कृषि विज्ञान केन्द्र पन्ना के डॉ. बी.एस. किरार वरिष्ठ वैज्ञानिक एवं प्रमुख, डॉ. आर.के. जायसवाल एवं डॉ. आर.पी. सिंह वैज्ञानिको द्वारा विगत दिवस ग्राम - तारा में पपीता उत्पादक कृषक श्री रावेन्द्र गर्ग, के प्रक्षेत्र पर पपीता पौधों का अवलाकन किया गया। वैज्ञानिको ने अवलोकन के दौरान कृषक को पपीता उत्पादन तकनीकी सलाह के तहत् एक एक थाला में केवल एक ही पौधा रखें और पौधे के प्रति थाला में गोबर खाद 5 कि. ग्रा., यूरिया 100 ग्राम, सिंगल सुपर फास्फेट 250 ग्राम, एवं म्यूरेट आप पोटाश 100 ग्राम सभी को मिलाकर डालने के बाद गुडाई कर मिट्टी में मिला दे और पौधे के आसपास मिट्टी चढाकर सिंचाई करे जिससे सीधे तना को पानी न लगे अन्यथा पौध में जड़ गलन बीमारी हो सकती है।
पपीता पौधे में पीला मोजेक विषाणु रोग भी देखा गया। यह सफेद मख्खी द्वारा फैलने वाला विषाणुजनित रोग है। इसमें पत्तियां पीली पड़ जाती है और ऊपर से सिकुड जाती है जिससे पौधें की बढवार फूल एवं फलन बुरी तरह प्रभावित होता है। इस रोग के प्रबंधन में सफेद मक्खी को नियंत्रण करने के लिये इमिडाक्लोप्रिड 17.8 प्रतिशत एस. एल. दवा 80 मिलीलीटर या डायमेथेएट 30 ई. सी. 300 मिलीलीटर प्रति एकड़ 150-200 लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करें।
इसके बाद पुनः एक बार 12-15 दिन में दूसरा छिड़काव करना लाभदायक होगा। पपीता फसल पाला के प्रति अधिक संबेदनषील है इसलिये वर्तमान में पाला से बचाव हेतु सिंचाई अवष्य करे और घुलनषील गंधक 3 ग्राम प्रति लीटर पानी की दर से घोल बनाकर छिड़काव करें।
अधिक जानकारी के लिए, कृषि विज्ञान केन्द्र पन्ना, ई-मेल: [email protected] पर सम्पर्क करें।
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