क्या आप जानते हैं की जो जूता आप आजकल पहनते हैं यह आपके पैर तक कैसे पहुंचा ? जब आप बाजार में जाते हैं तो जूता खरीदने से पहेले उसमे क्या क्या देखते हैं ? जूता आकर्षक हो, रंग-रूप अच्छा हो, और सबसे बड़ी जरूरत की वह कम्फर्टेबले भी हो.
अभी इसी महीने अक्टूबर में हाफ मैराथॉन भी होने वाला है. इसमें आप देखेंगे की धावक रंग बिरंगे जूते पहने बड़े आराम से दौड़ रहे हैं. चहरे पर थकान का कोई नामोनिशान नहीं. पैरों को आराम हो तो आदमी चलता ही नहीं, दौड़ भी सकता है. दौड़ में जीत कोई मायने नहीं रखती और यह बात सर्वोपरि है की जूता कम्फर्टेबले हो.
एक कहानी है की एक राजा एक बार कहीं जा रहे थे, रास्ते के कंकड़-पथरों की वजह से पैरों को बहुत नुकसान हुआ. राजा बहुत परेशान हुआ और उसने घोषणा करवा दी की जमीन पर चमड़ा बिछवा दिया जाये.
एक राज दरबारी ने सलाह दी की जमीन पर चमड़ा बिछवाने की बजाये यदि पैरों को चमड़े से लपटे कर चला जाये तो पैर सुरक्षित रहेंगे.
यह था जूता बनाने का पहला आईडीया.
आज हम सभी जूते पहनते हैं कभी इसके बारे में ये नही सोचा की इसका भी बहुत बड़ा अविष्कार था जूता पैरों में पहनने की एक ऐसी वस्तु है और जूतों का काम कोई काम करते या न करते समय इंसानों के पैर की रक्षा करना और उसे आराम पहुंचाना है और सर्दी गर्मी से पैरों को बचाना जूते ड्रेस का भी एक पार्ट है जिसका उपयोग एक फैशन की वस्तु के रूप में भी किया जाता है और जूतों के अंदर समय-समय पर डिजाइन व रंग-रूप में अत्यधिक परिवर्तिन हुआ है,
और समय-समय पर फैशन के हिसाब से डिजाइन तत्वों को सेलेक्ट किया है और इनके अच्छे फैशन और जूते लगने वाले मटेरियल से और इसकी लागत से इसकी कीमत सेलेक्ट होती है पहले जूते चमड़ा, लकड़ी या कैनवास से बनाए जाते रहे हैं लेकिन अब रबर, प्लास्टिक और अन्य पेट्रोरसायन सामग्री से बनाए जाने लगे हैं क्योकि चमड़ा, ज्यादा कीमत का था जिससे जूते की कीमत ज्यादा होती है और इनकी बिक्री भी कम होती है इसलिए रबर, प्लास्टिक और अन्य पेट्रोरसायन सामग्री से बनाए जाने लगे हैं.
पहले अधिकांश लोगों द्वारा जूते नहीं पहने जाते थे क्योंकि वे खरीदने में समर्थ नहीं थे लेकिन हाल के वर्षो में बड़ी संख्या में उत्पादन होने से जूतों के सस्ती दर पर उपलब्ध होने से, जूते पहनने का चलन हो गया है.
जान लें की सबसे पहले जूते सैंडल लगभग 7000 या 8000 ईसा पूर्व से पहले के हैं, जो सन ,1938 में ओरेगन के यूएस राज्य में फोर्ट रॉक गुफा में पाए गए थे और दुनिया का सबसे पहला जूता चमड़े का जूता था जो आर्मेनियाकी एक गुफा में पाया गया है.
एरिक ट्रिंकौस एक भौतिक मानवविज्ञानी हैं उन्हें इस बात का सबूत मिला है कि जूतों का उपयोग आज से 40,000 से 26,000 वर्ष पूर्व के बीच शुरु हुआ था सबसे पहले जूते के डिजाइन बिलकुल सिंपल होते थे और पैरों की चट्टानों, मलबे और ठंड से रक्षा करने के लिए चमड़े से जूते बनाये जाते थे.
इसलिए उनका उपयोग ठंड के मौसम में अधिक था और सन ,1800 के आसपास तक, जूते बाएं या दाएं पैर का भेद किए बिना बनाए जाते थे दोनों पेरो के जूते समान बनाये जाते थे उत्तरी अमरीका में बहुत से मूल निवासी एक समान प्रकार के जूते पहनते थे, जिन्हें मोकासिन कहा जाता था. ये तंग-उचित, मुलायम हलके जूते हैं.
