कुछ ऐसी है अहमदाबाद की इस पहली महिला आईपीएस की कहानी
जब किसी काम को करने का जूनून सिर पर चढ़ जाता है तो फिर इंसान अपनी मंजिल को हासिल कर ही लेता है. किसी इन्सान के मन का मन तब तक शांत नहीं होता जब तक कि उसको अपने मनमाफिक कार्य न मिल जाए. वो इन्सान अपनी मंजिल पर पहुँचने के लिए दिन रात एक कर देता है. कुछ ऐसी ही कहानी है अहमदाबाद की पहली महिला आईपीएस मंजीत वंजारा की .
मंजीत वंजारा एक ऐसे परिवार से ताल्लुक रखती है, जिनके परिवार में ज्यादातर लोग आईपीएस, आईएएस और सरकारी अधिकारी है. घर में आईएएस और आईपीएस लोगों होने के बावजूद भी मंजीत वंजारा ने कभी नहीं सोचा था की वो एक पुलिस अफसर बनेगी.
मंजीता का आईपीएस बनने का सफर कुछ ज्यादा ही दिलचस्प रहा है. घर में आईएएस और आईपीएस अधिकारी होने के बावजूद कभी उनके मन में आईपीएस बनने का ख्याल ही नही आया. यही वजह थी कि स्कूल की पढ़ाई खत्म करने के बाद उन्होंने अपने मन के मुताबिक पढाई की. पहले उन्होंने इंजीनियरिंग की पढ़ाई करने का फैसला किया. निरमा यूनिवर्सिटी गुजरात से बीटेक करने के बाद उन्होंने फैशन डिजाइनिंग को चुना और देश के प्रतिष्ठित संस्थान निफ्ट में एडमिशन ले लिया. यहाँ से अपना कोर्स पूरा करने के बाद उनको बड़े ब्रैंड के साथ बतौर फैशन डिजाइनर की नौकरी मिल गई. यहाँ पर भी उनका मन नहीं लगा उन्होंने फिर से पढने का मन बनाया. उन्होंने एजुकेशन में मास्टर डिग्री को पूरा किया. इतने सालों में मंजीता को कई तरह के अनुभव हासिल हुए और उन्हें कई चुनौतियों व संघर्ष का भी सामना करना पड़ा. एक समृद्ध परिवार में जन्म लेने के बावजूद भी मंजीत को जरूरत से ज्यादा सुविधाएं मिली. उन्हें कभी कार चलाने को नहीं दी गई और हमेशा से सार्वजनिक परिवहन का इस्तेमाल करने को कहा गया.
अपने पोस्ट ग्रेजुएशन के दौरान उनको ख्याल आया कि एक नागरिक के तौर पर हम अपने समाज और देश को क्या दे रहे हैं. इसके बाद से उनको लगा की सिविल सर्विसेज ज्वाइन करना चाहिए ताकि समाज सेवा की जा सके. तभी से उन्होंने सिविल सर्विसेज की तैयारियां शुरू कर दीं. हालांकि सिविल सर्विसेज की परीक्षा को क्लियर करना इतना आसान नहीं होता. इसलिए ख़ास बात यह रही कि मंजीता ने पहली बार में ही साल 2011 में यह परीक्षा पास कर ली और 2013 में अहमदाबाद की प्रथम महिला एसीपी बन गई. आज मंजीता एक ऐसा नाम बन चुका है जिससे की अपराधियों की हवा खराब हो जाती है. उनकी छवि एक सख्त पुलिस ऑफिसर की है जो रात में अकेले छापेमारी करने, जान का जोखिम भी ले लेती हैं.
मंजीता का मानना है कि देश और उसमें रहने वाले नागरिकों की सेवा करना पहला कर्तव्य है. हमें उनकी समस्याएं सुननी होती हैं और जितनी हो सके उसका समाधान भी निकालना होता है. वो कहती हैं कि मेरे कई दोस्त ऐसे हैं जो लाखों रुपये हर महीने कमाते हैं, लेकिन मेरे लिए किसी गरीब की मदद करना, किसी बच्चे को शिक्षा उपलब्ध कराना या मुश्किल में फंसे किसी इंसान के चेहरे पर मुस्कुराहट लाना कहीं ज्यादा महत्वपूर्ण है.
वह कहती हैं, 'मेरे लिए सिविल सेवा में आने का मकसद पैसे कमाना कभी नहीं रहा है. मैं हमेशा से लोगों की मदद करना चाहती थी और इस काम में मुझे खुशी मिलती है. मंजीता ने अपने पुलिस विभाग की ओर से गरीब महिलाओं के जीविकोपार्जन के लिए 'सुरक्षासहाय' नाम से एक योजना चलाई है. जिसमें एक एनजीओ की मदद से चारानगर की महिलाओं को रोजगार मुहैया करवाया जाता है.
मंजीता के पिता केजी वंजारा भी आईएएस अफसर रहे हैं उनके अंकल डीजी वंजारा गुजरात के बहुचर्चित आईपीएस अफसर में गिने जाते हैं. हालांकि मंजीता की मां एक ऐसे गांव से आती हैं जहां पर शिक्षा का कोई साधन उपलब्ध नहीं था. लेकिन उन्होंने अपनी बेटी को पढ़ाने में कोई कसर नही छोड़ी. मंजीता कहती हैं कि इंजीनियर से फैशन डिजाइनर और फिर एसीपी बनने का सफर काफी शानदार रहा. मंजीता का कहना है कि अभी उनको बहुत कुछ करना बाकी है.
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