कपास की मांग पूरी दुनिया मे सबसे अधिक होती है. इसी वजह से कपास का उत्पादन भी सबसे अधिक होती है. इसलिए इसे श्वेत स्वर्ण (white gold) यानी सफ़ेद सोना के नाम से भी जाना जाता है. आपको बता दें कि कपास वह नगदी फसल है, जिसकी खेती से किसानों को सबसे अधिक मुनाफा प्राप्त होती है.
यह फसल किसानों को आर्थिक रूप से मजबूत बनाती हैं. देखा जाए तो भारत के कई राज्यों में कपास की खेती की जाती है. अगर आप भी इसकी खेती से अधिक मुनाफा प्राप्त करना चाहते हैं, तो इसके लिए आपको कपास में लगने वाले रोग व कीट प्रबंधन के बारे में पता होना चाहिए. इसी क्रम में आज यानी 30 जुलाई 2022 को कृषि जागरण ने किसान भाइयों की मदद के लिए एक लाइव वेबिनार का आयोजन किया, जिसमें कपास में रोग एवं कीट प्रबंधन (Diseases and pest management in cotton) के बारे में विस्तार से बताया गया है.
आपकी जानकारी के लिए बता दें कि इस वेबिनार में एमसी डोमिनिक, संस्थापक और प्रधान संपादक, कृषि जागरण सहित भारत के कई प्रतिष्ठित स्पीकरों ने सत्र में भाग लिया और अपने विचार साझा किए.
इस वेबिनार के अहम बिंदु (Highlights of the webinar )
इस सत्र को कृषि जागरण के फेसबुक पेज पर सीधा प्रसारण किया गया. कृषि जागरण की कंटेंट मैनेजर (हिंदी) श्रुति जोशी निगम ने सभी अतिथि वक्ताओं का स्वागत करते हुए वेबिनार की शुरुआत की. उन्होंने कपास में रोग एवं कीट प्रबंधन के महत्व पर जोर दिया.
एम.सी. डोमिनिक, कृषि जागरण के संस्थापक और प्रधान संपादक, ने ऑनलाइन कार्यक्रम का संचालन किया. उन्होंने सभी अतिथियों और प्रतिभागियों का अभिवादन किया. इस कार्यक्रम को आगे बढ़ाते हुए डॉ. सी डी माई, अध्यक्ष, एएफसी इंडिया के निदेशक मंडल ने कपास की नई तकीनक को लेकर किसानों को अवगत करवाया. इन्होंने कपास में लगने वाली रोग गुलाबी सुंड़ी पिछले 4 सालों में बहुत तेजी से बढ़ा है. इसके बचाव के लिए हमने नए-नए उपयोगों का इस्तेमाल किया है. इसके अलावा उन्होंने इस बात के बारे मे भी कहा कि हम कपास को किस तरह की खाद दें जिससे फसल की पैदावार अधिक हो सके और बीमारियां कम हो सके.
डॉ. अर्चना कुमारी, क्षेत्रीय निदेशक, कीटनाशक निर्माता और सूत्रधार संघ भारत ने सर्वप्रथम कृषि जागरण की टीम को धन्यवाद देते हुए कहा कि कपास में गुलाबी सुंडी की दिक्कत सबसे अधिक देखने को मिलती है. उन्होंने कहा कि पंजाब और हरियाणा में कपास की फसल (cotton crop) पर गुलाबी सुंडी से 80 प्रतिशत फसल प्रभावित हुई है. इसे रोकने के लिए किसानों को फसल में कीटनाशकों का इस्तेमाल करना चाहिए और साथ ही नई तकनीकों का भी इस्तेमाल करना चाहिए.
डॉ अजंता बिराह, प्रधान वैज्ञानिक, (एजी कीट विज्ञान) भाकृअनुप-राष्ट्रीय अनुसंधान केंद्र एकीकृत कीट प्रबंधन, नई दिल्ली, उन्होंने कहा कि आज के समय में कपास में गुलाबी सुंडी सबसे गंभीर समस्या है. अगर किसान भाई मिलकर इसके लिए काम करते हैं, तो जल्द समाधान मिलेगा. यह किसानों के लिए समझना जरूरी है, तभी इसका समाधान हो सकता है. किसान साफ-सुधरी कपास को अलग रखें और बीमारी से ग्रस्त कपास (disease-ridden cotton) को अलग कर नष्ट कर दें. इसके अलावा आपको फसल में नई-नई तकनीकों का इस्तेमाल करना चाहिए. इससे किसानों को इससे अधिक डरने की जरूरत नहीं है. इन बीमारियों से किसान भाई मिलकर सरलता से छुटकारा पा सकते हैं.
