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पशुओं का ‘आधार कार्ड’: ईयर टैगिंग से होगी पहचान, पशुपालकों को हर योजना का मिलेगा सीधा लाभ

Ear Tagging: ईयर टैगिंग तकनीक के माध्यम से भारत में पशुओं को 12 अंकों की यूनिक आईडी दी जा रही है, जिससे उनकी पहचान, ट्रैकिंग, टीकाकरण, बीमा और सरकारी योजनाओं का लाभ आसान हुआ है. अब तक 30 करोड़ से अधिक पशु टैग किए जा चुके हैं, जिससे पशुपालन अधिक संगठित बन रहा है.

KJ Staff
Animal Insurance
Ear Tag: पशुपालकों को लाखों के नुकसान से बचाने वाला 12 अंकों नंबर (Image Source: pixabay)

Animal Tagging: भारत में पशुपालन एक ऐसा क्षेत्र है, जो न केवल ग्रामीण अर्थव्यवस्था की रीढ़ है, बल्कि लाखों परिवारों की जीविका का भी प्रमुख साधन है. गाय, भैंस, बकरी, भेड़ जैसे पशु न केवल दूध, मांस या ऊन के स्रोत होते हैं, बल्कि किसान की आर्थिक स्थिरता में भी अहम भूमिका निभाते हैं. पशुपालकों के लिए सबसे बड़ी चिंता यह होती है कि जब कोई पशु बीमार हो जाए, खो जाए या मर जाए, तो पशुपालकों को बड़ा नुकसान होता है. ऐसे में पशुओं की पहचान और निगरानी के लिए एक नई तकनीक सामने आई है – ईयर टैगिंग. इसमें हर पशु को एक खास 12 अंकों की यूनिक आईडी दी जाती है, जो उसके कान में लगे टैग के जरिए पहचानी जाती है.

यह ठीक वैसे ही है जैसे इंसानों का आधार कार्ड होता है. इससे न केवल पशुओं की ट्रैकिंग आसान हो जाती है, बल्कि टीकाकरण, बीमा और इलाज जैसी सेवाएं भी बेहतर ढंग से दी जा सकती हैं. यह तकनीक पशुपालन को अधिक सुरक्षित और व्यवस्थित बना रही है.

क्या है ईयर टैगिंग?

ईयर टैगिंग का अर्थ है. पशु के कान में एक विशेष पहचान टैग लगाना, जिसमें 12 अंकों का एक यूनिक नंबर अंकित होता है. यह नंबर सरकार द्वारा जारी किया जाता है. इससे जुड़ी सभी जानकारी एक डिजिटल डेटाबेस में दर्ज होती हैं. इस टैग में न केवल पशु की नस्ल, उम्र, टीकाकरण की स्थिति और स्वास्थ्य से जुड़ी जानकारी होती है, बल्कि इसके ज़रिए यह भी रिकॉर्ड किया जाता है कि उसका मालिक कौन है, कहां रहता है और उस पर क्या सरकारी योजनाएं लागू होती है.

पशुओं को ईयर टैगिंग में 30 करोड़ टैग जारी

सरकारी आंकड़ों की मानें तो अब तक देशभर में लगभग 30 करोड़ पशुओं को ईयर टैगिंग के तहत यूनिक नंबर दिया जा चुका है. यह कार्य केवल पशुओं की गिनती या रिकॉर्ड रखने तक सीमित नहीं है, बल्कि इसका मुख्य  पशुपालकों को अधिकारों से जोड़ना और उन्हें योजनाओं का वास्तविक लाभ देना है. टैग के बिना न तो बीमा क्लेम किया जा सकता है और न ही किसी सरकारी योजना का सीधा लाभ मिल सकता है.

कैसे काम करता है यह टैग?

पशु के कान में लगाया गया यह टैग आम तौर पर प्लास्टिक से बना होता है और इसमें साफ-साफ 12 अंकों की संख्या लिखी होती है. जब कोई अधिकृत अधिकारी या पशुपालक इस नंबर को संबंधित सरकारी पोर्टल पर दर्ज करता है, तो उस पशु की पूरी जानकारी स्क्रीन पर आ जाती है. उदाहरण के लिए, अगर कोई गाय बीमार पड़ती है, तो डॉक्टर यह देख सकते हैं कि उसका पिछला टीकाकरण कब हुआ था, उसे किन दवाओं का रिएक्शन हुआ था या वह किस नस्ल की है.

लेखक: रवीना सिंह, इंटर्न, कृषि जागरण

English Summary: Ear Tag provide full benefit of insurance and government schemes benefits know here Published on: 10 June 2025, 03:22 PM IST

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