जिन्दगी की तेज रफ्तार के साथ ही खेती के तरीकों में तेजी से बदलाव आ रहा है। कुछ वर्षों से मेंथा की खेती को व्यवसायिक खेती मानते हुए किसान जहां अधिक से अधिक मुनाफा प्राप्त कर रहे थे, वहीं अब केले की व्यवसायिक खेती करके 14 से 16 माह के बीच प्रति एकड़ दो से ढाई लाख रुपये नकदी की आय प्राप्त कर रहे हैं ।
हिमालय की तलहटी में बसा तहसील निचलौल व आसपास के क्षेत्रीय किसानों का झुकाव परंपरागत ढंग से धान, गेहूं के अलावा नकदी फसल के रूप में गन्ने की खेती का रहा है , लेकिन पांच-सात वर्षों से चीनी मिलों का भुगतान नियमित न होने के कारण गन्ना किसान अपनी राह बदल मेंथा की खेती के तरफ झुक गए। लेकिन दो-तीन वर्षों से मेंथा से बने पिपर¨मट की मांग व मूल्य कम होने से इस धंधे से जुड़े किसान अब उससे भी मुख मोड़ लिए है।
बता दें कि पारंपरिक खेती को छोड़ भारी संख्या में क्षेत्रीय किसान केले की खेती करके अपना भाग्य आजमा रहे हैं । केले की खेती के लिए अच्छी जल निकासी वाली उपजाऊ बलुई- दोमट अथवा मटियार भूमि को उपयुक्त माना जाता है।
अधिक वर्षा वाले क्षेत्रों में केला की फसल सफल रहती है। क्षेत्र के किसान गोपाल अग्रवाल, ओम प्रकाश, राम अवध, भोला कुशवाहा, नंदू, राम नगीना, सुभाष, राम अवतार, मनोज तिवारी, आदि दर्जनों किसान केले की खेती कर अपनी तकदीर चमका रहे हैं , इसीलिए अन्य किसान भी इनको देख कर इस खेती के प्रति रुझान किए हुए हैं।
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