डॉ. बाबासाहेब फैंड, वरिष्ठ वैज्ञानिक (कृषि कीट विज्ञान), केंद्रीय कपास संस्थान अनुसंधान, नागपुर महाराष्ट्र ने कहा कि वर्तमान समय में बारिश के कारण फसल की उपज और गुणवत्ता दोनों में कमी देखने को मिल रही है. इससे फसल में रस चूसने वाले कीड़ों का प्रभाव अधिक हो जाता है. इसके अलावा उन्होंने किसानों को यह भी सलाह दी कि फसल को लगाने के बाद लगभग 60 दिनों तक किसी भी रासायनिक कीट का इस्तेमाल ना. कपास की फसल में जैसे ही आपको रोग वाले फूल दिखने लगें तो उसे चुनकर नष्ट कर देना चाहिए. इसके अलावा उन्होंने यह भी बताया कि ज्यादातर किसान बार-बार छिड़काव करने से बचने के लिए एक बार में कई दवाओं का मिश्रण कर एक बार ही छिड़काव कर देते हैं. ऐसा आपको नहीं करना चाहिए. अगर आप ऐसा करते हैं, तो इससे भी फसल की पैदावार पर प्रभाव पड़ता है. साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि किसान अपने खेत की बॉर्डर बना रखें है, लेकिन कीटों के लिए कोई बॉर्डर नहीं होता है, वह एक खेत से दूसरे खेत में आसानी से जाकर फसल पर आक्रमण करते हैं.
डॉ. दीपक नागराले, वरिष्ठ वैज्ञानिक (प्लांट पैथोलॉजी), सेंट्रल इंस्टीट्यूट फॉर कॉटन रिसर्च ने भी इस वेबिनार भी अपने विचारों को व्यक्त करते हुए कहा की किसानों को कपास में लगने वालों रोग व कीट के बारे में बताया. कपास की खेती पर यह अपना प्रभाव डालते हैं. इसके लिए उन्होंने गोबर खाद व नई तकनीकों के बारे में किसानों को बताया. इसके अलावा उन्होंने महाराष्ट्र के किसानों के बारे में भी बताया कि इस समय बारिश अधिक होने के कारण कपास की फसल पर सबसे अधिक प्रभाव पड़ रहा है. वहां के खेतों में पानी अधिक भर गया है और सही से धुप नहीं मिल पा रहा है. जिससे वहां के किसानों को बेहद नुकसान का सामना करना पड़ रहा है और साथ ही उन्होंने कपास के रोग पर रोकथाम के लिए कई दवाइयों के बारे में बताया जिसका छिड़काव करने से फसल में रोग का प्रभाव कम होता है.
डॉ. एस के परसाई, वरिष्ठ वैज्ञानिक, कपास पर एआईसीआरपी, बी.एम. कृषि महाविद्यालय खंडवा, मध्य प्रदेश के किसानों को कपास की खेती (cotton cultivation) के बारे में बताया कि मध्य प्रदेश के किसानों के लिए हरी कीड़े का प्रभाव (green worm effect) सबसे अधिक होता है और साथ ही मध्य प्रदेश में कपास की प्रस्थिति गुलाबी सुंडी से सबसे अधिक ग्रस्त होती है. बीटी कपास को इन रोगों से बचाता है. ऐसे में यह किसानों के लिए किसी वरदान से कम नहीं है. इसके अलावा किसान अपने खेत में फसल के कुछ अवशेष छोड़ देते हैं, तो यह भी इन रोगों का मुख्य कारण हो सकता है. फसल में लगातार कीटनाशक के उपयोग से किसान बचें. ताकि फसल में कीट (crop pests) के प्रकोप को बढ़ने से रोका जा सके.
इसके अलावा इस वेबिनार में भूपेंद्र वीरेंद्र, प्रगतिशील किसान, खंडवा मध्य प्रदेश, डॉ. पी.के. चक्रवर्ती, सदस्य (पादप विज्ञान) कृषि वैज्ञानिक भर्ती बोर्ड, केएबी-1, नई दिल्ली, डॉ. राकेश के. पटेल, वैज्ञानिक (पौध संरक्षण), कृषि विज्ञान केंद्र, नवसारी कृषि विश्वविद्यालय, सूरत, गुजरात, डॉ. वाजिद हसन, विषय वस्तु विशेषज्ञ, कीट विज्ञान, कृषि विज्ञान केंद्र, जहानाबाद बिहार, डॉ चंचल सिंह, विषय वस्तु विशेषज्ञ, पौध संरक्षण, कृषि विज्ञान केंद्र, हमीरपुर, उत्तर प्रदेश ने भी अपने इस विषय पर अपने विचार व्यक्त किए और कृषि जागरण को धन्यवाद देते हुए कहा की यह किसानों के लिए लाभदायक साबित होगा. अंत में इस लाइव वेबिनार में उपस्थित सभी अतिथिगणों का धन्यवाद के साथ आभार प्रकट कर कृषि जागरण के मुख्य परिचालन अधिकारी डॉ. पीके पंत (COO) ने कार्यक्रम का समापन किया.
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