किसानों को समय-समय पर नई आधुनिक तकनीक देने वाला मेरठ का भारतीय कृषि प्रणाली अनुसंधान संस्थान एक बार फिर सुर्खियों में है. लंबे समय तक किसान खेती कर सकें और बढ़ती आबादी का पेट भर सकें साथ ही पर्यावरण अनुकूल खेती आज की जरूरत है. भारतीय कृषि को तकनीकी तौर पर मजबूत करने के लिए देश के वैज्ञानिक कार्य कर रहे हैं.
समेकित जैविक खेती (Integrated Organic farming) भी एक ऐसी ही तकनीक है, जिसका विकास भारतीय कृषि अनुसंधान केंद्र मोदीपुरम, मेरठ द्वारा किया गया है. ग्लासगो में आयोजित 26वें जलवायु परिवर्तन शिखर सम्मेलन में इस तकनीक की पूरी दुनिया में सराहना हुई है. विश्व में कार्बन मुक्त वायुमंडल के लिए खेती के इस नयी प्रणाली को यूएन ने भी महत्वपूर्ण माना है. साथ ही इसे प्राथमिकता भी दी है.
2016 से इस प्रणाली पर हो रहा था काम (Work was being done on this system since 2016)
26वें जलवायु परिवर्तन शिखर सम्मेलन के 90 पेज के कंपेडियम में खेती के इस नए तरीके को प्रमुखता से छापा गया है. बता दें कि शिखर सम्मेलन के दौरान पीएम मोदी ने जैविक पद्धति से खेती बारी की जानकारी दी थी. अब कंपेडियम के जरिए खेती की इस प्रणाली की जानकारी अन्य देशों के किसानों को दी जाएगी. ICAR- इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ फार्मिंग सिस्टम्स रिसर्च के डायरेक्टर डॉ. आजाद सिंह पंवार के अनुसार इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ फार्मिंग सिस्टम्स रिसर्च साल 2016 से इस प्रणाली पर काम किया जा रहा था.
कमाई और पैदावार में हुई बढ़ोतरी (Increase in income and yield)
कृषि वैज्ञानिक डॉ. पंवार बताते हैं कि इंटीग्रेटेड ऑर्गेनिक फार्मिंग को अपनाने वाले किसानों की आय में औसतन 45 हजार रुपये तक की बढ़ोतरी हुई, जबकि पैदावार में 51 फीसदी तक बढ़ोतरी हुआ. उन्होंने बताया कि जो भी किसान इस तकनीक को अपनाते हैं पहले साल में कम उत्पादन हासिल करते हैं क्योंकि खेत को बिना रासायनिक खाद औऱ कीटनाशक की खेती करने के लिए तैयार करने में एक साल का समय लग जाता है. इसके बाद दूसरे साल से उत्पादन में अंतर दिखाई देने लगता है.
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कार्बन उत्सर्जन कम करने में मिली सफलता (Success in reducing carbon emissions)
ग्लासगो में आयोजित जलवायु शिखर सम्मेलन में प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने 2070 तक कार्बन मुक्त भारत बनाने का वादा किया है. इसलिए आईसीएआर द्वारा विकसित इस नई तकनीक को कार्बन न्यूट्रल के लिए बहुत महत्वपूर्ण माना जा रहा है. यह वातावरण में कार्बन और गैसीय प्रभावों को कम करने में बहुत प्रभावी माना जाता है.
माना जा रहा है कि इस तकनीक से 2030 तक कृषि के जरिए कार्बन उत्सर्जन को कम करने के क्षेत्र में एक बड़ी सफलता हासिल की जा सकती है. इसके साथ ही यह एक ऐसी तकनीक है जिसमें खेत की लागत बहुत कम होती है.
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