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क्या आपको पता है कड़कनाथ क्यों है बाकी मुर्गों से कड़क...

अगर आप मांसाहारी खाने के शौकीन हैं तो कड़कनाथ मुर्गे से जुड़ी यह खबर आपको अच्छी लग सकती है. अब मध्यप्रदेश के इस मशहूर मुर्गे को आप एप पर ऑर्डर देकर मंगवा सकते हैं. प्रोटीन और स्वाद से भरपूर कड़कनाथ मुर्गे की दूर दूर तक पहचान है. जानिए इस खास किस्म के मुर्गे से जुड़ी कुछ और खास बातें.

अगर आप मांसाहारी खाने के शौकीन हैं तो कड़कनाथ मुर्गे से जुड़ी यह खबर आपको अच्छी लग सकती है. अब मध्यप्रदेश के इस मशहूर मुर्गे को आप एप पर ऑर्डर देकर मंगवा सकते हैं. प्रोटीन और स्वाद से भरपूर कड़कनाथ मुर्गे की दूर दूर तक पहचान है. जानिए इस खास किस्म के मुर्गे से जुड़ी कुछ और खास बातें.

मध्यप्रदेश सरकार ने यह घोषणा की है कि प्रोटीन और स्वाद से सराबोर कड़कनाथ मुर्गे को आप घर बैठे ऑर्डर कर सकते हैं.  यह काम आप एक एप के ज़रिए कर सकते हैं जिसे राज्य के सहकारी विभाग ने तैयार किया है. इस ख़बर को पढ़ने के बाद जो कड़कनाथ के बारे में जानते हैं, उनकी खुशी का ठिकाना नहीं रहा. लेकिन जिन्हें नहीं पता कि यह कड़कनाथ किस बला का नाम है, तो उनके लिए हम इस मुर्गे से जुड़ी कुछ जानकारियां लेकर आए हैं.

यह एक दुर्लभ मुर्गे की प्रजाति है. यह काले रंग का मुर्गा होता है जो दूसरी मुर्गा प्रजातियों से ज्यादा स्वादिष्ट, पौष्टिक, सेहतमंद और कई औषधीय गुणों से भरपूर होता है. एप पर दी गई जानकारी के मुताबिक जहां कड़कनाथ में 25 प्रतिशत प्रोटीन है, वहीं बाकी मुर्गों में 18-20 फीसदी प्रोटीन ही पाया जाता है.

कड़कनाथ को कालीमासी भी कहा जाता है क्योंकि वह काले रंग का होता है. इसकी विशिष्ट प्रजाति होने की वजह से ही यह ब्रोइलर चिकन से तीन से पांच गुना ज्यादा दाम पर बेचा जाता है. इसे खरीदने वाले बताते हैं कि इसका दाम 500 रुपये किलो से शुरू होता है.

मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ के बीच कड़कनाथ पर अधिकार को लेकर लड़ाई चल रही थी. लेकिन हिंदुस्तान टाइम्स में छपी एक रिपोर्ट के मुताबिक मध्यप्रदेश ने इस मुर्गे की भौगोलिक पहचान से जुड़ा टैग हासिल कर लिया है. यह राज्य के पश्चिमी हिस्से के झाबुआ जिले में पाया जाने वाला मुर्गा है. वहीं पड़ोसी राज्य छत्तीसगढ़ भी काफी वक्त से इस पर दावा करता आ रहा है.

राज्य सरकार द्वारा संचालित मुर्गी पालन के अहाते में कड़कनाथ के ढाई लाख चिकन पैदा किए जाते हैं. मध्यप्रदेश ने चिकन की इस प्रजाति के लिए पहला मुर्गा पालन केंद्र 1978 में स्थापित किया था. जहां तक इस नए एप की बात है तो यूज़र्स इससे फिलहाल खुश नज़र नहीं आ रहे हैं. कहा जा रहा है कि एप न तो इन्वेंट्री लिस्ट दिखा रहा है, न ही ठीक से समझ आ रहा है कि खुद को रजिस्टर कैसे किया जाए. कुल मिलाकर कड़कनाथ मुर्गा जितना कड़क है, उसका एप फिलहाल उतना दमदार दिखाई नहीं दे रहा है.

English Summary: Do you know why Kadaknath is resting with other cats? Published on: 04 April 2018, 12:55 AM IST

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