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दुनिया भर में लोग चाय पीने के शौक़ीन हैं. एक कप चाय बनाने के लिए एक चमच्च चाय -पत्ती से काम चल जाता है लेकिन फिर भी दुनिया में सालाना 3 मिलियन टन चाय का सेवन किया जाता है. चाय आपके लिए फायदेमंद हो सकती है क्योंकि इसमें ऐसे यौगिक पाए जाते हैं जो कोलेस्ट्रॉल कम रखने और ह्रदय रोग के खतरे को कम करने में मदद करते हैं. लेकिन इसके बुरे असर भी होते हैं. दरअसल चाय में कैफीन होता है, जो मस्तिष्क में उत्तेजना बढ़ाने और चिंता व अनिंद्रा जैसी समस्याओं के लिए जिम्मेदार होता है.
कैफीन का परिष्करण करके बनाई गई चाय का सेवन बेहतर हो सकता है लेकिन इसके भी दुष्परिणाम देखने को मिलते हैं. क्योंकि इससे कैफीन को दूर करने के लिए पत्तियों को उच्च दाब पर कार्बन-डाइ-ऑक्साइड में डुबोया जाता है. इस विधि से कैफीन को काम करने में तो मदद मिलती है लेकिन इससे गुणकारी यौगिक नष्ट होने का खतरा रहता है. साथ ही चाय का स्वाद भी खराब हो जाता है.
लेकिन अगर कोई चाय ऐसी हो जिसमें कैफीन की मात्रा भी नगण्य हो और साथ ही जायकेदार व लाभदायक भी हो. वैज्ञानिकों ने चाय की ऐसी ही एक प्रजाति खोज निकालने में सफलता हासिल की है. चीन के एकेडमी ऑफ एग्रीकल्चरल साइंसेज स्थित 'चाय अनुसंधान संस्थान' के लिआंग चेन और जी-कियांग जिन ने दावा किया है कि उन्हें चाय की ऐसी प्रजाति मिल गई है. 'जर्नल ऑफ़ एग्रीकल्चरल एंड फ़ूड केमिस्ट्री' में छपी उनकी रिपोर्ट के मुताबिक चाय की यह प्रजाति दक्षिणी चीन के फ़ुज़ियान प्रांत के जंगलों में पायी जाती है. चेन और जिन का कहना है कि इस प्रजाति की चाय में प्राकृतिक रूप से ही कैफीन की अनुपस्थिति होती है. इसके अलावा इसमें औषधीय गुण भी पाए जाते हैं जो शरीर के लिए फायदेमंद हैं.
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यह इस तरह की पहली खोज नहीं है। 2011 में पड़ोसी गुआंग्डोंग प्रांत में भी एक चाय के एक ऐसे पौधे मिलने का दावा किया गया था जिसमें कैफीन की मात्रा नगण्य होती है. 'कैमेलिया पिलोफिला' नाम के इस पौधे में ऐसे यौगिक पाए जाते हैं जो मोटापा कम करने में कारगर हैं. इस खोज के बाद चीनी कृषि विज्ञानियों को इस तरह के दूसरे पौधे तलाशने के लिए प्रेरित किया। ताजा खोज भी उन्हीं प्रयासों का हिस्सा है.
इस पौधे को स्थानीय रूप से 'हांग्याचा' के नाम से जाना जाता है. यह पौधा समुद्र तल से 700 और 1,000 मीटर की ऊंचाई पर चीनी अल्पाइन गांवों के आस-पास के क्षेत्रों में उगता है. हालाँकि अभी इसका प्रयोगशाला में औपचारिक अध्ययन नहीं किया गया है लेकिन स्थानीय लोगों का दावा है कि यह ठंड और बुखार को ठीक करने तथा पेट दर्द के लिए औषधि का काम करता है.
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डॉ चेन और उनके सहयोगियों ने पुष्टि की है कि हांग्याचा में वास्तव में कैफीन की कमी है. हांग्याचा के आनुवंशिकी के गहन निरीक्षण के बाद, शोधकर्ताओं ने पाया कि कैफीन की अनुपस्थिति, इसके जीन में उत्परिवर्तन का परिणाम है जो कैफीन सिंथेस के नाम से जाना जाने वाले एंजाइम के उत्पादन के लिए उत्तरदायी है.
शोधकर्ता अब हांग्याचा को आगे के अध्ययन के लिए अपने प्राकृतिक आवास में संरक्षित करने के तरीकों की तलाश कर रहे हैं.
रोहताश चोधरी, कृषि जागरण
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