मछुआरों और मत्स्य पालकों को बढ़ावा देने के लिए सरकार लगातार कई बड़े कदम उठा रही है. इसी कड़ी में केंद्रीय मत्स्य पालन, पशुपालन और डेयरी मंत्री परशोत्तम रूपाला ने सागर परिक्रमा का शुभारंभ किया है. परशोत्तम रूपाला द्वारा सागर परिक्रमा के छठे चरण का अंडमान और निकोबार द्वीप समूह में शुभारंभ किया गया है. सागर परिक्रमा क्या है और ये कैसे मछुआरों और मत्स्य पालकों को बढ़ावा देगा, आइये इस लेख में इस पर चर्चा करते हैं.
सागर परिक्रमा क्या है?
पीआईबी हिंदी के मुताबिक, सागर परिक्रमा एक ऐसा कार्यक्रम है जो सरकार के दूर तक पहुंच बनाने की रणनीति को दर्शाता है. मछली उत्पादकों से सीधा संवाद कर तटीय क्षेत्रों के मछुआरों से जुड़ी समस्याओं को जानने के लिए इसकी शुरुआत की गई थी. सागर परिक्रमा मछुआरों के विकास में व्यापक रणनीतिक बदलाव लेकर आएगा. इसलिये जलवायु परिवर्तन और सतत विकास के साथ-साथ मछुआरों और मत्स्य पालकों के सर्वांगीण विकास और आजीविका पर इस सागर परिक्रमा के दूरगामी प्रभाव आने वाले चरणों में देखने को मिलेंगे.
सागर परिक्रमा की शुरुआत कब की गई?
सागर परिक्रमा के पहले चरण की शुरुआत 5 मार्च 2022 को मांडवी, गुजरात से हुई थी और अब तक सागर परिक्रमा के पांच चरणों के तहत पश्चिमी तट पर गुजरात, दमन और दीव, महाराष्ट्र और कर्नाटक के तटीय क्षेत्रों की यात्रा पूरी की गई है. सागर परिक्रमा के छठे चरण में अंडमान और निकोबार द्वीप समूह के क्षेत्रों को कवर किया जाएगा. जिसमें कौड़िया-घाट, पोर्ट ब्लेयर, पानी घाट मछली लैंडिंग केंद्र, वी के पुर फिश लेंडिंग सेंटर, हुतबे, नेताजी सुभाष चंद्र बोस द्वीप आदि शामिल हैं. इसका शुभारंभ आज किया गया है.
सागर परिक्रमा की शुरुआत क्यों की गई?
केंद्रीय मत्स्य पालन, पशुपालन और डेयरी मंत्री परशोत्तम रूपाला ने मछुआरों और विभिन्न सरकारी योजनाओं के लाभार्थियों से मिलने और मछुआरों व अन्य हितधारकों के लाभ के लिए, देश में मातस्यकी क्षेत्र को आगे बढ़ाने, उनकी समस्याओं और सुझावों के बारे में सीधे उनसे संवाद करने के लिये, पूर्व निर्धारित समुद्री-मार्ग के माध्यम से पूरे देश के तटीय क्षेत्रों का दौरा करने के लिए सागर परिक्रमा की यह अनूठी पहल की शुरुआत की है.
सागर परिक्रमा के छठे चरण के लिए अंडमान को क्यो चुना गया
अंडमान और निकोबार द्वीप समूह में इसके लंबे तटों के कारण जो 1,962 किलोमीटर है और 35,000 वर्ग किलोमीटर के महाद्वीपीय शेल्फ क्षेत्र के कारण मत्स्य पालन के विकास की विशाल संभावना है. इस द्वीप के चारों ओर विशिष्ट आर्थिक ज़ोन लगभग 6,00,000 वर्ग किलोमीटर है, जिसमें मत्स्य पालन में असीम सम्भावनाएं हैं.
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मत्स्य क्षेत्र में कितनों को मिलता है रोजगार
पीआईबी हिंदी के मुताबिक, मत्स्य क्षेत्र प्राथमिक तौर पर 2.8 करोड़ से अधिक मछुआरों और मछली पालकों को आजीविका, रोजगार और उद्यमिता प्रदान करता है, ये संख्या मूल्य-श्रृंखला के साथ लाखों में हो जाती है. यह क्षेत्र पिछले वर्षों में धीरे-धीरे विकसित होकर देश के सामाजिक-आर्थिक विकास का एक महत्वपूर्ण स्तंभ बन गया है.
आंकड़ों पर नजर डालें तो पायेंगे कि 22 प्रतिशत मत्स्य उत्पादन में वृद्धि के साथ पिछले 75 वर्षों में इस क्षेत्र में बहुत परिवर्तन आया है. 1950-51 के मात्र 7.5, लाख टन मछली उत्पादन से लेकर 2021-22 में 162.48, लाख टन प्रतिवर्ष उत्पादन तक, 2020-21 की तुलना में 2021-22 में 10.34 प्रतिशत की वृद्धि के साथ मछली उत्पादन में रिकॉर्ड वृद्धि हुई है. आज भारत विश्व मछली उत्पादन में लगभग 8 प्रतिशत हिस्सेदारी के साथ तीसरा सबसे बड़ा मछली उत्पादक देश है. भारत ‘जलीय कृषि’ (ऐक्वाकल्चर) उत्पादन में दूसरे स्थान पर और दुनिया में शीर्ष ‘कल्चर्ड झींगा’ उत्पादक देशों में से एक है.
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