17वीं सदी से, चमड़े के जूतों में सिले हुए तले का ज्यादा उपयोग किया जाता था जिन्हें बेहतर क्वालिटी के जूते माने जाते थे और 20वीं सदी के बाद चमड़े से बने जूते ज्यादा कीमत के होने लगे और बदलते फैशन के कारण अलग-अलग तरह के जूते बनाने के 20वीं सदी के बाद से, रबर, प्लास्टिक, सिंथेटिक कपड़ा के जूते बने लगे.
अभी जो जूता वर्तमान में चल रहा है यह सन,1933 में इंग्लैंड में प्रचलित हुआ और पहले महिला और आदमी के लिए सभी जूते समान होते थे सन 1840 में महिलाओं के लिए अलग जूते बनाये गये और पहला जूता महारानी विक्टोरिया के लिए बनाये गये और दिन भर फैशन के हिसाब से जूतों में बदलाव हो रहे हैं आज बजार में जूतों की भरमार है और आज जूतों की जरूरत सभी को है इसलिए हर किसी के हिसाब से कंपनी ने जूते बनाये हैं ताकि सभी जूते पहन सके.
आज बहुत सी कंपनी जूते बना रही है जैसे ; Nike, Adidas ,Sports Action, और बहुत सी कंपनी बजार में आई हुई है और आज काम के हिसाब से जूते पहने जाते है जैसे ; कही जाना हो नया और फैशन वाला जूता और खेलने जाना हो तो स्पोर्ट्स जूता और कहीं काम पर जाना हो तो उनके लिए सभी के लिए अलग-अलग जूते होते हैं.
एशियन गेम्स यूं तो जीता गया हर मेडल अपने आप में बेहद खास है लेकिन भारत की एथलीट स्वप्ना बर्मन ने हेप्टाथलन में गोल्ड जीत जीतकर जो इतिहास रचा है उसके पीछे की कहानी जानकर आप स्वप्ना के जज्बे को सलाम किए बिना नहीं रह सकते.
यह पहला मौका था जब एशियाड में भारत को इस इवेंट में गोल्ड मेडल हासिल है. हेप्टाथलन को एथलेटिक्स में सबसे कठिन मेडल माना जाता है क्योंकि इसमें जीत हासिल करने के लिए सात इवेंट्स में अव्वल आना पड़ता है.
एक बेहद गरीब पृष्ठभूमि से आने वाले स्वप्ना के लिए यही मुसीबत काफी नहीं थी. उनकी सबसे बड़ी समस्या तो उनके खुद के पैर हैं. जिनके दोनों पंजों में छह-छह उंगलियां हैं. पंजे की अतिरिक्त चौड़ाई के चलते ऐसी स्थिति में उनके लिए सामान्य जूतों का फिट आना बेहद मुश्किल काम है. ऐसे हालात में एथलीट के लिए खास किस्म के जूते बनाए जाते हैं जिनका खर्चा उठा पाना पाना स्वप्ना के बस से बाहर की बात थी.
बहरहाल कुछ सामाजिक संगठनों की मदद से स्वप्ना ने अमेरिका से ऐसे खास जूते मंगाकर अपना ट्रेंनिंग का आगाज किया जिसका अंजाम जकार्ता में गोल्ड मेडल के साथ हुआ है.
उम्मीद है इस मेडल के बाद स्वप्ना को नौकरी भी मिलेगी और उन्हें अपने जूतों के लिए किसी पर निरभर नहीं होना पड़ेगा.
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1. पुरष जूता और महिला जूता अलग अलग मिलेगा
2. कुछ लोगों को कूपन मिलेगा और वह डिस्काउंटेड रेट पर जूता ले सकते हैं.
सवाल इस प्रकार है
1. जूता कब और कहाँ शुरू हुआ?
2. किस रंग का जूता अच्छा होता है?
3. जूता खरीदते समय इसमें क्या देखना चाहिए?
4. किसान कौन सा जूता पहनते हैं?
5. स्कूल, कॉलेज जाने वाले विद्यार्थी कैसे जूते पहनते हैं?
6. आपके क्षेत्र में जूते की कितनी दुकाने हैं?
7. जूते को अगर आप नाम देंगे तो क्या नाम देंगे!
8. महिलाएं जूता खरीदते समय उसमे क्या देखती हैं?
9. जूते कितनी तरह के होते हैं
10. जूता कब पहना जाता है?
आप अपने जवाब सोशल मीडिया दवारा भी दे सकते हैं. मेल कर सकते हैं, व्हाट्सएप कर सकते हैं, इंस्टाग्राम पर भी इसका जवाब भेज सकते हैं. अपना नाम, फ़ोन नंबर, ईमेल और एड्रेस जल्दी से भेजें. लक्की ड्रॉ के दवारा भी जूता मिल सकता है.
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