भले ही केंद्र सरकार ने गेहूं का न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) 150 रुपये प्रति क्विंटल बढ़ा दिया है, लेकिन किसान नाखुश हैं और मांग कर रहे हैं कि सरकार को स्वामीनाथन आयोग की रिपोर्ट के अनुसार कीमत तय करनी चाहिए, जो लागत पर 50 प्रतिशत लाभ की सिफारिश करती है. मालूम हो कि गेहूं की एमएसपी में बढ़ोतरी होने की वजह से गेहूं की एमएसपी 2,125 रुपये प्रति क्विंटल से बढ़कर 2,275 रुपये प्रति क्विंटल हो गई है. हालांकि, पिछले कई वर्षों में गेहूं की फसल की घटती पैदावार किसानों के लिए एक बड़ी समस्या है. किसानों के अनुसार उच्च एमएसपी के बावजूद, उनकी वास्तविक आय कम हो रही है, क्योंकि खेती में लागत बढ़ रही है और उपज कम हो रही है.
ट्रिब्यून इंडिया की रिपोर्ट के मुताबिक, एक किसान सरबरिंदर सिंह ने कहा, "खेती में लागत लगभग 1,500 रुपये से 2,000 रुपये तक बढ़ गई है, क्योंकि फसल अवशेष जलाने पर प्रतिबंध है और किसानों को खेत तैयार करने के लिए अतिरिक्त डीजल जलाना पड़ता है." उन्होंने आगे कहा कि जो किसान जला नहीं रहे हैं वो किसान फसल अवशेषों की गांठें बनाने के लिए बेलर मशीन के मालिकों को 1,000 रुपये प्रति एकड़ का भुगतान भी कर रहे हैं.
‘एमएसपी में बढ़ोतरी पिछले कुछ सालों की तुलना में बेहतर’
एक अन्य किसान इंदरबीर सिंह ने कहा, “इसमें कोई संदेह नहीं है कि इस साल एमएसपी में बढ़ोतरी पिछले कुछ सालों की तुलना में बेहतर रही है. लेकिन डीजल, उर्वरक और रसायनों की लागत, जो बढ़ रही है, उसको देखते हुए एमएसपी में बढ़ोतरी उतनी अधिक नहीं है.“ इंदरबीर ने आगे कहा कि अगर किसान जमीन के किराये के साथ-साथ अपने और अपने परिवार द्वारा लगाए गए शारीरिक श्रम की लागत की गणना करते हैं, तो कृषि घाटे का सौदा है.
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वहीं, कुछ अन्य किसानों का कहना है कि सरकार को उत्पादन की वास्तविक लागत के आधार पर एमएसपी तय करना चाहिए, जिसमें श्रम और भूमि किराया शामिल है. उनका कहना है कि सरकार को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि उन्हें उन सभी फसलों पर एमएसपी मिले जिनके लिए यह घोषणा की गई है.
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