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वैज्ञानिकों को बनना चाहिए किसानो की आवाज: देवेन्द्र शर्मा

पंतनगर विश्वविद्यालय के स्थापना दिवस के अवसर पर गांधी हाल में आयोजित समारोह में मुख्य अतिथि एवं जाने-माने कृषि विश्लेषक व पत्रकार श्री देवेन्द्र शर्मा ने स्थापना दिवस के अवसर पर दिए गए अपने व्याख्यान में कहा कि देश को आजाद हुए 70 वर्ष से अधिक हो गया तथा देश में 60 से अधिक कृषि विश्वविद्यालय होने के बावजूद भी किसानों की औसतन सालाना आय प्रति वर्ष 50 से 60 हजार रूपए है

प्रेस विज्ञप्ति

गोविन्द बल्लभ पंत कृषि एवं प्रौद्योगिक विश्वविद्यालय पंतनगर

जिला- ऊधमसिंह नगर (उत्तराखंड)

विषय- पूरे कृषि शोध की दिशा को परिवर्तित किए जाने की आवश्यकता - देवेन्द्र शर्मा

पंतनगर विश्वविद्यालय के स्थापना दिवस के अवसर पर गांधी हाल में आयोजित समारोह में मुख्य अतिथि एवं जाने-माने कृषि विश्लेषक व पत्रकार श्री देवेन्द्र शर्मा ने स्थापना दिवस के अवसर पर दिए गए अपने व्याख्यान में कहा कि देश को आजाद हुए 70 वर्ष से अधिक हो गया तथा देश में 60 से अधिक कृषि विश्वविद्यालय होने के बावजूद भी किसानों की औसतन सालाना आय प्रति वर्ष 50 से 60 हजार रूपए है तथा किसान संसाधन और पैसे के आभाव में आत्महत्या कर रहे है. ऐसे में पूरे कृषि शोध को परिवर्तित किये जाने की आवश्यकता है तथा पूरे कृषि परिदृश्य को ठीक किए जाने की आवश्यकता है.  

अपने व्याख्यान में श्री शर्मा ने आगे कहा कि वर्ष 1970 से 2015 के बीच पिछले 45 साल में गेंहू का न्यूनतम समर्थन मूल्य 76 रूपये प्रति कुंटल से बढ़कर 1450 रूपये प्रति कुंटल तक पहुंचा हैं, जिसमें 19 गुना वृद्धि हुई है, जबकि एक सरकारी कर्मचारी के वेतन एवं डीए में 120 से 150 गुना,  विश्वविद्यालय एवं महाविद्यालयों के शिक्षकों के वेतन व डीए में 150 से 170 गुना तथा स्कूलों के शिक्षकों के वेतन व डीए में 280 से 320 गुना वृद्धि हुई है. इसके अतिरिक्त विभिन्न प्रकार के 108 भत्तों में भी काफी वृद्धि हुई है. ऐसे में किसानों को गेंहू का न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) यदि 100 गुना भी दिया जाए तो उसे वर्ष 2015 में लगभग 7600 रूपये प्रति कुंटल होना चाहिए था. श्री शर्मा ने वैज्ञानिकों से आगे कहा कि उन्हें किसान की आवाज बनना चाहिए नहीं तो समय आने पर किसान भी उनका साथ छोड़ देंगे. उन्होंने मस्तिष्क को उद्वेलित करने वाले अपने व्याख्यान में ‘तकनीक की राजनीति’ के बारे में विस्तृत रूप से बताते हुए केंचुओं को मृदा में नष्ट कर वर्मी कम्पोस्ट के उद्योग को बढ़ावा देने, छिटकाव द्वारा धान बुवाई के बदले ट्रैक्टर उद्योग को बढ़ावा देने हेतु रोपाई विधि से धान की बुवाई किये जाने, देशी, गिर, साहीवाल, राठी और सिंधी गायों इत्यादि के स्थान पर विदेशी गायों को बढ़ावा देने इत्यादि के बारे में बताया तथा पश्चिम की नकल करने के बजाय अपनी शक्तियों को जानने की आवश्यकता बतायी और अपने शिक्षण में आमूलचूल परिर्वतन किये जाने का सुझाव दिया.

