नई दिल्ली। कृषि के क्षेत्र में दिन-प्रतिदिन रोज नए आविष्कार किए जा रहे हैं जिसके कारण कृषि क्षेत्र में व्यापक रूप से नये-नये बदलाव आ रहे है। इसी बीच राजस्थान कृषि के क्षेत्र में अपनी तकदीर और तस्वीर बदलने की कवायद करने में लगा हुआ है। देश के समुद्री किनारो पर पाए जाने वाले नारियल और सुपारी की खेती अब मरूस्थली इलाके माने जाने वाले राजस्थान में होगी। । दरअसल राजस्थान के टोंक के थड़ोली गांव को कृषि विभाग मिनी गोवा के रूप में विकसित करने जा रहा है। यहां पर बनाए जाने वाले सेंटर ऑफ़ एक्सीलेंस को एग्रो टूरिज्म के तौर पर पहचान दिलाने की विशेष योजना है जिस पर विभाग तेजी से कार्य कर रहा है। जानकारी के मुताबिक देश में नारियल और सुपारी की खेती ज्यादातर दक्षिण के राज्यों में की जाती है लेकिन अब राजस्थान में भी इस खेती को लेकर बड़ा नवाचार होगा जिसके कारण मरूस्थल राजस्थान में इनकी खेती शुरू होगी। कृषि विभाग के अनुसार शुरूआत में दो-दो हेक्टयर के क्षेत्र में नारियल और सुपारी की खेती की जाएगी। राज्य सरकार की ओर से इस नवाचार हेतु 10 करोड का बजट उपलब्ध करवाया गया है।
विपरीत परिस्थिति के बावजूद होगी खेती
राजस्थान भारत का एक ऐसा राज्य है जहां पर तापमान गर्म रहता है और राज्य में रेगिस्तानी रेतीली धरती है। यदि हम राजस्थान के भौगोलिक जलवायु की बात करें तो यह शुष्क से लेकर उप-आर्द्र मानसूनी जलवायु है। ऐसे में टोंक के थड़ोंली गांव में सुपारी और नारियल की खेती एक बेहद ही बड़ी पहल साबित होगी। कृषि विभाग ने यहां पर पहल शुरू करते हुए उद्यानिकी नवाचार केंद्र की स्थापना को शुरू किया है। इसके साथ ही यहां के गांव में नारियल और सुपारी की खेती हेतु पौधों का रोपण भी शुरू किया जा चुका है।
तीन अलग-अलग वैरायिटी के होंगे पौधे
नारियल और सुपारी की खेती बेहद ही नम वातावरण में की जाती है इसके लिए वातावरण में आर्द्रता की भी जरूरत होती है। यहां पर खेती को सफल बनाने के लिए रेनगन और स्प्रिंकलर के माध्यम से भी आर्द्रता को बनाए रखने का कार्य भी शुरू किया जाएगा। खेती के लिए केरल राज्य से नारियल के तीन अलग-अलग वैरायिटी के पौधों को मंगवाया गया है। इनमें हाईब्रिड, टालेस्ट और ग्रीन वैरायटी के पौधे शामिल हैं. जिन किस्मों के अच्छे परिणाम सामने आएंगे उनकी खेती को भविष्य में बढ़ावा दिया जाएगा। सेंटर ऑफ एक्सीलेंस में नारियल और सुपारी के साथ ही चीकू, केला, खजूर, जैतून और 13 प्रकार के संतरों के पौधे भी लगाए जा रहे हैं।
किशन अग्रवाल, कृषि जागरण
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