दिल्ली में प्रदूषण की मार को पठकनी देने के लिए एक शानदार पहल की गयी है. दरअसल, दिल्ली में फैले जहरीले धुंध (Delhi Pollution) से तंग आकर दो युवाओं ने एक साल इस शोध में बिताया कि कारों को "ग्रीन गद्दी" (Green Gaddi) में कैसे बदला जाए. ऐसे में वे अपनी अनूठी हरित पहल को बेहतर बनाने और फैलाने के लिए विचारों को क्राउडसोर्स करना चाहते हैं.
ग्रीन गद्दी से स्वच्छ होगा वातावरण (Green Gaddi Concept for Environment)
दिल्ली के निवासी गौरव आहूजा और खुशबू रस्तोगी (Gaurav Ahuja and Khushboo Rastogi) ने "ग्रीन गद्दी" (Green Gaddi) की स्थापना की है. इन दोनों ही युवाओं ने अपने आसपास के लोगों को वायु प्रदूषण की समस्या से जूझता हुआ देखा है जिसके चलते वो कुछ ऐसा समाधान लाना चाहते थे जिससे लोग अपनी सुविधा भी देख सके और वातावरण को भी नुकसान न पहुंचे.
ग्रीन ट्रे में लगने वाले एयर प्यूरीफायर पौधे (Green Tray Air Purifier Plants)
इन दोनों युवाओं ने अपने गाड़ी के ऊपर "ग्रीन ट्रे" (Green Tray) में एयर प्यूरीफायर पौधे रखे हुए है. बता दें कि ग्रीन ट्रे में उगे पौधों को प्रदूषण के प्रभावों को बेअसर करने और पोर्टेबल एयर प्यूरीफायर (Air Purifiers Plants) के रूप में कार्य करने में मदद करने के लिए कारों के ऊपर रखा जा सकता है.
कुछ मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार आहूजा का कहना है कि "दिल्ली की स्थिति को देखते हुए, खासकर दिवाली के बाद, हम पिछले साल ग्रीन गद्दी (Green Gaddi) का विचार लेकर आए थे". इसके अलावा, गौरव आहूजा और खुशबू रस्तोगी का कहना है कि वे दिल्ली की प्रदूषण समस्या का समाधान खोजने की कोशिश कर रहे हैं.
कार की छत पर उगाएं पौधे (How to Grow Plants on Car Roof)
सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट (Center for Science and Environment) के अनुसार, दिल्ली की भीड़भाड़ वाली सड़कों पर इस समय एक करोड़ से अधिक वाहन हैं. इस सूची में हर दिन 500 से अधिक कारें और 1,150 दोपहिया वाहन जुड़ते जा रहे हैं.
ऐसे में इन डरवाने आंकड़ों को देखते हुए आहूजा और रस्तोगी की ग्रीन गद्दी (Green Gaddi) की पहल को अपनाया जा सकता है. इन्होंने ऑक्सीजन पैदा करने वाले पौधों से भरी एक ट्रे रखकर अपनी इनोवा पर प्रयोग किया जो आज सभी के लिए एक प्रेरणा का श्रोत बन गयी है.
क्या कारों को पोर्टेबल एयर प्यूरीफायर में बदलना है संभव (Is it possible to convert cars into portable air purifiers)
ऐसे में आहूजा और रस्तोगी का कहना है "वे बागवान या पर्यावरणविद नहीं हैं, केवल नियमित लोग हैं जो एक समस्या का समाधान खोजने की कोशिश कर रहे हैं जो कई लोगों को प्रभावित करती है. इसके आगे इन दोनों युवाओं का कहना है कि उन्होंने "ग्रीन गद्दी" (Green Gaddi) की व्यवहार्यता पर शोध करने में एक साल बिताया है.
इसी कड़ी में आहूजा कहते हैं कि "हमने मालियों (बागवानों) से बात की, नर्सरी का दौरा किया और अनगिनत विशेषज्ञों से बात की जिसके बाद उन्होंने यह आईडिया अपनाया और एक्सपेरिमेंट किया.
इन दोनों युवाओं को यह उम्मीद है कि 'ग्रीन गद्दी' की पहल में कई लोग शामिल होंगे और इसे बेहतर बनाने में मदद करेंगे. वहीं इन दोनों ने हाल ही में IIT दिल्ली में छात्रों से बात की और स्कूल बसों को "ग्रीन गद्दी" (Green Gaddi) में बदलने में रुचि व्यक्त की है.
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