तेल वर्ष 2017-18 के दौरान भारत के सोयाबीन निर्यात में 15 प्रतिशत की गिरावट हुई है. घरेलू बाजार में कीमतें अधिक होने के चलते पिछले साल के 2 मिलियन टन के मुकाबले में इस बार महज 1.7 मिलियन टन सोयाबीन का ही निर्यात हुआ है.
सोयाबीन प्रोसेसर एसोसिएशन ऑफ इंडिया (एसओपीए) ने उच्च घरेलू कीमतों को निर्यात में गिरावट के लिए जिम्मेदार ठहराया.
इसके अलावा, सोयाबीन का उत्पादन तेल वर्ष के दौरान 6.6 मिलियन टन था जोकि पिछले साल के मुकाबले कम था. पिछले साल भारतीय सोयाबीन के बड़े खरीदारों में फ्रांस और जापान थे.
हालांकि, निर्यातक मौजूदा तेल वर्ष 2018-19 में चीन और ईरान जैसे देशों में इसकी मांग बढ़ने की उम्मीद जता रहे हैं. वर्तमान खरीफ सीजन में तिलहन के उत्पादन में इस साल बढ़ोतरी भी देखी जा रही है. निर्यातकों ने कहा कि अमेरिका और चीन के बीच चल रहे टैरिफ युद्ध और ईरान पर लगाए गए अमेरिकी प्रतिबंधों से भारतीय सोयाबीन की मांग बढ़ सकती है.
एसओपीए का अनुमान है कि इस मौसम में सोयाबीन उत्पादन 11.5 मीट्रिक टन होगा. मध्यप्रदेश, राजस्थान और महाराष्ट्र के प्रमुख उत्पादक क्षेत्रों में इस साल अनुकूल मौसम के साथ उच्च कृषि ने तिलहन की फसल के लिए संभावनाओं को बढ़ा दिया है.
मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र और कर्नाटक में नई फसल का बाजार शुरू हो चुका है. सितंबर के दौरान कुल दो लाख टन सोयाबीन ख़रीदा गया था. वर्तमान में एमपी के विभिन्न बाजारों में सोयाबीन की कीमतें 2,750 रुपये और 3,000 रुपये प्रति क्विंटल के बीच हो रही हैं, जो न्यूनतम समर्थन मूल्य 3,39 9 रुपये से कम है.
रोहताश चौधरी, कृषि जागरण
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