एक किसान सवेरा होने से पहले ही खेत पर कठोर परश्रिम करने लग जाता है. वो ना तो किसी त्यौहार में आराम करता है और ना ही किसी बीमारी में छुट्टी लेता है. गड़गड़ाती हुई बिजली एवं मूसलाधार बरसात में भी बिना रूके काम करता रहता है. लेकिन ये उसका दुर्भागय है कि अपने बाल-बच्चों को भूखा रखकर अपने अतुलनीय श्रम से जिस फसल को उपजाता है, वो फसल रखरखाव एवं सरकारी लापरवाहियों के कारण सड़-गलकर खराब हो जाती है. कुछ ऐसा ही नजारा एक बार फिर धान संग्रहण केंद्र करप में देखने को मिल रहा है.
यहां प्रभारियों की लापरवाही ने हजारों बोरा-धान को माटी कर दिया. रखरखाव एवं सुरक्षा के अभाव में हजारों बोरें धान बारिश में भीग-भीगकर सड़ते रहे और शासन-प्रशासन चैन की नींद सोता रहा. जानकारी के मुताबिक, खुले में रखे हजारों क्विंटल धान अब इस कदर सड़-गल गए हैं कि उनमें से भीषण दुर्गंध आने लगी है. जानकारी के मुताबिक धान संग्रहण केंद्र करप में धान के बोरों से पौधे निकलने लगे हैं. धान में किड़े पड़ चुके हैं. 230 स्टोक क्षमता वाले धान संग्रहण केंद्र में ऐसी लापरवाही गंभीर सवाल खड़ा कर रही है .
भुखमरी से मरने वालों की संख्या लाखों में
एक तरफ भारत में हजारों क्विंटल धान रखरखाव एवं सुरक्षा के अभाव में खराब हो गए हो दूसरी तरफ भुखमरी से लाखों लोगों की मौत हो गई. जी हां, भुखमरी से मरने वालों की संख्या में किसी तरह की कमी आती नहीं दिखाई दे रही है. साल 2018 के आंकड़ों के मुताबिक हम 119 देशों की सूची में 100 वें से 103 वें स्थान पर आ गए हैं. ऐसे में ये सवाल उठाया जाना वाजिब है कि अन्न की बर्बादी पर क्या शासन-प्रशासन का आंखें बंद कर लेना सही है?
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