चने की फसल को फली छेदक कीट सर्वाधिक क्षति पहुंचाने वाला कीट है. किसान चना फली छेदक का प्रकोप उस समय समझ पाते हैं जब सुंडी बड़ी होकर चना की फसल को 5-7 प्रतिशत तक नुकसान पहुंचा चुकी होती है.
इसके फलस्वरूप इस अवस्था में चना फली भेदक की सुंडी को नियंत्रण कर पाना काफी कठिन एवं महंगा होता है जिससे किसानों को आर्थिक क्षति होती है. उक्त् जानकारी देते हुए कृषि विज्ञान केंद्र पांती के कार्यक्रम समंवयक डॉ.रवि प्रकाश मौर्य ने किसानों को संबोधित करते हुए कहा कि रसायन आकर्षण जाल (फेरोमोन ट्रैप) चने की फसल में चना फली भेदक की संख्या की निगरानी करने की एक विधि है. इस विधि दुवारा चना फली छेदक के प्रकोप का पूर्वानुमान लगाया जा सकता है, जिससे समय से उपयुक्त फसल सुरक्षा उपाय करके फसल को आर्थिक क्षति से बचाया जा सकता है.
नर पतंगों का इस जाल में होना इस बात का पूर्वज्ञान देता है कि चना फली छेदक के पतंगे वातावरण में मौजूद हैं और आने वाले दिनों में चना फली छेदक का प्रकोप बढ़ सकता है. इस अवस्था में फसल सुरक्षा के उपयुक्त उपाय अपनाना चना फली छेदक कीट के नियंत्रण के लिए आवश्यक होता है. उन्होंने बताया कि टीन या प्लास्टिक की कीप की आकार का होता है, जिसके निचले भाग में एक मोमिया की थैली लगी रहती है.
इस जाल को डंडे से खेत में फसल से दो फीट की ऊंचाई पर लगाया जाता है. डॉ. मौर्य ने बताया कि चना की फसल में इस जाल का प्रयोग 4-5 जाल प्रति हेक्टेयर की दर से करना चाहिए व जाल में फंसे चना फली छेदक के नर पतंगे की नियमित निगरानी करनी चाहिए. जब 4-5 नर पतंगे एक यौन आकर्षण जाल में 4-5 रातों तक लगातार दिखें तो किसानों को फसल सुरक्षा उपायों की तैयारी तुरंत करनी चाहिए. इस जाल में लगे यौन रसायन गुटका या सैप्टा का रसायन 25- 28 दिनों में हवा उड़कर खत्म हो जाता है.
इसलिए समय-समय पर इसको बदलते रहना अति अनिवार्य है. औसतन 4-5 नर पतंगे प्रति गंधपास लगातार 2-3 दिन मिलने पर जैविक कीटनाशी 250 -300 मिली या बीटी की कसर्टकी प्रजाति एक किलोग्राम प्रति 500-600 लीटर पानी मे घोलकर प्रति हेक्टेअर की दर से छिड़काव करें.
साभार
दैनिक जागरण
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