मिलेट्स को सुपरफूड की संज्ञा दी गई है, आज से लगभग 7000 वर्ष पूर्व से ही हमारे पूर्वज मोटे अनाज का सेवन करते रहे हैं इसका प्रमाण यजुर्वेद में भी मिला है। मोटे अनाज के सेवन से बहुत से गंभीर स्वास्थ्य विकृतियों से हम सुरक्षित रह सकते हैं जिसमें हृदयाघात, मधुमेह, उच्च रक्तचाप तथा अन्य बीमारियां प्रमुख है, बाजरा और रागी में फाइबर की मात्रा अधिक होती है। इनके सेवन से कैंसर से भी लड़ने में मदद मिलती है। आई.सी.एम.आर. (इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च) के अनुसार फाइबर की कमी पूरी करने के लिए एक वयस्क को दिन में 40 ग्राम फाइबर युक्त खाद्य पदार्थ का सेवन करना चाहिए। रागी और बाजरा इसके बढ़िया विकल्प हो सकते हैं। इसके अतिरिक्त वैश्विक स्तर पर यह बात सामने उभर कर आई है कि किसान बंधु कौन सी खेती को अपनाएं जिससे कि उनकी आमदनी में बढ़ोतरी हो सके।
अफ्रीका में सबसे अधिक 489 लाख हेक्टेयर जमीन पर मोटे अनाज की खेती होती है एवं उत्पादन लगभग 423 लाख टन होता है। केंद्र सरकार के मुताबिक भारत मोटे अनाज का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक (138 लाख हेक्टेयर खेत में) है। ऐसे में किसानों को ये जानना चाहिए कि मोटे अनाज की खेती यानी मिलेट फार्मिंग में किस तरह के विकल्प हैं, जिन्हें अपनाकर आर्थिक लाभ कमाया जा सकता है। किसान भाइयों एवं बहनों की आमदनी को बढ़ाने में मोटे अनाज की खेती एक बहुत ही बड़ा विकल्प है, अतः वैज्ञानिक आधारित नवाचार पद्धति को अपनाकर कृषि कार्य किया जाए।
पारंपरिक तरीके से फसलों पर कीटनाशकों एवं अन्य के छिड़काव में कई घंटे और कई दिन या यूं कहें कि सप्ताह तक का भी समय लग जाता है, जबकि कृत्रिम बुद्धिमता प्रणाली यंत्र का प्रयोग इसी काम को चंद मिनटों में निपटा देता है। कृत्रिम बुद्धिमता यंत्र (ड्रोन) जो कैमरा तकनीक आधारित है यह तीन प्रकार के होते हैं यथा:-फिक्स्ड विंग, रोटरी विंग एवं एलटीए/टेथर्ड सिस्टम ड्रोन। कृषि क्रांति हेतु यह एक अभूतपूर्व नवाचार है जिसमें कृषि में नियमित मैनुअल गतिविधियों को करने के तरीके को बदलने की क्षमता है।
कृषि के आधुनिकीकरण के लिए वैश्विक स्तर पर कृषि जो अब उद्योग का भी व्यापक रूप ले चुकी है, वैज्ञानिक एवं कृषक समुदाय कृत्रिम बुद्धिमता प्रणाली तकनीक का तेजी से उपयोग कर कृषि आय को बढ़ाने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ना चाहते हैं। इस प्रणाली में रिमोटली पायलटेड एयरक्राफ्ट होते हैं, जिसमें एक प्रोपल्शन सिस्टम होता है, जो सैटेलाइट नेविगेशन सिस्टम के साथ या उसके बिना प्रोग्रामेबल कंट्रोलर से जुड़ा होता है तथा स्वचालित फ्लाइट प्लानिंग फीचर्स के माध्यम से अपना कार्य करने में सक्षम होता है, जैसे कि कैमरा स्प्रेइंग सिस्टम आदि, यह प्रणाली मानव रहित हवाई वाहन या कहें तो मानव रहित विमान प्रणाली सिस्टम ही है।
