राजस्थान के शुष्क क्षेत्र में बाड़मेर में जीरा एक महत्वपूर्ण नकदी फसल है। बाड़मेर में इसे बड़े पैमाने पर उगाया जाता है। नकदी फसल होने के कारण किसान रासायनिक उर्वरकों एवं कीटनाशी का प्रयोग अधिक करते हैं जिससे कीटनाशी रसायन का अंश जीरा में पाए जाने के कारण निर्यात नहीं हो पाता है।
सुमिन्तर इंडिया आर्गेनिक ने इस बात को सज्ञान में लेते हुए जैविक खेती जागरूकता अभियान में जैविक जीरा उत्पादन हेतु किसानों को जागरूक किया जिसके लिए नौ स्थानों पर मॉडर्न फार्म/आर्दश प्रक्षेत्र बनाया गया जो किसान की भागीदारी से किसान के खेत पर ही बनाए गए है। इसी प्रक्षेत्र के समीप किसान गोष्ठी एवं प्रशिक्षण आयोजन होता है। जिसकी शुरूआत वेस्ट डी-कम्पोस्ट की सहायता से दो माह में उत्तम किस्म की कम्पोस्ट बनाकर की गई।
कम्पनी के वरिष्ठ प्रबंधक शोध एवं विकास संजय श्रीवास्ताव ने बताया कि जैविक खेती का मूल आधार उत्तम जैविक खाद एवं स्थानीय रूप से उपलब्ध वनस्पति के अर्क एवं समय से अपनाई जाने वाली सस्य क्रिया है। इसी को ध्यान में रखकर खाद बनाने, बीज उपचार, फसल संरक्षण, कटाई उपरान्त फसल प्रबंधन पर गोष्ठी एवं प्रशिक्षण दिया गया। बीज उपचार की महत्ता को बताया गया, बीज उपचार हेतु ट्राइकोडर्मा का उपयोग करना साथ ही एजोरोवैक्टा, पी.एस.वी. पोटाश एवं जिंक जीवाणु खाद से उपचारित कर बीज बोया गया जिससे स्वस्थ जमाव को देख कर अन्य किसानों ने भी अपनाया। समय पर फसल की प्रत्येक अवस्था पर जीवामृत, डी-कम्पोजर का स्प्रे करना, कीट को पाटा लगाने हेतु यकोस्टीकी हेतु। जीवा चिपकने वाले ट्रैप का प्रयोग करना, नीम तेल आदि का स्प्रे खड़ी फसल पर करना बताया गया।
आर्दश प्रक्षेत्र पर निरंतर जीरे की फसल तैयार है कटाई आरम्भ है। किसानों में यह विश्वास जगा है कि जैविक विधि से जीरा उत्पादन करने में अपने पास उपलब्ध गोबर आदि का उपयोग कर कम लागत में ही जैविक जीरा उगाया जा सकता है।
जिन किसानों ने इस वर्ष थोड़े क्षेत्र में प्रयोगिकरूप से उगाया है वो अगली जैविक जीरे की फसल बड़े क्षेत्र पर करने को तैयार है।
सुमिन्तर इंडिया आर्गेनिक ने जैविक जीरा उत्पादन हेतु आर्दश प्रक्षेत्र, बाड़मेर के भीमड़ा, राकरोड़ा, रामसर डुआ, नवदेवछतरी, रत्नावीनाड़ी गांव में नौ स्थान पर बनाया है।
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