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मध्य प्रदेश में कोदो, कुटकी की फसल से लड़ी जा रही है कुपोषण की लड़ाई

मध्य प्रदेश के खंडवा जिले का आदिवासी विकास खंड खालवा कुपोषण के लिए पूरे ही प्रदेश में जाना जाता रहा है. लेकिन अब यह क्षेत्र सुपोषण की जंग जमकर लड़ रहा है. इनकी इस लड़ाई में हथियार बना है. यह मोटा अनाज. जी हां अब यहां पर कोदो, कुटकी, मक्का आदि पारंपरिक मोटे अनाजों की फसलों का रकबा काफी बढ़ता ही जा रहा है. लोगों को इनके लाभ के बारे में लगातार जागरूक किया जाता रहा है.

किशन

मध्य प्रदेश के खंडवा जिले का आदिवासी विकास खंड खालवा कुपोषण के लिए पूरे ही प्रदेश में जाना जाता रहा है. लेकिन अब यह क्षेत्र सुपोषण की जंग जमकर लड़ रहा है. इनकी इस लड़ाई में हथियार बना है. यह मोटा अनाज. जी हां अब यहां पर कोदो, कुटकी, मक्का आदि पारंपरिक मोटे अनाजों की फसलों का रकबा काफी बढ़ता ही जा रहा है. लोगों को इनके लाभ के बारे में लगातार जागरूक किया जाता रहा है.

अनाज से दूर हो रहा कुपोषण

मध्य प्रदेश खंडवा जिले में गत दिनों हुए सर्वे में 2676 बच्चे अति कुपोषित मिले है. इसमें 747 खालवा में है. स्पंदन समाजिक सेवा समिति भी यहां इसी काम में जुटी हुई है. समिति की सीमा प्रकाश को खालवा क्षेत्र में कुपोषण दूर करने के लिए गए प्रयासों पर राष्ट्रपति पुरस्कार मिल चुका है. वह कहती है कि कुपोषण की मुख्य वजहों में आदिवासियों की परंपरागत अनाज से दूरी भी एक अहम वजह है. हमने प्रयास किया है कि आदिवासी की परंपरागत अनाज से दूरी भी एक अहम वजह है. हमने काफी प्रयास किया है कि आदिवासी कोदो, कुटकी, और मक्का की पैदावार कर इसे अपने आहार में शामिल करें, जिससे कि घरेलू खाद्य संकट की स्थिति न बनें.

kutki crops

फसलों का रकबा बढ़ा

कोदो और कुटकी में पर्याप्त मात्रा में प्रोटीन होता है, इससे शरीर को मिलता है. संस्था के प्रकाश माइकल बताते है कि वर्ष 2011 में खालवा क्षेत्र में कोदो, कुटकी की पैदावार महज दो फीसद रह गई थी, जो कि जागरूकता के बाद बढ़कर कुल दस फीसद हो गई है. इन फसलों का रकबा भी यहां आठ फीसद तक बढ़ गया है. इसके साथ ही मक्का का रकबा भी तेजी से बढ़ा है. इनका कहना है कि सरकार को कोदो, कुटकी, और मक्का को समर्थन मूल्य पर खरीदकर राशन दुकानों पर वितरित करना चाहिए. इससे स्थिति और बेहतर हो सकेगी.

indian agriculture Kutaki crop

जागरूकता का असर

यहां पर जागरूकता अभियान को चलाने से कुल आठ फीसद तक रकबा बढ़ा है. वह मोटे अनाज के बारे में फायदे बता रहे है. बता दें कि कोदा-कुटकी के उत्पादन का सबसे बढ़ा फायदा यह होता है कि यह कोरकू, आदिवासियों की घरेलू खाद्य श्रंखला का हिस्सा है. यह बिना कीटनाशक व कम पानी में भी बेहतर उत्पादन देता है. कुटकी का पौधा धान की तरह ही होता है. भरपूर मात्रा में प्रोटीन भरे होने के कारण यह पोषाहार के रूप में बेहतर विकल्प होते है.

English Summary: In this state, malnutrition is going away with the help of Kodo and Kutki Published on: 06 September 2019, 07:28 PM IST

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