्हें अंदर से झकझोर कर रख दिया और इसी दिन अमित ने तय किया कि चाहे जो भी हो जाए वे अब मधुमक्खियों को बचाने के लिए काम करेंगे।
अमित ने इसके बाद मधुमक्खियों को लेकर लोगों को जागरूक करने का काम शुरू किया। उन्होंने लोगों को बताया कि कैसे यह बिना नुकसान पहुंचाए इंसानों की सहायता करती हैं।
उन्होंने अपनी बात प्रभावी ढंग से रखने के लिए 'बी बास्केट' नाम का सोशल एंटरप्राइज शुरू किया। अब इस संस्था से अमित के साथ 5 अन्य लोग भी जुड़ चुके हैं।
धीरे-धीरे अमित का काम बढ़ने लगा और उन्हें लगा की उनकी नौकरी उनके काम में बाधा बन रही है। एक दिन अचानक अमित ने अपनी लाखों रुपयों की सैलरी वाली नौकरी को अलविदा कहा और पूरी तरह से मधुमक्खियों के संरक्षण में जुट गए।
मधुमक्खियों को स्थानान्तरित करने के लिए अमित एक घर या सोसाइटी से सिर्फ 1000 से 2 हजार रुपए चार्ज करते हैं। अमित बताते हैं कि अपने इस प्रयास को आगे बढ़ाने के लिए अमित यह सहायता राशि लेते हैं।
इसके अलावा वे ट्रेनिंग देने के लिए भी कुछ पैसे चार्ज करते हैं। इन पैसों से वे अपना खर्च चलाते हैं।अमित को लोग अपने घरों, पेड़ों और गार्डन में रह रही मधुमक्खियों को रीलोकेट करने के लिए बुलाते हैं। वे अपनी टीम के साथ वहां पहुंचते हैं और मधुमक्खियों को भगाने या मारने की जगह वहां उनके लिए एक बॉक्स नुमा डार्क रूम तैयार करते हैं।
मधुमक्खी पालन में इस्तेमाल होने वाले बॉक्स में छत्ते को फ्रेम मैं लगा दिया जाता है और मक्खियां और रानी मक्खी को छोड़ दिया जाता है। रानी मक्खी की गंध से सभी मधुमक्खियां उस बक्से मैं आ जाती है।
अमित बताते हैं कि, "इससे उन्हें एक आर्टिफिशियल घर भी मिल जाता है और लोग इन्हें मारने या भगाने का प्रयास भी नहीं करते हैं।"
अमित ने बताया,"भारत में 4 प्रकार की देशी मधुमक्खियां पाई जाती हैं। इनमें तीन प्रकार की मधुमक्खियों को रीलोकेट किया जा सकता है। कुछ मक्खियां अंधेरे में छत्ता बनाती है। जिनको एपीस सीराना इंडिका कहते है। जिनको हम पकड़ के बॉक्स में रखकर मधुमक्खी पालन कर सकते हैं। कुछ मक्खियों को एपीस फ्लोरिया कहते है, इन्हें रीलोकेट किया जा सकता है। इन मक्खियों को छत्ता बनाने के लिए सनलाइट की आवश्यकता होती है। एक एपीस डोरसता जो दुनिया की सबसे बड़ी मधुमक्खी कही जाती है, इसे पाला नहीं जा सकता। इन मक्खियों के छत्ते से कई बार शहद निकला जा सकता है, बिना उनको मारे या फिर जलाये।"
मधुमक्खियों के संरक्षण के लिए अमित ने सेंट्रल बी रिसर्च एंड ट्रेनिंग इंस्टिट्यूट से ट्रेनिंग ली है।
अपने काम को और अधिक निपुणता से करने के लिए अमित ने गांवों और जंगलों में घूम-घूम कर आदिवासियों से खास तकनीक सीखी है। अब तक 800 छत्तों से मधुमक्खियों को रीलोकेट किया।
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