देश में जेनेटिकली मॉडिफाइड (GM)फसलों को अनुमति देने में नरेन्द्र मोदी सरकार जल्दबाजी नहीं करेगी। जेनेटिक इंजीनियरिंग अप्रेजल कमेटी (GEAC) ने तीन महीने पहले GM सरसों के कमर्शियल प्रॉडक्शन की सिफारिश की थी, लेकिन एनवायरमेंट मिनिस्टर हर्षवर्धन ने कहा है कि उनकी मिनिस्ट्री वैज्ञानिकों और किसानों की ओर से उठाई गई आपत्तियों पर विचार कर रही है और इस बारे में कोई फैसला सोच-समझकर किया जाएगा।
हर्षवर्धन ने बताया, 'GEAC की ओर से जीएम सरसों को अनुमति देने की सिफारिश के बाद वैज्ञानिकों, किसानों और एनजीओ सहित संबंधित पक्षों ने आशंकाएं जताई हैं। इन फसलों के लंबी अवधि में स्वास्थ्य और पर्यावरण पर असर के साथ ही बहुत से अन्य मुद्दे उठाए गए हैं।' जीएम सरसों को दिल्ली यूनिवर्सिटी के सेंटर फॉर जेनेटिक मैनिपुलेशन ऑफ क्रॉप प्लांट्स (CGMCP) ने डिवेलप किया है। CGMCP का कहना है कि यह कीड़ों और बीमारियों से लड़ने में सक्षम है। इससे बेहतर यील्ड मिलेगी और पेस्टिसाइड का इस्तेमाल कम करना होगा। GEAC के अप्रूवल के बाद अंतिम फैसला मिनिस्ट्री को लेना है। मोदी सरकार को इस मुद्दे पर संभलकर चलना होगा क्योंकि 2014 के लोकसभा चुनाव के लिए घोषणापत्र में बीजेपी ने कहा था कि लंबी अवधि में मिट्टी, उत्पादन और उपभोक्ताओं पर जैविक प्रभाव को लेकर मूल्यांकन किए बिना देश में जीएम फसलों को अनुमति नहीं दी जाएगी।
सूत्रों का कहना है कि इस मुद्दे को लेकर बीजेपी से जुड़े संगठनों के विरोध के कारण भी मोदी सरकार संभलकर चल रही है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़े स्वदेशी जागरण मंच और भारतीय किसान संघ ने जीएम फसलों को अनुमति देने का विरोध किया है। भारतीय किसान संघ ने मिनिस्ट्री को इस संबंध में ज्ञापन भी दिया है। पिछली सरकारों के लिए भी जीएम फसलों का मुद्दा एक राजनीतिक मुश्किल रहा है। 2010 में GEAC ने बीटी बैंगन को अनुमति दी थी, लेकिन तत्कालीन एनवायरमेंट मिनिस्टर जयराम रमेश ने इस फैसले पर हस्ताक्षर करने से मना कर दिया था क्योंकि सिविल सोसाइटी की ओर से इसका कड़ा विरोध किया जा रहा था। अभी तक देश में केवल जीएम कॉटन को अनुमति दी गई है, जो एक गैर खाद्य फसल है। यह मुद्दा सुप्रीम कोर्ट में भी विचाराधीन है। सरकार ने कोर्ट को बताया है कि वह सितंबर तक कोई फैसला करेगी।
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