केंद्र सरकार हर साल सभी किसानों को उनके जमीन के मुताबिक सब्सिडी पर खाद मुहैया कराती है. जिसका लाभ उठाकर किसान आसानी से कम कीमत पर खाद खरीदते हैं. लेकिन खेती के लिए सब्सिडी पर मिले खाद का उपयोग गैर Agricultural Work में होने से सरकार की चिंता बढ़ती जा रही है. इसके मद्देनजर सरकार ने यूरिया को नीम कोटेड कर दिया है. इससे गैर Agricultural Work में उपयोग तो घटा है, लेकिन अभी भी यह पूरी तरह से समाप्त नहीं हुआ है.
खाद दुकानों (Fertilizer Shops)पर छापेमारी करने का निर्देश
केन्द्र की इस चिंता के मद्देनजर बिहार सरकार ने खाद दुकानों पर लगातार छापेमारी करने का निर्देश दिया है. साथ ही, सभी जिलों को इस बाबत कार्रवाई करने के लिए अलग से टीम गठित करने को कहा है. केन्द्र सरकार ने फास्फेटिक Fertilizer की कीमत तो बाजार के हवाले कर दिया है, लेकिन यूरिया पर अब भी सब्सिडी देती है. यूरिया पर सब्सिडी कीमत के अनुसार होता है. यानी सरकार ने जो कीमत तय कर दी है, कंपनियों को उसी दर पर खाद बेचनी होगी.
गैर कृषि कार्य में हो रहा खाद का उपयोग (Use of Fertilizer in non-Agricultural Work)
अगर इस दौरान खाद की कीमत बढ़ती है तो इसके घाटे की भरपाई सरकार करती है. लिहाजा सब्सिडी का दर भी घटता-बढ़ता रहता है. सरकार ने सब्सिडी की यह व्यवस्था सिर्फ कृषि कार्य में उपयोग की जाने वाली खाद के लिए की है. गैर कृषि कार्य के लिए खाद की बिक्री पूरी दर पर होती है. इसके लिए खाद की ब्रिकी पॉश मशीन से आधार कार्ड लेकर की जाती है. लेकिन, किसानों के नाम पर अब भी खाद उठाकर उसका उपयोग गैर कृषि कार्य में होता है.
गड़बड़ी पाये जाने से सरकार की चिंता बढ़ी
हाल में हुई जांच में व्यापक पैमाने पर गड़बडी पाये जाने से सरकार की चिंता बढ़ी है. खरीफ मौसम में जांच हुई तो कालाबाजार में खेती वाली खाद बेचने का पर्दाफाश हुआ. व्यापारियों ने एक ही आधार कार्ड पर बड़ी मात्रा में खाद का उठाव किया है. इसके साथ ही नेपाल और दूसरे राज्यों की सीमा पर भी खाद व्यवसाइयों के सब एजेन्ट हैं, जो खाद लेकर गैर कृषि कार्य के लिए ऊंची कीमत पर बेचते हैं.
गैर कृषि कार्य में होता है 30% यूरिया का प्रयोग (30% Urea is Used in non-Agricultural Work)
यूरिया के नीम कोटेड होने से पहले सरकार ने देशभर में जांच कराई थी तो पता चला कि 30% यूरिया का प्रयोग गैर कृषि कार्य के लिए होता है. अभी दोबारा इसका सर्वे नहीं हुआ है, लेकिन यह दुरुपयोग अभी खत्म नहीं हुआ है. बिहार में 4 साल पहले तक यूरिया की खपत प्रति हेक्टेयर 130 किलो थी. यह बढ़कर अभी लगभग 170 किलो हो गया है. इससे भी यूरिया की मांग बढ़ी है.
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