इस दौरान श्री देवेन्द्र शर्मा ने विदेशी संस्थाओं द्वारा भारत की कृषि को जानबूझ कर भूखा रखे जाने की मंशा को उजागर करते हुए बताया कि विदेशी संस्थाए ऐसा करके कृषि से जुड़ी अधिकतर जनता को गांवों से पलायन कराकर शहरों के उद्योगों में मजदूरों के रूप में कार्य करने के लिए कर रही है. ताकि कृषि उत्पाद को सस्ता रखकर उद्योगों के लिए मजदूरों उपलब्ध कराया जा सके और आर्थिक विकास को दर्शाया जा सके. उन्होंने इसे कृषि में मैच फिक्सिंग' करार दिया. श्री शर्मा ने उत्पादकता को किसानों की खुशहाली का पैमाना मानने को गलत बताया तथा पंजाब का उदाहरण देकर केवल उत्पादकता पर ध्यान केन्द्रित न किये जाने की सलाह दी. इस दौरान उन्होंने जीडीपी (Gross Domestic Product) में वृद्धि को भी देश के अच्छे हालात का पैमाना समझे जाने के भ्रम का भी पर्दाफाश किया तथा इसको समस्या पैदा करके उसका इलाज किये जाने व उस समस्या से मानव को हो रहे नुकसान के इलाज में पैसे के लेन-देन में हुई वृद्धि से जोड़ा, जैसे कार खरीदने पर तीन बार जीडीपी में वृद्धि होती है, पहली बार कार खरीदने में किये गये व्यय पर, दूसरी बार प्रदूषण बढ़ने पर या उसको कम करने में किये गये व्यय पर तथा तीसरी बार प्रदूषण से पैदा हुई बीमारियों के इलाज पर हुए व्यय पर. श्री शर्मा ने शिक्षण शोध व प्रसार के ढ़ांचे में परिर्वतन के साथ-साथ प्रयोगशाला से खेतों के बजाय खेतों से प्रयोगशाला की ओर ले जाने की जरूरत बताया. इसके साथ ही पारिस्थितिकी का मूल्यांकन करने, नयी आर्थिक योजनाओं पर ध्यान देने, विभागों के बीच में समन्वय स्थापित करने तथा उत्तराखंड सरकार के ग्रीन बजट पर कार्य करने का सुझाव दिया.

इस अवसर पर अपने अध्यक्षीय संबोधन में कुलपति, डा० तेज प्रताप ने कहा कि उत्तराखंड में पलायन को रोके जाने के बजाय वहां पर ऐसी परिस्थितियां बनाये जाने की आवश्यकता है ताकि लोग पलायन न करें. उन्होंने आगे कहा कि विश्व के सभी पर्वतीय क्षेत्रों में एक से हालात है तथा वहां की फसलों पर ध्यान न देकर उन पर विज्ञान थोपा जा रहा है, जिससे उन फसलों के उत्पादन की समस्या हो रही है. उन्होंने वैज्ञानिकों से पर्वतीय क्षेत्रों में स्वयं जाकर वहां की स्थिति को समझने तथा वहां की फसलों पर शोध करने के लिए कहा. डा. प्रताप ने पर्वतीय क्षेत्रों को आनुवंशिकी संसाधनों की खान बताया और कहा कि सार्वजनिक वितरण प्रणाली एवं मनरेगा जैसी सरकारी योजनाओं के बाद खाद्य सुरक्षा मिल जाने से किसान वैज्ञानिकों के साथ मिलकर शोध में रूचि ले सकते हैं, जिसका फायदा उठाया जाना चाहिए. उन्होंने खेती की लागत को कम किये जाने की आवश्यकताओं को भी बताया ताकि किसानों की बचत बढ़ सके. उन्होंने वैज्ञानिकों से नयी तकनीकों जैसे होमा फार्मिंग एवं मृदा जीवाणुओं पर भी ध्यान देने के लिए कहा.

इस अवसर पर कुलपति एवं मुख्य अतिथि द्वारा विभिन्न महाविद्यालयों के उत्कृष्ट विद्यार्थियों को अवार्ड/स्कालरशिप भी प्रदान किया गया. डा0 ध्यान पाल सिंह मैमोरियल एक्सीलेंस अवार्ड 2017-18 गृह विज्ञान महाविद्यालय की प्रियंका गिनवाल को प्रदान किया गया. श्री अमित गौतम मैमोरियल अवार्ड 2017-18 प्रौद्योगिकी महाविद्यालय के पीयूष चैहान को प्रदान किया गया. मेरिट स्कालरशिप फॉर एग्रीकल्चरल इंजीनियरिंग स्टूडेंट 2017-18 प्रौद्योगिकी महाविद्यालय के दीपक त्रिपाठी और अंबुज को दिया गया. श्री वरूण पंवार मैमोरियल अवार्ड 2017-18 कृषि महाविद्यालय के 4 विद्यार्थीयों शुभम मुरडिया, कायनात, श्रेया परिहार एवं रूचि नेगी को प्रदान किया गया. कुलपति डा. तेज प्रताप ने इन सभी विद्यार्थियों को प्रमाण-पत्र एवं अवार्ड/स्कालरशिप के चेक प्रदान किए.

कार्यक्रम के शुरुआत में कुलसचिव, डा. ए.पी. शर्मा ने मुख्य अतिथि, कुलपति एवं सभी उपस्थित अधिकारियों, वैज्ञानिकों, कर्मचारियों एवं विद्यार्थियों का स्वागत किया. कार्यक्रम का संचालन एवं अंत में धन्यवाद ज्ञापन विभागाध्यक्ष कृषि संचार विभाग, डा. एस.के. कश्यप ने किया.

ई-मेल चित्र सं. 1. गांधी हाल में स्थापना दिवस व्याख्यान देते हुए जाने-माने कृषि विषलेषक श्री देवेन्द्र शर्मा

नरेश कुमार, समाचार समन्वयक

विवेक राय, कृषि जागरण 

English Summary: Scientists should be the voice of the farmers: Devender Sharma Published on: 19 November 2018, 11:18 AM IST

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