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सरकारी रोक के बाद भी बेधड़क पराली जला रहें पंजाब और हरियाणा के किसान

दिवाली के बाद से दिल्ली- एनसीआर में वायू प्रदूषण का स्तर काफी बढ़ा हुआ है जिसके चलते अस्पतालों में मरीजों की संख्या में 30% तक बढ़ोतरी हुई है वहीं दूसरी तरफ नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल के आदेशों के बावजूद भी पंजाब और हरियाणा के किसान बेधड़क पराली जला कर दिल्ली-एनसीआर के लोगों की परेशानी और बढ़ा रहे हैं.

दिवाली के बाद से दिल्ली- एनसीआर में वायू प्रदूषण का स्तर काफी बढ़ा हुआ है जिसके चलते अस्पतालों में मरीजों की संख्या में 30% तक बढ़ोतरी हुई है वहीं दूसरी तरफ नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल के आदेशों के बावजूद भी पंजाब और हरियाणा के किसान बेधड़क पराली जला कर दिल्ली-एनसीआर के लोगों की परेशानी और बढ़ा रहे हैं.

एक अनुमान के मुताबिक केवल पंजाब राज्य में हर साल 19.7 मिलियन टन पराली उत्पन्न होती है जिसका ज्यादातर हिस्सा आग के हवाले कर दिया जाता है. पंजाब में अब तक पराली जलाने की 1378 शिकायतें दर्ज की गई हैं. इन शिकायतों पर कार्रवाई करते हुए राज्य सरकार ने किसानों पर 7.27 लाख रुपये का जुर्माना भी किया है.

यह सभी शिकायतें धान की पराली की हैं इससे पहले इसी साल गेहूं की कटाई के दौरान पराली जलाने की 11000 शिकायतें मिली थीं और किसानों पर 61.3 दो लाख रुपये जुर्माना ठोका गया था, हालांकि पिछले साल की तुलना में पराली जलाने  के कम मामले दर्ज हुए हैं लेकिन किसानों पर सरकार की सख्ती का कोई ज्यादा असर नहीं हुआ है. पिछले साल पंजाब के किसानों पर पराली जलाने के आरोप में 73.2 लाख रुपये जुर्माना किया गया था. हालांकि असल में कितना जुर्माना वसूला गया इसके आंकड़े उपलब्ध नहीं हैं.

दरअसल उधर कर्जमाफी के मामले पर बैकफुट पर आई पंजाब सरकार किसी भी सूरत में किसानों से सख्ती नहीं बरतना चाहती. राज्य सरकार की साफ कर चुकी है कि वह पराली जलाने का प्रबंधन नहीं कर सकती क्योंकि उसके खजाने में पैसा नहीं है. इसके लिए राज्य सरकार ने किसानों को पराली के प्रबंधन में इस्तेमाल होने वाली मशीनों पर सब्सिडी देने के लिए केंद्र को 1109 करोड़ रुपये की एक योजना केंद्र के कृषि मंत्रालय को भेजी थी जो फाइलों में ही लटकी है. इस बाबत अब नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने केंद्र के कृषि मंत्रालय से जवाब तलबी की है.

पंजाब सरकार किसानों को पराली प्रबंधन के लिए मशीनें खरीदने की सलाह भी दे रही है लेकिन मशीनों की कीमत इतनी ज्यादा है कि किसान उसे खरीदने में असमर्थ हैं. किसान पहले ही कर्ज के बोझ तले दबे हुए हैं और उस सरकार उनको सब्सिडी का लालच देकर कर्ज लेने की सलाह दे रही है जो बात गले नहीं उतरती. गौरतलब है कि चॉपर श्रेडर मशीन की कीमत 4.5 लाख से लेकर 6 लाख रुपये, कटर रेक बेलर मशीन की कीमत 16 लाख रुपए और हैप्पी सीडर मशीन की कीमत 1.25 लाख से 1.40 लाख रुपये के बीच है जिसे किसानों की जेब पर भारी पड़ रही हैं.

पड़ोसी राज्य हरियाणा में भी किसान बेधड़क पराली जला रहे हैं. अब तक सेटेलाइट की मदद से 437 पराली जलाने के मामले दर्ज किए गए हैं और कुल 115 एफआईआर दर्ज की गई है . राज्य सरकार अब तक किसानों से चार लाख रुपये जुर्माना वसूल चुकी है . राज्य सरकार ने दावा किया था कि वह किसानों को पराली का वैज्ञानिक प्रबंधन के लिए जागरुक बना रही है.

सरकार ने हरियाणा स्टेट एप्लीकेशन सेंटर एजेंसी की सेवाएं लेकर सेटेलाइट की मदद से हर रोज उन जगहों को चिन्हित कर रही है जहां पर किसान पराली जला रहे हैं. सारी रिपोर्ट्स प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड तक पहुंचाई जा रही हैं ताकि दोषी किसानों के खिलाफ कार्रवाई की जा सके. सरकार ने पराली से उत्पन्न होने वाले प्रदूषण को रोकने के लिए हर जिले में जिलाधीश की अध्यक्षता में विशेष टीमें गठित की हैं जिसमें प्रदूषण नियंत्रण विभाग, कृषि विभाग और पुलिस विभाग के कर्मचारी शामिल हैं.

उधर पंजाब और हरियाणा सरकारें किसानों पर जुर्माने तो ठोक रही हैं लेकिन नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल के सामने किसानों का पक्ष रखने में नाकाम रही हैं. हार कर अब किसानों से जुड़े संगठन भारतीय किसान यूनियन ने एनजीटी के समक्ष पेश होकर किसानों का पक्ष रखा है. किसानों ने एनजीटी के सामने यह दलील रखी है कि अगर वह अपनी पराली का प्रबंधन कर भी लें तो उसे खरीदेगा कौन और पराली प्रबंधन में जो खर्चा आएगा उसे कौन उठाएगा? किसान संगठनों ने मांग की है कि फसलें उगाने  पहले ही घाटे का सौदा है, एक एकड़ में फसल उगाने का खर्चा ही तीन से चार हजार रुपये के बीच है और ऊपर से अब पराली प्रबंधन का खर्चा अलग से दो हजार रुपये प्रति एकड़ जोड़ दिया जाए तो खेत की सारी कमाई पराली ही खा जाएगी.

किसान संगठनों की बात सुनने के बाद एनजीटी ने केंद्रीय कृषि मंत्रालय और एनटीपीसी को तलब किया है कि क्या वह किसानों की पराली का इस्तेमाल कर सकता है. फिलहाल मामला एनजीटी के विचाराधीन है और अगले पंद्रह दिनों में किसान फसल काट कर फारिग हो जाएंगे क्योकि अब तक ज्यादातर फसल काटी जा चुकी है. यानी मामला अभी लंबा चलेगा.

 

English Summary: Farmers of Punjab and Haryana, even after the government's ban, should be burnt alive Published on: 23 October 2017, 01:03 AM IST

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