देश के कई इलाकों में लगातार हो रही बारिश की वजह से अधिकतर जगहों का जलस्तर काफ़ी ऊपर आ चुका है. बिहार समेत कई ऐसे राज्य हैं, जिनको प्राकृतिक कहर झेलना पड़ रहा है. जलजमाव की वजह से किसानों को भारी नुकसान उठाना पड़ा है.
हरियाणा में भी ऐसे ही हालात पैदा हो गए हैं. भारी बारिश की वजह से सबसे ज्यादा नुकसान कपास (कॉटन) की फसल को हुआ है. जो थोड़ी बहुत जो फसल बची थी, वो भी गुलाबी सूंडी कि चपेट में आ चुकी हैं. जिन एरिया में 15 क्विंटल तक प्रति एकड़ कपास की पैदावार होती थी, वहां पर इस बार पैदावार महज 4 से 5 क्विंटल पर थम गई है.
हालात इतने खराब हो गए हैं कि बेकाबू गुलाबी सूंडी से पीछा छुड़वाने के लिए किसानों ने खड़ी कपास की फसल पर ट्रैक्टर चलाने शुरू कर दिए हैं. किसानों कि इस मनोदशा को देख सभी परेशान हैं. एक के बाद एक परेशानियों का पहाड़ किसानों पर टूटता जा रहा है. हिसार, फतेहाबाद, सिरसा, भिवानी और जींद जिले के क्षेत्रों में गुलाबी सूंडी की दस्तक ने वैज्ञानिकों की भी चिंता बढ़ा दी है, क्योंकि किसी भी कीटनाशक का असर भी सूंडी पर नहीं हो पा रहा.
जिसको लेकर किसान के बीच डर और परेशानी दोनों बढ़ती जा रही है. हिसार जिले में कुल 1 लाख 50 हजार हेक्टेयर में से लगभग 30 हजार हेक्टेयर में कपास की फसल पर गुलाबी सूंडी का प्रकोप है. इससे उत्पादन और गुणवत्ता पर सीधा असर होगा. फसलों में आई ख़राबी की वजह से किसानों ने सरकार से मुआवज़े की मांग की है. किसानों का कहना है ये प्राकृतिक आपदा है. ऐसे में किसानों के पास सरकार को छोड़ और कोई दूसरा रास्ता नहीं है. अब अगर सरकार उनकी मदद नहीं करेगी, तो लागत भी निकाल पाना किसानों के लिए चुनौती साबित होगा.
3 वर्ष पहले भी गुलाबी सूंडी ने दी थी दस्तक
आज से लगभग 3 वर्ष पहले गुजरात और कर्नाटक में गुलाबी सूंडी का मामला सामने निकल कर आया था. जिसके बाद कपास उत्पादक किसानों और व्यापारियों की चिंताएं इसी तरह बढ़ गई थीं. इस बार जिले में उकलाना, बरवाला और नारनौंद के कुछ क्षेत्रों में अभी तक गुलाबी सूंडी का प्रकोप देखा गया है. एचएयू के वैज्ञानिकों ने गुलाबी सूंडी की दस्तक पर चिंता जताते हुए किसानों और व्यापारियों को सावधान रहने की चेतावनी दी है.
कैसे बढ़ा सूंडी का प्रकोप
संदेह है कि रुई की नत्थी करने वाले कारखानों से गुलाबी सूंडी का प्रकोप बढ़ा था. फैक्ट्रियों में दक्षिणी भारत से सस्ती रुई आती है. इनके माध्यम से गुलाबी सूंडी के प्रदेश में पनपने की आशंका व्यक्त की है. किसानों से लेकर छोटे-बड़े व्यापारियों ने इसके इलाज की मांग सरकार से कर रहे हैं. सरकार ने इस पर अभी कोई भी बयान नहीं दिया है. आने वाले दिनों में ये संभव हो पाएगा की इस इसके प्रभाव कैसे रोका जाए.
कैसे पनपता है सूंडी ?
एक बार क्षेत्र में सूंडी की दस्तक के बाद बनछटी में सूंडी का प्यूपा पनपता है, यानी 3-4 माह में यह सुप्त अवस्था में होती है. फरवरी-मार्च में पतंगे बनकर उड़ती है और अंडे देती है, इससे फिर सूंडी बनती है. जो कपास के पौधे लगने के बाद फूल के अंदर चली जाती है. इसके बाद टींडा बनता है तो यह अंदर घुस जाती है, और टींडा बंद हो जाता है. इसलिए खेत में फसल इकट्ठा करने की बजाय गांव में प्लाटों में रखें. अगर खेत मे ही रखनी है तो फरवरी मार्च में स्प्रे करके ढ़क दें, ताकि प्यूपा से पतंगे उड़कर अंडे न दे सकें. इस तरह के समाधान के साथ चाहें तो सावधानी बरती जा सकती है और फसलों को खराब होने से रोका जा सकता है, जब तक इसका पूर्ण समाधान ना निकल कर सामने आ जाए.
गुलाबी सूंडी के कारण कपास की फसल पर संकट लगातार बढ़ता जा रहा है. इसका अभी तक कोई इलाज नहीं है. हालांकि सावधानी रखकर इसे कंट्रोल कर सकते हैं. पिनिंग फैक्टरियों के मालिकों से बैठक करके अपील करेंगे कि मार्च से पहले पिनाई का कार्य पूरा कर लें, ताकि प्यूपा से पतंगे निकलकर न उड़ें. कपास न होने के कारण सूंडी न पनप सके.
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