बिहार के कृषि मंत्री डॉ० प्रेम कुमार ने कहा कि राज्य में पपीता की व्यवसायिक खेती को बढ़ावा देने हेतु किसानों को सहायता अनुदान दिया जायेगा। बिहार में मुख्य रूप से समस्तीपुर, बेगूसराय, मुंगेर, वैशाली एवं भागलपुर जिला में पपीता की खेती व्यवसायिक स्तर पर खेती की जाती है। पपीता की सफल बागवानी हेतु गहरी और उपजाऊ, सामान्य पी. एच. मान वाली बलुई दोमट मिट्टी अत्यधिक उपयुक्त मानी जाती है। पपीता में औषधीय गुण, विटामिन ”ए“, विटामिन ”ई“ एवं खनिज लवण प्रचुर मात्रा में पाया जाता है, साथ ही कच्चे फल से पेठा, बर्फी, खीर, रायता एवं पक्के फल से जैम, जेली, नेक्टर तथा कैण्डी आदि बनाएं जाते हैं। पपीता में एक विशिष्ट प्रकार का एन्जाईम होती है, जो औषधीय रुप से काफी महत्वपूर्ण है। यह पेट के लिए काफी लाभकारी होती है। जिसके कारण पपीता उत्पादक किसान को आमदनी का मुख्य स्रोत है।
कृषि मंत्री ने कहा कि पपीता का अधिकतम प्रभेद डायोनियस प्रवृत्ति का होता है, जिसके कारण पपीता का नर एवं मादा पौधा अलग-अलग होते हैं। पपीता का अच्छा उत्पादन के लिए कम-से-कम 10 प्रतिशत नर पौधा परागण हेतु अनिवार्य है। पपीता का मुख्य अनुशंसित प्रभेदों में पूसा डेलिसियस पूसा मनेस्टी, पूसा ड्वार्फ, पूसा जायन्ट, पूसा नन्हा, राँची ड्वार्फ, रेड लेडी प्रमुख है। इन किस्मों में रेड लेडी से पपीता की खेती करना किसानों के लाभकारी है, क्योंकि इस किस्म के सभी पपीता पौधों पर फलन होता है एवं अन्य किस्मों की अपेक्षा ज्यादा उत्पादन होता है।
डॉ० कुमार ने कहा कि राज्य सरकार द्वारा किसानों को आमदनी बढ़ाने हेतु बागवानी मिशन योजना के तहत पपीता का क्षेत्र विस्तार कार्यक्रम को शामिल किया गया है। प्रति हेक्टेयर क्षेत्र में 3,086 पपीता का पौधा 1.8 मी० ग् 1.8 मी० की दूरी पर लगाया जाता है। इस योजना के तहत् राज्य के किसान पूर्व में भी लाभान्वित हुए हैं। वर्तमान वित्तीय वर्ष 2017-18 में 375 हे० (इकाई लागत 60,000 रू० प्रति हेक्टेयर) लक्ष्य निर्धारित है। पपीता की सघन खेती पर लागत मूल्य का 50 प्रतिशत यानी अधिकतम 30,000 रू० प्रति हेक्टर सहायता अनुदान दो किस्तों में 75:25 के अनुपात में देय है। पपीता की खेती के लिए इच्छुक किसान अपने जिले के सहायक निदेशक उद्यान के कार्यालय से सम्पर्क कर इस योजना का लाभ प्राप्त कर सकते हैं।
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