प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तीन दिन की यात्रा पर फिलीपींस मे हैं. इस दौरान वे वहां की सरकार से कृषि क्षेत्र पर चर्चा करेंगे और राजधानी मनाली स्थित अंतर्राष्ट्रीय चावल अनुसंधान संस्थान का भी दौरा करेंगे. 1960 में स्थापित यह केंद्र चावल अनुसंधान के मामले में सबसे पुराना और सबसे बना अनुसंधान केंद्र है. इस संस्थान में बड़ी संख्या में भारतीय वैज्ञानिक भी काम करते हैं. भारत में 42 मिलियन हेक्टेयर में चावल की खेती की जाती है, जोकि दुनिया में किसी भी चावल उत्पादक देश से ज्यादा है. लेकिन अधिकांश इलाका बारिश आधारित है. यानी यहां की खेती बारिश के भरोसे है. यहां पर चावन का जीन बैंक भी है. यहां चावल की सवा लाख से ज्यादा किस्में हैं. इन्हें 100 देशों से इकट्ठा किया गया है. पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम भी 2006 में यहां का दौरा कर चुके हैं.
अंतर्राष्ट्रीय चावल अनुसंधान (IRRI) दुनिया के 15 अनुसंधान केंद्रों में से एक है. एशिया में यह सबसे बड़ा गैर-लाभकारी अनुसंधान केंद्र है. 1960-70 के दशक के दौरान एशिया में हरित क्रांति के आंदोलन में इस संस्थान ने अहम भूमिका अदा की थी, इनमें चावल के "सेमिडवर्फ" किस्मों के जीन शामिल थे, यह बौनी तथा ज्यादा पैदावार देने वाली किस्म थी. आईआरआरआई की अर्द्ध-बौना किस्मों, जिनमें प्रसिद्ध आईआर-8 शामिल है, ने 60 के दशक में भारत को अकाल से बचाया था.
वाराणसी में खुलेगा केंद्र: केंद्र सरकार की पहल पर मनीला स्थित अंतर्राष्ट्रीय चावल अनुसंधान (IRRI) केंद्र वाराणसी में भी अपनी एक शाखा खोलने जा रहा है. राष्ट्रीय बीज अनुसंधान एवं प्रशिक्षण केंद्र, वाराणसी के परिसर में यह खुलेगा. इस केंद्र में चावल की पैदावार और क्लाविटी सुधारने पर काम होगा.
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