कृषि क्रांति में कृत्रिम बुद्धिमता प्रणाली मील का पत्थर बनकर सामने आया है। आज दुनिया भर के देश ड्रोन की क्षमता को महसूस करते हैं और ड्रोन के विकास में नवाचारों को अपनाते हुए इस प्रणाली में निवेश कर रहे हैं। हमारे देश के नागरिक उड्डयन महानिदेशक (डी.जी.सी.ए.) ने कृत्रिम बुद्धिमता प्रणाली सिस्टम को आर.पी.ए.एस. नियमों (2021) के तहत संचालन की अनुमति प्रदान की है, पिछले दो दशकों से इस तकनीक का उपयोग किया जा रहा है परंतु कृषि ड्रोन के उपयोग के बारे में नियम और कानून अभी भी दुनिया में अपने शुरुआती दौर में है।
भारत में ड्रोन का उपयोग विकसित देशों जैसे अमेरिका और चीन के विपरीत, सीमित है; भारत सरकार ने वैश्विक शासन के नियम बनाने में पहल करते हुए इस प्रणाली को हमारे देश के कृषि जगत के लिए फायदेमंद बताया है। इस तकनीक का प्रयोग आधुनिक कृषि उद्योग में, एक महत्वपूर्ण मोड़ पर है। अधिक उन्नत कृषि प्रबंधन तकनीकों के विकास के साथ, जैसे कि सटीक कृषि, उद्योग के पेशेवरों के पास अब प्रक्रियाओं की सटीकता और दक्षता में सुधार करने के लिए पहले से कहीं अधिक उपकरण हैं। एसओपी और एल्गोरिदम विकसित करने के लिए विशेष रूप से खेतों के इलेक्ट्रॉनिक मानचित्रों के निर्माण, फसल की स्थिति की परिचालन निगरानी, फसल पैदावार की भविष्यवाणी करने के लिए, इस नावाचार पद्धति विकसित करने के लिए विभिन्न प्रकार के कृषि ड्रोन के उपयोग का अध्ययन कृषि संबंधित विभिन्न आयामों जैसे नवीन जुताई तकनीक, मृदा स्वास्थ एवं फसल पर्यावरण निगरानी बनाए रखना इत्यादि।
पिछले कुछ वर्षों के दौरान कृषि के लिए ड्रोन व्यवसाय का काफी विस्तार हुआ है। स्प्रे सुविधा से लैस इस मशीन की कीमत क्षमता के आधार पर 3 से 7 लाख तक हो सकती है, भारत में वर्तमान में ड्रोन के निर्माण के लिए डीजीसीए (नागरिक उड्डयन महानिदेशालय, भारत सरकार) के डिजिटल स्काई प्लेटफॉर्म में पंजीकृत फर्मों का उल्लेख किया गया है।
लगभग 159.7 मिलियन हेक्टेयर कृषि योग्य भूमि को कवर करने के लिए हजारों स्टार्ट-अप को प्रोत्साहित करने की आवश्यकता है। यहां एक प्रमुख ध्यान देने योग्य बात है की हमारे देश के कृषक वर्ग के लिए विशाल भूमि का क्षेत्रफल मोटे अनाज के उत्पादन हेतु उपलब्ध है। बदलते पारिस्थितिकी संतुलन एवं गंभीर स्वास्थ्य समस्याओं पर गहन शोध एवं विचारोपरांत आज मोटे अनाज की पारंपरिक खेती मानव समुदाय के लिए एक महत्वपूर्ण विकल्प बनकर सामने आया है इसके पैदावार से निश्चित रूप से हमारे देश की अर्थव्यवस्था एवं किसानों की दशा में उत्तरोत्तर सुधार आएगी यदि कृत्रिम बुद्धिमता प्रणाली यंत्र के माध्यम से खेती की समुचित प्रबंधन तथा निगरानी की जाए। इस यंत्र संचालन हेतु प्रशिक्षित मानव संसाधन भी इस तकनीक के प्रयोग के लिए एक आवश्यक पहलू है क्योंकि यह एक कौशल आधारित ऑपरेशन है।
