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आज हम ऐसी महिला की बात करेंगे जिसने आदमी और औरत के बीच को भेद को खत्म कर एक नया कीर्तिमान स्थापित किया और महिलाओ के लिए एक उदाहरण साबित हुई |
साजदा के पति एक डाकिये थे | पति के देहांत होने के बाद उसे जब डाकिये की नौकरी मिली तो उसके लिए बहुत मुश्किल हुआ यह फैसला लेना की वो इस नौकरी को कैसे कर सकती है । क्योंकि उसने कभी अकेले घर के बाहर कदम तक नहीं रखा था | उसके लिए गलियों में जाकर डाक बाँटना किसी चुनौती से कम नहीं था। उसे तो मर्दो से बात करने में भी हिचकिचाहट होती थी डाकिया की नौकरी करना उसके लिए बहुत बड़ा फैसला था | क्योंकि हमारे समाज में औरतों को बस घर के अंदर ही रखते है | उसने जब देखा की अगर एक महिला लेबर काम कर अपने बच्चों का पेट भर सकती है तो में भी यह कर सकती हूँ | उसने यह फैसला सिर्फ अपने परिवार के लिए लिया क्योंकि वो किसी के आगे हाथ नहीं फैलाना चाहती थी | साजदा अब अपने इस
वह कई बार जब लोगों के घर जाती है तो पहले उन्हें समझने में थोड़ा वक्त लगता है कि मैं डाकिया हूँ। उनकी ग़लती नही है, ऐसे कई पेशे हैं जिसमें लड़कियां कभी दिखती ही नहीं तो लोग तो वैसे ही सोचेंगे। लेकिन बहुत ख़ुशी होती है जब वह मेरे बारे में जान ना चाहते हैं और अपने घर के लोगों को भी बताते हैं, 'देखो, महिला डाकिया भी होती हैं, हमें तो पता ही नहीं था |
फैसले से खुश है और एक अच्छी ज़िंदगी जी रही है |
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