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दो अनपढ़ दोस्तों ने बना दिया हवा से चलने वाला इंजन

कि किसी नए आविष्कार का विचार दिमाग में तभी आता जब किसी काम को करते हुए हम सिखने की कोशिश करते हैं. ठीक ऐसा ही कुछ 11 सालो की मेहनत के बाद साबित किया दो बिना पढ़े लिखे दोस्तों ने. ये दोनों दोस्त राजस्थान भरतपुर के रहने वाले हैं. गाड़ियों के टायरों में हवा भरने वाले इन दो दोस्तों ने कुछ अलग करने की ठानी तो हवा से चलने वाला इंजन ही बना दिया.80 फीट की गहराई से इसी हवा के इंजन से पानी तक खींचा जाता है. यह 11 साल की कड़ी मेहनत थी. 11 सालों में इस कड़ी मेहनत से बनकर यह इंजन तैयार हुआ. अब ये दोनों दोस्त एक नए प्रोजेक्ट पर काम कर रहे है.

KJ Staff
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कहते हैं कि किसी नए आविष्कार का विचार दिमाग में तभी आता जब किसी काम को करते हुए हम सिखने की कोशिश करते हैं. ठीक ऐसा ही कुछ 11 सालो की मेहनत के बाद साबित किया दो बिना पढ़े लिखे दोस्तों ने. ये दोनों दोस्त राजस्थान भरतपुर के रहने वाले हैं. गाड़ियों के टायरों में हवा भरने वाले इन दो दोस्तों ने कुछ अलग करने की ठानी तो हवा से चलने वाला इंजन ही बना दिया.80 फीट की गहराई से इसी हवा के इंजन से पानी तक खींचा जाता है. यह  11 साल की कड़ी मेहनत थी. 11 सालों में इस कड़ी मेहनत से बनकर यह इंजन तैयार हुआ. अब ये दोनों दोस्त एक नए प्रोजेक्ट पर काम कर रहे है.

राजस्थान के भरतपुर जिले में रूपवास के खेड़िया गावों के रहने वाले अर्जुन कुशवाह और मिस्त्री त्रिलोकीचंद गांव में ही एक दुकान पर मोटर गाड़ियों के टायरों में हवा भरने का काम करते थे. करीब 11 साल पहले जून में एक दिन ट्रक के टायरों की हवा जांच रहे थे तो उनका इंजन खराब हो गया. उसे सही कराने तक के लिए जेब में पैसे नहीं थे.

इतने में ही इंजन का वॉल खुल गया और टैंक में भरी हवा बाहर आने लगी. इंजन का पहिया दवाब के कारण उल्टा चलने लगा. फिर यहीं से दोनों ने शुरू की हवा से इंजन चलाने के आविष्कार की कोशिश की. साल 2014 में वे इसमें सफल भी हो गए. आज वे इसी हवा के इंजन से खेतों की सिंचाई करते हैं.

साढ़े तीन लाख हुए खर्च

  • त्रिलोकीचंद ने बताया कि 11 साल से वे लगातार हवा के इंजन पर ही शोध कर रहे हैं. जिससे अब तक बहुत कुछ सीख चुके हैं .

  •  इसे बनाने में करीब 3.5 लाख रुपए के उपकरण सामान ला चुके हैं. अब दुपहिया चौपहिया वाहनों को हवा से चलाने की योजना बना रहे हैं.

कुछ इस तरह तैयार किया पूरा इंजन

अर्जुन कुशवाह के अनुसार इस इंजन को बनाने के लिए उन्होंने  चमड़े के दो फेफड़े बनाए. इसमें एक छह फुट और दूसरा ढाई फुट का. इसमें से एक बड़े फेफड़े इंजन के ऊपर लगाया. जबकि इंजन के एक पहिए में गाड़ी के तीन पटा दूसरे बड़े पहिए में पांच पटा लगाकर इस तरह सेट किया कि वह थोड़ा से धक्का देने पर भार के कारण फिरते ही रहें. पिस्टन वॉल तो लगाई ही नहीं है.

जब इंजन के पहिए को थोड़ा सा घुमाते हैं तो वह बड़े फेफड़े में हवा देता है. इससे छोटे फेफड़े में हवा पहुंचती है और इंजन धीरे-धीरे स्पीड पकड़ने लगता है. इससे इंजन से पानी खिंचता है. बंद करने के लिए पहिए को ही फिरने से रोकते हैं. हवा से चल नहीं जाए, इसके लिए लोहे की रॉड फंसाते हैं.इस तरह उन्होंने हवा से चलने वाला यह इंजन बनाया. लेकिन इस अविष्कार के लिए सरकार की और से कोई पुरुस्कार तो क्या एक सराहना तक नहीं मिली, वैसे सरकार सौर उर्जा व उर्जा की कम खपत जैसे मुद्दों पर जोर दे रही है. 

English Summary: innovation Published on: 17 February 2018, 02:40 AM IST

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