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टीकमगढ़ के वैज्ञानिकों ने किया चने का अवलोकन...

कृषि विज्ञान केन्द्र पन्ना द्वारा राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन के अन्तर्गत चना फसल का समूह अग्रिम पंक्ति प्रदर्शन 30 हेक्टेयर क्षेत्रफल में कृषको के खेतो पर डाले गये है। उनका अवलोकन कृषि महाविद्यालय, टीकमगढ़ के कृषि वैज्ञानिक दल डॉ. एस. पी. सिंह, वरिष्ठ वैज्ञानिक, डॉ. आर. के. प्रजापति, वैज्ञानिक, डॉ. मनीषा श्याम, वैज्ञानिक को डॉ. बी. एस. किरार, वरिष्ठ वैज्ञानिक एवं प्रमुख, डॉ. आर. के. जायसवाल एवं डॉ. आर. पी. सिंह वैज्ञानिको द्वारा भ्रमण कराया गया।

कृषि विज्ञान केन्द्र पन्ना द्वारा राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन के अन्तर्गत चना फसल का समूह अग्रिम पंक्ति प्रदर्शन 30 हेक्टेयर क्षेत्रफल में कृषको के खेतो पर डाले गये है। उनका अवलोकन कृषि महाविद्यालय, टीकमगढ़ के कृषि वैज्ञानिक दल डॉ. एस. पी. सिंह, वरिष्ठ वैज्ञानिक, डॉ. आर. के. प्रजापति, वैज्ञानिक, डॉ. मनीषा श्याम, वैज्ञानिक को डॉ. बी. एस. किरार, वरिष्ठ वैज्ञानिक एवं प्रमुख, डॉ. आर. के. जायसवाल एवं डॉ. आर. पी. सिंह वैज्ञानिको द्वारा भ्रमण कराया गया।

चना प्रदर्शन का वैज्ञानिक दल ने ग्राम- अहिरगुवा में कृषक- श्यामप्रकाश शुक्ला, उमा शुक्ला, राजेन्द्र सिंह यादव, रामरूप तिवारी, इन्द्र सिंह यादव एवं निरंजन कुशवाहा तत्पष्चात् ग्राम पडे़री मे कृषक सुषील त्रिपाठी, गणेश प्रसाद, छोटे लाल जैन, संतोश नामदेव, बिहारी लाल आदि के खेतों का भ्रमण किया और कृशको से प्रदर्शन में अपनायी गयी तकनीक पर विस्तार से चर्चा की गयी।

ग्राम पड़ेरी में कृषक सुषील त्रिपाठी ने चना प्रदर्शन तकनीक के अन्तर्गत प्रमुख बिन्दुओ उदाहरणतया उन्नत किस्म आर. वी. जी. 203 जो उकठा एवं कालर राट रोग प्रतिरोधी,  अधिक उत्पादन और अधिक फैलने के कारण असिंचित क्षेत्र के लिये उपयोगी आदि गुणो पर प्रकाश डाला। उन्होने बताया कि बुवाई पूर्व जैव उर्वरक राइजोबियम, पी.एस.बी. एवं ट्राइकोडर्मा कल्चर द्वारा /10 मिलीलीटर प्रति किग्रा. बीज तथा अमोनियम मालीब्डेनम /1 ग्रामध् कि.ग्रा. बीज की दर से बीजोपचार किया गया। राइजोबियम एवं अमोनियम मालेब्डेनम द्वारा बीजोपचार करने से पौधों की जड़ो में गठानो का अधिक निर्माण हुआ और इन गठानो में राइजोबियम जीवाणु पाये जाते है जो वायुमंण्डलीय नाइट्रोजन को फसल को उपलब्ध कराते है। इसके अतिरिक्त ट्राइकोडर्मा कल्चर को 2 लीटर प्रति एकड़ की दर से 50 कि.ग्रा. गोबर की खाद में मिलाकर बुवाई पूर्व मिट्टी में मिलाया गया जिसके कारण चना फसल उकठा रोग से प्रभावित नही हुआ।

वैज्ञानिको ने सभी जैव उर्वरको के कार्य एवं इसके लाभ से किसानो को अवगत कराया। अहिरगुवा में श्याम प्रकाश शुक्ला, उमा शुक्ला, राजेन्द्र सिंह यादव, रामरूप तिवारी, इन्द्र सिंह यादव, निरंजन कुशवाहा ने प्रदर्शन फसल में अपनायी गयी तकनीक पर वैज्ञानिको से चर्चा की उन्होने बताया कि स्यूडोमोनास कल्चर का छिड़काव करने से फसल की बढ़वार एवं शाखाओ में अच्छी वृद्धि हुयी है। स्थानीय प्रजाति एवं पद्धति से चना की खेती कमजोर एवं उकठा रोग से प्रभावित भी है। चर्चा के दौरान कृषको को फसल में टी‘ आकार की खूटिया 10-15 प्रति एकड़ लगाने से इल्ली नियंत्रण में सहायक होती है। कीट भक्षी पक्षिया खूटी पर बैठकर इल्लियो का खाकर नियंत्रण करने में मददगार साबित होती है।

English Summary: Tikamgarh scientists did the observation of gram ... Published on: 27 January 2018, 12:24 AM IST

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