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पानी के बजाए खेत में सिंघाड़ा उगा लाखों कमा रहे सेठपाल

किसान अपने आप में एक वैज्ञानिक है. जब किसान के दिमाग में कुछ नया करने का विचार आता है तो वो पढाई करके वैज्ञानिक बनने वालों को भी पीछे छोड़ देते हैं. इसलिए कहते है कि किसान एक जागता हुआ वैज्ञानिक है. देश में जहाँ एक बड़ा किसान तबका आय को लेकर परेशान है. वही दूसरी ओर कुछ किसान ऐसे भी हैं. जो कृषि की नवीन तकनीकों का इस्तेमाल करके अच्छी आय ले रहे हैं. सहारनपुर के किसान सेठपाल सिंह ने यह साबित कर दिया की किसान अपने आप में ही एक वैज्ञानिक है.

किसान अपने आप में एक वैज्ञानिक है. जब किसान के दिमाग में कुछ नया करने का विचार आता है तो वो पढाई करके वैज्ञानिक बनने वालों को भी पीछे छोड़ देते हैं. इसलिए कहते है कि किसान एक जागता हुआ वैज्ञानिक है. देश में जहाँ एक बड़ा किसान तबका आय को लेकर परेशान है. वही दूसरी ओर कुछ किसान ऐसे भी हैं. जो कृषि की नवीन तकनीकों का इस्तेमाल करके अच्छी आय ले रहे हैं. सहारनपुर के किसान सेठपाल सिंह ने यह साबित कर दिया की किसान अपने आप में ही एक वैज्ञानिक है.

सहारनपुर के नंदीफिरोजपुर गाँव के रहने वाले सेठपाल सिंह एक संयुक्त परिवार में रहते हैं. वे छह भाई है. जिसमें से चार भाई शहर में रहते हैं. जबकि सेठपाल और उनके छोटे भाई गावों में ही रहते हैं. हर किसी का सपना होता है कि वो पढ़ लिखकर अच्छी नौकरी करें, लेकिन इस प्रतिभाशाली किसान ने इस बात को गलत साबित किया. सन 1987 में सहारनपुर के गोचर महाविद्यालय से बी.एस.सी. करने के बाद सेठपाल ने खेती को चुना क्योंकि उनको खेती से प्रेम था.

अन्यथा वो भी अपने भाईयों की तरह नौकरी कर सकते थे. उन्होंने अपने पूरे परिवार की जमीन को संभाला. सेठपाल सिंह इस समय 15 हेक्टेयर भूमि में खेती कर रहे हैं. अपने पूरे परिवार की कृषि भूमि वही संभाल रहे हैं. पश्चिमी उत्तर प्रदेश जहाँ पर बड़े पैमाने में गन्ने की खेती होती है इस क्षेत्र के किसान गन्ने के अलावा किसी अन्य फसल की खेती के विषय में सोचते भी नही है. क्योंकि उनको इसमें अच्छी आय हो जाती है. लेकिन गन्ने के भाव और भुगतान को लेकर काफी किसान परेशान भी रहते हैं. लेकिन सेठपाल के दिमाग में तो कुछ और ही चल रहा था वो इस चीज से काफी परेशान थे.

इसलिए उनके दिमाग में कुछ नया करने का विचार चल रहा था. एक बार सेठपाल सिंह बाईक से अपनी ससुराल जा रहे थे तभी अचानक से उनकी नजर तालाब में काम कर रहे लोगो पर पड़ी. तालाब में काम कर रहे कर्मी वहां से सिंघाड़े की बेल निकाल रहे थे. सेठपाल अपनी बाइक से उतरकर तालाब में काम कर रहे कर्मियों के पास पहुंचे और उनसे सिंघाड़े की खेती के विषय में थोडा जानकारी ली. वही से उनके दिमाग ने एक नई खोज की शुरुआत की. उनके दिमाग में सिंघाड़े की खेती तालाब में करने के बजाय खेत में करने का विचार उपजा. अपने इसी विचार को लेकर सेठपाल सिंह बिना देरी किए अपने क्षेत्र के कृषि विज्ञान केंद्र में पहुंचे.

