इतना ही नहीं, केंद्र सरकार अपने निर्देश में किसानों के आंदोलन के संदर्भ में दो टूक कह चुकी है कि पहले तो उन्हें दो बार समझाया जाएगा. इसके बाद भी अगर वे नहीं माने तो उन्हें बलपूर्वक वहां से हटाया जाएगा. इसके लिए विगत दिनों पूरे इलाके का जायजा लेने के लिए हवाई सर्वेक्षण भी किया गया. हालांकि, ऐसा पहली मर्तबा नहीं है, बल्कि इससे पहले भी सरकार की तरफ से इस तरह के निर्देश दिए जा चुके हैं.
उल्लेखनीय है कि विगत चार माह से किसान भाई कृषि कानूनों के खिलाफ आंदोलनरत हैं. किसान सरकार से इस कानून को वापस लेने की मांग कर रहे हैं, मगर सरकार का साफ कहना है कि इन कानूनों को वापस नहीं लिया जाएगा, लेकिन अगर किसान भाइयों को कानून के कुछ उपबंधों से एतराज हैं, तो हम इसमें संशोधन करने को तैयार हैं, मगर किसान भाई सरकार के रूख से इत्तेफाक न रखते हुए इस पूरे कानून को ही वापस लेने की मांग कर रहे हैं. किसानों ने तो यहां तक कह दिया है कि जब तक यह कानून वापस नहीं ले लिए जाते तब तक उनका आंदोलन जारी रहेगा.
आपको याद दिला दें कि जब ट्रेक्टर रैली के दौरान किसानों ने उत्पात मचाया था, तब ऐसा लगा था कि यह आंदोलन अब खत्म हो जाएगा, मगर उस वक्त भारतीय किसान यूनियन के नेता राकेश टिकैत ने अपने आंसुओं की धारा के दम पर इस आंदोलन को पुनर्जीवित कर दिया था, मगर अब एक बार फिर यह आंदोलन कोरोना के बढ़ते कहर के बीच अपनी सामाप्ति के कगार पर दस्तक देता हुआ नजर आ रहा है. सरकार ने अपने फरमान में साफ कह दिया कि अगर दो मर्तबा की बातचीत के बाद भी किसान भाई नहीं माने तो फिर बाध्य होकर हमें बलपूर्वक उन्हें हटाना होगा.
बेशक, कोरोना और फसलों की कटाई की वजह से वहां से किसान के रूखसत होने का सिलसिला शुरू हो चुका हो, मगर अभी-भी कमोबेश किसान वहां अपने आंदोलन को धार देने में जुटे हुए हैं, लेकिन सरकार के रूख को देखकर ऐसा प्रतीत होता है कि यह आंदोलन ज्यादा दिनों तक नहीं चल पाएगा. खैर, अब आगे क्या कुछ होता है, यह तो फिलहाल भविष्य के गर्भ में छुपा हुआ है.
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