खिलने से पहले ही मुरझा गया बंगाल में बीजेपी का कमल. कल तक नेताओं की दस्तक से गुलजार रहने वाली बंगाल की गलियों में बीजेपी नेताओं की उदासी साफ झलक रही है. बेशक, वे इसका इजहार न करें, मगर उनके लबों से निकले हर अल्फाज़ बखूबी इसे बयां करते दिख रहे हैं. बेशक, बीजेपी आलाकमान सियासी रवायतों का पालन करते हुए अपने नेताओं व कार्यकर्ताओं का उत्साहवर्धन करते दिख रहे हों, मगर जो झटका दीदी ने उन्हें दिया, वह उसे भूला नहीं पाएंगे. पीएम मोदी से लेकर अमित शाह, अमित शाह से लेकर जगत प्रकाश नड्डा तक, बीजेपी के बड़े-बड़े सूरमाओं ने सारे दांव चल दिए, लेकिन ममता के हर दांव के आगे उनका दांव उल्टा ही पड़ा. नतीजा, यह हुआ की बीजेपी अपने ही बुने जाल में फंस गई.
अब बंगाल में ममता अपनी सरकार बनाने की तैयारियों में जुट चुकी हैं. खैर, ममता की जीत के बाद बड़े-बड़े सियासी सूरमाओं के दिए बयान बंगाल की गलियों में गूंज रहे हैं. इस बीच एक ऐसा ही बयान संयुक्त किसान मोर्चा की तरफ से भी आया है. किसान मोर्चा ने कहा कि बंगाल में ममता की जीत से वे खुश हैं. बीजेपी को अपने कर्मों की सजा मिली है. यूनियन ने कहा कि बीजेपी को मिली शिकस्त की मुख्य वजह किसानों की नाराजगी है. किसान भाई बीते कुछ माह से केंद्र सरकार से ख़फ़ा हैं. आलम यह है कि अपने ही गुरुर में चूर हो चुकी हुकूमत के पास इतना भी समय नहीं है कि वे अन्नदाताओं की सुध ले सके.
इतना ही नहीं, किसान नेताओं ने केंद्र सरकार को नसीहत देते हुए कहा कि बंगाल मे करारी शिकस्त से सबक लेते हुए अब उन्हें तीन विवादित कृषि कानूनों को वापस ले लेना चाहिए. हमारे किसान भाई विगत वर्ष 26 नवंबर से कृषि कानूनों के खिलाफ आंदोलनरत हैं, लेकिन सरकार हमारी सुध लेने को भी तैयार नहीं है. बंगाल में हुई बीजेपी की हार का नतीजा भी यही है.
गौरतलब है कि चुनाव प्रचार के दौरान किसान नेताओं ने लोगों से अपील की थी कि वे बीजेपी को वोट न दें. इसी बीच किसान नेता अविक साहा ने मीडिया से बातचीत के दौरान कहा कि पूरे देश का किसान केंद्र सरकार की नीतियों से त्रस्त आ चुका है. किसान केंद्र सरकार से इन कानूनों को वापस लेने के लिए गुहार लगा रहे हैं, लेकिन सरकार उनकी मांगों को अनसुना कर रही है.
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