इसके लिए कृषि के क्षेत्र में वहां पर पहुंचकर उन्होंने यह बातें कृषि विज्ञान केंद्र के मुख्य वैज्ञानिकों के साथ साझा की तो इस पर कृषि विज्ञान केंद्र के वैज्ञानिकों ने उत्तर दिया कि यह एक रिस्क है यदि आप इस रिस्क को लेना चाहते हैं तो ठीक है. हम इसमें आपको प्रोटेक्शन और मार्गदर्शन करेंगे.

इस प्रगतिशील किसान के लिए इतना सुनना काफी था वही से खेती में बदलाव का उनका सफरनामा शुरू हो गया. यह बात 1997 की हैं. सेठपाल सिंह ने चूँकि सेठपाल सिंह और उनके छोटे भाई पूरी खेती को संभाल रहे थे इसलिए उनके इस फैसले का किसी ने विरोध नहीं किया. यह एक बड़ा रिस्क था. उन्होंने 2 एकड़ में सिंघाड़े की फसल को बो दिया. इस फसल को लगाने में उनका कोई ज्यादा खर्च नही आया. इस फसल को लगाने से लेकर तोड़ने तक उनकी कुल लागत 16000 से 17000 प्रति एकड़ आती है.

उनका पहला ही ट्रायल सफल रहा. मात्र इतनी कम लागत में वो अच्छा उत्पादन ले रहे हैं. सेठपाल सिंह बताते हैं कि उनको सिंघाड़े की फसल से प्रति एकड़ 1 लाख तक की बचत हो जाती है. मई से दिसम्बर तक चलने वाली इस फसल के बाद सेठपाल सिंह सब्जियों की फसल लेते है. जिससे उनको 1 से 1.50 लाख प्रति एकड़ तक की अतिरिक्त आय हो जाती है.

कुल मिलाकर सालाना उनको प्रति एकड़ 1 से दो लाख से ढाई लाख तक की आमदनी हो जाती है. उनका रास्ते में आया एक आईडिया नयी खोज बन गया जिसका लाभ सेठपाल अब तक ले रहे हैं. यह किसी बड़ी उपलब्धि से कम नही है. सेठपाल की इस खोज के बाद भारत के प्रतिष्ठित कृषि संस्थान भारतीय कृषि अनुसन्धान परिषद से डॉ. ए.के. सिंह भी उनके खेत को विजिट कर चुके हैं. अपनी इस उपलब्धि की बदौलत सेठपाल सिंह सरकार से सराहना पा चुके हैं और कई बार पुरस्कृत किए जा चुके हैं.

किसान सेठपाल सिंह का कहना है कि हमारे क्षेत्र का गन्ने उगाने वाला किसान अधिकतर परेशान रहता हैं लेकिन सिंघाड़े की खेती के बाद मै बिल्कुल निश्चिंत हूं. इससे मुझे अच्छी कमाई हो रही है. यह सिंघाड़ा तालाब में उगने वाले सिंघाड़े के मुकाबले काफी अच्छा है. क्योंकि इसका स्वाद भी अलग होता है. यह चमकीला होता है. इसलिए इसका अच्छा भाव हमें मिल जाता है. इससे प्रेरित होकर अन्य किसान भी सिंघाड़े और सब्जियों की खेती की ओर रुख कर रहे हैं.

इसके अलावा सेठपाल सिंह अन्य किसानों को भी इसके लिए प्रेरित कर रहे हैं. अपनी 15 हेक्टेयर की भूमि में सेठपाल सिंह सिर्फ 5 हेक्टेयर भूमि में गन्ने की बुवाई करते हैं. बाकी 10 हेक्टेयर में वो बागवानी, सब्जी और सिंघाड़ा जैसी फसलों की खेती कर अच्छा मुनाफा ले रहे हैं. उनके एक छोटे से विचार ने सेठपाल को सफलता के एक नए मुकाम पर पहुंचा दिया. इसलिए कहा जाता है की..........

बन्दे तू करम किए जा फल की चिंता न कर

एक दिन ऐसा आएगा, तुझे तेरे कर्म का फल जरुर मिल जायेगा.

 

इमरान खान 
कृषि जागरण नई दिल्ली

English Summary: Sighthada Uga Lakhs lacking in the field instead of water Sethpal Published on: 26 January 2018, 11:49 PM IST

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