इधर, सरकार मानने को तैयार नहीं है और उधर किसान संगठन अपनी मांग पर अड़े हुए हैं. नतीजतन, दोनों ही पक्षों के बीच गतिरोध लंबा खिंचता जा रहा है, जिसके बीच जूझती नजर आ रही है, आम जनता, जी हां..आम जनता अब इसलिए जूझती हुई नजर जा रही हैं, चूंकि किसान आंदोलन में सक्रिय भूमिका निभा रहे किसान संगठनों ने साफ कह दिया है कि अगर सरकार इन तीनों कृषि कानूनों को वापस नहीं लेगी तो आने वाले दिनों में दूध के दाम 50 रूपए लीटर से सीधा 100 रूपए लीटर पर पहुंच जाएंगे.
वहीं, जब किसान नेताओं से पूछा गया कि इससे आम जनता को परेशानी हो सकती है, तो इस पर किसान संगठनों ने दो टूक कह दिया है कि क्यों? अगर यही आम जनता 100 रूपए लीटर में पेट्रोल डीजल खऱीद सकती है, तो फिर दूध खऱीदने में क्या एतराज है?
इतना ही नहीं, किसान नेताओं ने तो यहां तक कह दिया है कि अगर हमारी मांगों को पूरा नहीं किया गया, तो फिर सब्जियों के दाम भी अपने चरम पर पहुंच जाएंगे, लिहाजा स्थिति दुरूह न हो जाए, इसलिए सरकार हमारी इन मांगों पर ध्यान दें अन्यथा आगामी दिनों में आम जनता को इससे भी ज्यादा गंभीर परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है.
वहीं, बीते दिनों राकेश टिकैत पर फसलों को जलाने के कथित बयान पर भारतीय किसान यूनियन के महासचिव शमशेर दहिया ने कहा कि टिकैत साहब के बयान को गलत तरीके से पेश किया गया. उन्होंने ऐसा कभी नहीं कहा था कि किसान कृषि कानूनों के विरोध में अपनी फसलों को जलाएं.
गौरतलब है कि राकेश टिकैत के इस कथित बयान पर उन्होंने कहा कि टिकैत साहब के कहने का मतलब था कि अगर सरकार ने हमारी मांगों को नहीं माना तो हम आंदोलन करने हेतु दिल्ली की सीमाओं पर यथावत मुस्तैद रहेंगे. वहीं, कई जगहों पर फसलों को जलाए जाने की खबरों को लेकर दहिया ने कहा कि अगर कोई किसान ऐसा कर रहा तो उसे ऐसा न करने के लिए समझाया जाए. गौरतलब है कि विगत कई माह से किसान दिल्ली की सीमाओं पर कृषि कानूनों के खिलाफ आंदोलनरत हैं. वे सरकार से इन कानूनों को वापस लेने की मांग कर रहे हैं, मगर सरकार किसानों को मांग को मानने के लिए तैयार नहीं हो रही है.
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