देहरादून : एक तरफ दिल्ली जैसे शहर में प्रदूषण की मार से लोग बेहाल हैं यहां सारी सुविधाएं हैं लेकिन पर्यावरण की रक्षा हम खुद ही नहीं कर रहे हैं। वहीं, दूसरी तरफ कुछ ऐसे भी हैं जो देश की रक्षा के साथ-साथ पर्यावरण की भी रक्षा कर रहे हैं।
इन्हीं में से एक हैं जगत सिंह चौधरी को अब लोग ‘जंगली जी’ के नाम से जानते हैं। जंगली जी की उपलब्धि यह है कि इन्होंने बंजर जमीन पर पर्यावरण को बचाने के लिए हरा-भर वन बना दिया। ‘जंगली जी’ नाम से विख्यात हो चुके जगत सिंह चौधरी सीमा सुरक्षा बल से रिटायर हो चुके हैं फिलहाल वह देश की सुरक्षा करने के बाद पर्यावरण की सुरक्षा कर रहे हैं।
उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग के कोट मल्ला गांव के इस पर्यावरण प्रेमी ने उस बंजर जगह को हरे-भरे जंगल में बदला जिसके बारे में लोग ही नहीं कृषि पंडित भी यह सोचते थे कि यहां पेड़-पौधे लगाना संभव नहीं है। कोट मल्ला गांव के पास डेढ़ एकड़ बंजर जमीन में पेड़-पौधे लगाने का काम जगत सिंह ने 1974 में शुरू किया और इसे पूरी तरह से हरा-भरा जंगल बनाने में उन्हें बरसों लग गए।
इसलिए शुरू किया यह काम : जंगली जी ने पेड़ पौधों को लगाने का काम एक घटना के बाद शुरू किया। बरसों पहले हुई एक घटना ने उन्हें इस तरह झकझोरा कि उन्होंने पेड़ लगाने की ठान ली। दरअसल, गांव की महिलाओं को मवेशियों के चारे के लिए दूर-दूर तक भटकना पड़ता था। एक दिन उन्होंने देखा कि चारे का इंतजाम करने गई उनके गांव की एक महिला बुरी तरह से घायल हो गई है। उन्होंने उसी वक्त सोचा कि क्यों न ऐसा कुछ किया जाए कि मवेशियों के लिए चारे और ईंधन के लिए लकड़ियों का इंतजाम आसपास ही हो जाए।
पिता से मिली थी डेढ़ एकड़ जमीन : यह बात सत्तर के दशक की है। जगत सिंह उन दिनों सीमा सुरक्षा बल में कार्यरत थे। पिता से मिली डेढ़ एकड़ बंजर जमीन को उन्होंने हरा-भरा बनाने की ठान ली। उन्होंने बंजर जमीन के चारों ओर ऐसे पौधे लगाए जो बाड़ का काम कर सकें और आसानी से उग सकें जैसे नागफनी। इसके बाद उन्होंने ऐसे पौधे लगाने शुरू किए जो चारे और ईंधन के काम आ सकें। यह सब काम जब वह छुट्टियों में घर आते तब करते।
बंजर जमीन में हरियाली: वर्ष 1980 में उन्होंने सेवा निवृत्ति ले ली और अपना सारा समय जंगल को विकसित करने में देने लगे। दूर से पानी खुद कंधों पर लाते और पौधों में डालते। मेहनत रंग लाई और बंजर जमीन पर पेड़-पौधे लहलहाने लगे।
जगत सिंह की कामयाबी देख दूसरे भी प्रेरित हुए और आज सिर्फ डेढ़ एकड़ ही नहीं आसपास का इलाका भी हरा-भरा हो उठा है। जगत सिंह ने सिर्फ चारे और ईंधन की समस्या का ही समाधान नहीं किया अपितु उन्होंने औषधीय पौधे, दाल, सब्जियां, जड़ी-बूटी और फूल उगाने का प्रयोग भी किया। उन्हें इसमें कामयाबी भी मिली और इसलिए ही लोग उन्हें प्यार से ‘जंगली जी’ बुलाते हैं।
वृक्षमित्र का पुरस्कार भी मिल चुका है: देर से ही सही लेकिन सरकार ने भी उनके काम को सराहा। वर्ष 1998 में भारत सरकार के वन एवं पर्यावरण मंत्रालय ने उन्हें वृक्षमित्र पुरस्कार से सम्मानित किया। वर्ष 2012 में उन्हें उत्तराखंड का ग्रीन एम्बेसडर बनाया गया। पर्यावरण प्रहरी, गौरा देवी अवार्ड, पर्यावरण प्रहरी जैसे कई पुरस्कार उन्हें दिए जा चुके हैं।
साभार : लाइवन्यूज़
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