इस समय भारतीय कृषि अपने सबसे बड़े बदलाव से गुजर रही है, बदलाव के इस दौर में परंपरागत तरीको को छोड़कर किसान नए तरीको से खेती करने लगे हैं, जिसका सबसे अधिक नुकसान तो शायद बैलों को हुआ है. जो बैल कल तक किसान का सहारा कहलाते थे, वो आज दर-दर की ठोकरें खा रहे हैं.
समय के साथ हाशिए पर बैल
वैसे भी खेतों की जुताई-मड़ाई का काम तो बहुत पहले ही ट्रैक्टरों और बड़ी मशीनों ने उनसे छीन लिया था. ऐसे में आज के समय कोई किसान बैलों को अपने पास नहीं रखना चाहता, जिसके कारण आखिरकार ये तस्करों और बूचड़खानों के हाथ लग जाते हैं.
पतंजलि ने किया करार
बैलों के साथ हो रहे ऐसे व्यवहार पर पशुपालन और डेयरी विभाग ने 2019 में चिंता जताते हुए कहा था कि आखिर किस तरह इनकी महत्वता बनाई रखी जा सकती है. उस समय पूछे गए इस सवाल का जवाब शायद अब मिल गया है.
तुर्की के साथ हुआ करार
दरअसल बाबा रामदेव की कंपनी पतंजलि ने तुर्की की एक कंपनी के साथ मिलकर बिजली बनाने का करार किया है. खास बात यह है कि इस बिजली को बनाने में बैलों का सहारा लिया जाएगा. इस बारे में पतंजलि ने 2017 में ही घोषणा कर दिया था, लेकिन अब यह काम अगले अगले चरण तक पहुंच गया है. ऐसे में इस तरह की चर्चा आम है कि क्या आने वाले समय में बैलों की उपयोगिता एक बार फिर बढ़ सकती है. बता दें कि बैलों का उपयोग बिजली बनाने के लिए हमारे देश में पहले से होता रहा है.
लाडवां में बैल बनाते हैं बिजली
अब हरियाणा के हिसार जिले के लाडवा गांव का ही उदाहरण ले लीजिए. लाडवा में बैलो की मदद से बिजली का उत्पादन होता है. इस काम के लिए यहां के गोशाला संचालक आनंदराज को राज्य सरकार सम्मानित भी कर चुकी है. आनंद बैलों की मदद से बिजली पैदा करते हैं. आनंद के मुताबिक वो कोल्हू के बैलों का उपयोग कर, उन्हें चार गड़ियों से जोड़ते हुए गोल-गोल घुमाते हैं.
10 किलोवाट बिजली निर्माण
इस काम में गियर का भी इस्तेमाल किया जाता है. बैलों के घुमने से अल्टरनेटर घूमता है और डीसी वोल्ट की बिजली पैदा होती है, जो बेटरी में चार्ज होकर एसी करंट में बदल जाती है. आनंद इस तरह दस किलोवाट की बिजली बना लेते हैं.
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