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ताड़ से आत्मनिर्भर हो रहे किसान...

बिहार के भागलपुर जिले में ताड़ के पत्तों से पंखा, चटाई, टेबल, फूल व गुलदस्ते व अन्य घरेलू सामग्री तैयार की जा रही है. इससे किसान आत्मनिर्भर हो रहे हैं. ताड़ ने किसानों को नया अवसर प्रदान किया है. अब ताड़ घरेलू के साथ कुटीर उद्योग का रूप लेता जा रहा है. ग्रामीण व ताड़ उत्पादक किसानों को बिहार कृषि विश्वविद्यालय के वैज्ञानिक प्रशिक्षण भी मुहैया करा रहे हैं. ताड़ के पत्तों से तैयार हो रहे हैं. पंखा, चटाई व फूल ताड़ के पत्तों से पंखा, चटाई, फैन्सी टेबल, फूल व गुलदस्ते बनाये जा रहे हैं. इससे कुटीर व महिलाओं को एक नया उद्योग मिला है.

बिहार के भागलपुर जिले में ताड़ के पत्तों से पंखा, चटाई, टेबल, फूल व गुलदस्ते व अन्य घरेलू सामग्री तैयार की जा रही है. इससे किसान आत्मनिर्भर हो रहे हैं. ताड़ ने किसानों को नया अवसर प्रदान किया है. अब ताड़ घरेलू के साथ कुटीर उद्योग का रूप लेता जा रहा है. ग्रामीण व ताड़ उत्पादक किसानों को बिहार कृषि विश्वविद्यालय के वैज्ञानिक प्रशिक्षण भी मुहैया करा रहे हैं. ताड़ के पत्तों से तैयार हो रहे हैं. पंखा, चटाई व फूल ताड़ के पत्तों से पंखा, चटाई, फैन्सी टेबल, फूल व गुलदस्ते बनाये जा रहे हैं. इससे कुटीर व महिलाओं को एक नया उद्योग मिला है.

इससे महिलाओं के आर्थिक सुधार के तौर पर भी देखा जा रहा है. ब्रश और झाड़ू भी बनाये जा सकते हैं ताड़ के डंठल के निचले भाग से उच्च किस्म का रेसा (फाइबर) प्राप्त किया जाता है इसके लिए मुख्यत: दो प्रकार के मशीन की जरूरत होती है. फाइबर को ब्रश या बड़े –बड़े झाड़ू बनाने के काम में लाया जा ता है. इसके डंठल का उपयोग ज्यादा से ज्यादा कर महिलाएं आत्मनिर्भर हो रहे हैं. कई उत्पाद तैयार हो सकते हैं बीएयू के वरीय वैज्ञानिक सह प्रसार निदेशक डॉ एस के सुहानी के अनुसार प्राकृतिक तौर पर उगने वाले ताड़ से विभिन्न उत्पाद तैयार किये जा रहे हैं. इनसे किसानों के आर्थिक लाभ उठाने की असीम संभावनाएं बढ़ी है.

ताड़ के विभन्नि उत्पादों का मूल्य संवर्धन कर उनके स्वाद में भिन्नता के साथ-साथ अधिक दिनों तक रखकर अधिक लाभ प्राप्त किया जा सकता है. डॉ सुहानी बताते हैं कि किसानों को ताड़ से संबंधित कई जानकारी दी जा रही है. किसान आत्मनिर्भर बनें, इसके लिये प्रशिक्षण दिया जा रहा है. ताड़ की कैंडी काफी लाभप्रद ताड़ मिश्री यानी ‘कैंडी’ से भी किसान आर्थिक स्थिति मजबूत कर सकते हैं. इसके साथ ही ग्रामीण ताड़ के कुआ का भी उपयोग कर पैसे कमा सकते हैं.

ताड़ के फल जब 60-70 दिनों के रहते हैं, तो ताड़ में बनने वाले बीज की जगह कोए पाये जाते है, जो नारियल पानी की तरह ठंडक पहुँचाने वाले होते हैं. ताड़ के फल से कोए को निकालकर इनका ऊपरी परत को हटाने के बाद उसे मि क्सी या फ्रूट मिल में डालकर पेस्ट बना लिया जाता है. इसके अलावा ग्रामीण व किसान ताड़ के फलों से जैम भी बना सकते हैं. इस फल का गुदा व पेक्टिन युक्त फल का 2:8 के अनुपात में मिला कर पकाया जाता है.

  • संदीप कुमार

 

English Summary: Farmers becoming self-reliant with palm ... Published on: 12 May 2018, 01:14 AM IST

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