अविष्कार करने के लिए कोई खास तरह की पढाई की जरूरत नहीं होती. अविष्कार,विदेशियों की बपौती भी नहीं. हमारे भारत में ही कई लोग अपनी आवश्यकता के अनुसार अविष्कार करते आ रहे हैं.
अभी हाल ही में एक किसान के एक लड़के को राष्ट्रपति जी ने एक ऐसे अविष्कार के लिए सम्मानित किया जिसमे उसने सिंघाड़ा को तालाब में न ऊगा कर खेत में ही ऊगा डाला.
ऐसा आविष्कार का आईडिया उसे यूं ही नहीं मिल गया बल्कि इससे पहले गावों की पगडंडियों से होते हुए गांव की कच्ची सड़क पर एक बैलगाडी के पीछे-पीछे चलते और गर्मी और अँधेरे में बैल को अचानक से मृत्यु की ओर जाते हुए उसके दिमाग में नया अविष्कार कोंधा.
विकास खंड शिवपुरा के गांव बरगदही निवासी आशुतोष पाठक बीएससी प्रथम वर्ष के छात्र हैं. ग्रामीण परिवेश से होने के कारण आशुतोष ग्रामीणों और किसानों की परेशानी अच्छी तरह समझते हैं. आशुतोष ने बताया, " पूर्वी उत्तर प्रदेश के कई जिलों के किसानों के लिए बैलगाड़ी ही कृषि यातायात का प्रमुख साधन है. लेकिन बैलगाड़ी में न तो लाइट होती है और न तो हॉर्न. इसके साथ-साथ सुरक्षा की दृष्टि से अन्य साधन भी नहीं होते हैं. इन कारणों से किसानों को रात में कई कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है. यही देखकर मैंने सोचा कि क्यों न कुछ ऐसा किया जाए कि किसानों और बेजुबान पशुओं दोनों की सुरक्षा हो सके." आशुतोष ने आगे बताया, " मैंने बैलगाड़ी की पहियों में डायनुमा और किसान के बैठने की जगह पर एक छतरी के साथ सौर ऊर्जा का प्लेट लगाकर बैलगाड़ी में कई सुधार किए. एक ऐसी बैलगाड़ी का निर्माण किया जिसमें हेडलाइट, हॉर्न, छोटा सा पंखा और किसान के मनोरंजन के लिए छोटा सा साउंड सिस्टम तथा पानी से बचने वाली छतरी भी लगा दी." किसान वैज्ञानिकों के साथ मिलकर किसानों की जिंदगी बदलने वाले आशुतोष ने जहरीले पौधे उखाड़ने वाली बनाई मशीन आशुतोष ने आधुनिक बैलगाड़ी के अलावा कई और कृषि यंत्र बनाए हैं जो किसानों के लिए काफी उपयोगी हैं. खेतों में उगने वाले जहरीले पौधों को उखाड़ने के लिए हाथ से चलने वाली मशीन बनाई है
जिससे किसान को बिना किसी परेशानी के इन पौधों से निजात मिल सकेगी. आशुतोष घर में पड़ी बेकार चीजों से कई उपयोगी मशीनें बनाते हैं जो दैनिक जीवन में काफी उपयोगी होती हैं. गांव के बच्चों को मुफ्त में पढ़ाते हैं आशुतोष के पिता रमेश चंद्र पाठक ने बताया, " आशुतोष बचपन से ही मेधावी रहा है. बचपन में वे ऐसे-ऐसे प्रश्न करता था जिसका जवाब देना काफी मुश्किल होता था. जब तक उसे संतोषजनक जवाब नहीं मिल जाता वह शांत नहीं होता था. उसकी वैज्ञानिक सोच बचपन से ही है. आशुतोष को बच्चों को पढ़ाने का भी शौक है. प्रत्येक रविवार को आशुतोष अपने गांव के बच्चों को पढ़ाते भी हैं. आशुतोष को देखकर गांव के कई बच्चों का रुझान विज्ञान विषय में हो गया है. वे भी इनकी तरह कुछ नया करना चाहते हैं. " प्रेम सिंह, समेत कई देशों के किसान जिनसे खेती के गुर सीखने आते हैं आशुतोष के प्रयास से उसके गांव में बिजली पहुंच गई है और पक्की सड़क का निर्माण कार्य जारी है. आशुतोष ने बताया," जब मुझे बाबा साहब भीमराव अंबेडकर विश्वविद्यालय में राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद के द्वारा सम्मानित किया गया,
गांव में बिजली और सड़क की समस्या उनके सामने रखी. उन्होंने तत्काल मेरे गांव में बिजली और सड़क पहुंचाने की बात कही. अब मेरे गांव में बिजली आ गई और सड़क का निर्माण चल रहा है. मेरे गांव वाले बहुत खुश हैं."
चंद्र मोहन, कृषि जागरण
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