ड्रोन तकनीक से लैस संगठनों के सहयोग से प्रशिक्षण संस्थान भी स्थापित है यथा इंदिरा गांधी राष्ट्रीय उड़ान एकेडमी (अमेठी), ड्रोन एकैडमी (तेलंगाना), बॉम्बे फ्लाइंग क्लब (महाराष्ट्र), रेड वर्ड एविएशन जो जी.डी.सी.ए. से मान्यता प्राप्त है, जहां से इस तकनीक का प्रशिक्षण प्राप्त कर कृषि में विभिन्न अनुप्रयोगों के फील्ड डेमो के साथ ड्रोन के उपयोग को लोकप्रिय बनाने के लिए प्रसार कार्यकर्ताओं को प्रशिक्षित किया जा सकता है।
अधिकांश विकसित और विकासशील देशों में, कृषि व्यापक रूप से यंत्रीकृत है और नवीनतम उपकरणों और मशीनों का उपयोग कर रहे हैं। इस क्रम में ड्रोन कृषि में सबसे तेजी से प्रयोग किये जाने वाला उपयुक्त उपकरण है। प्राकृतिक संसाधनों का विवेकहीन दोहन के बाद प्राकृतिक असंतुलन होने की स्थिति के कारण हाल ही में जल प्रबंधन एवं टिकाऊ कृषि प्रबंधन अनिवार्य है। स्वचालित फसल फेनोटाइपिंग ड्रोन प्रौद्योगिकी का सबसे आशाजनक क्षेत्र है, ड्रोन की मदद से ली गई हवाई तस्वीरें तदोपरांत विश्लेषण, जैविक एवं अजैविक तनाव का आंकड़ा संग्रह कृत्रिम बुद्धिमत्ता यंत्र की कृषि क्रांति में भूमिका को प्रासंगिक करती है।
इसके प्रयोग से फसलों का व्यापक देखभाल यथा कीड़े -मकोड़े का नियंत्रण, फसलों के लगने वाले रोग का नियंत्रण, खरपतवार और जानवरों की निगरानी भी आसानी से कर सकते हैं, इसमें मौजूद सेंसर फसल में बढ़ते कीड़े और बीमारियों के जोखिम या दूसरी समस्याओं के प्रति किसानों को समय रहते सचेत करा देते हैं, जिससे किसान अपनी फसल को नुकसान होने से बचा लेते हैं, बड़े पैमाने पर किए जाने वाले व्यावसायिक खेती के लिए भी यह तकनीक किसी वरदान से कम नहीं है। इसके अलावा ड्रोन की मदद से मौसम की स्थिति और फसल की जरूरतों को ससमय पूरा किया जा सकता है, हमारे देश में मिलेट की फसल हेतु व्यापक क्षेत्रफल है, आज हमारे देश के किसान की मनःस्थिति काफी बदल चुकी है, उनका व्यवसायिक कृषि के तरफ झुकाव बढ़ा है वे आधुनिक एवं वैज्ञानिक पद्धति को अपनाते हुए देश के विकास में अपना महत्वपूर्ण योगदान देकर एक नया कीर्तिमान स्थापित कर रहे हैं तथा देश की अर्थव्यवस्था को संबल बना रहे हैं।
किसानों की आमदनी को कैसे बढ़ाया जाए इस दिशा में भारत तथा राज्य सरकार भी अपनी अहम भूमिका निभा रही है, इसी कड़ी में किसानों को कृषि ड्रोन क्रय हेतु अनुसूचित जाति-जनजाति, लघु सीमांत महिला वर्ग के लिए अधिकतम 50 प्रतिशत सब्सिडी के साथ ही 5 लाख रुपए तथा अन्य वर्ग के किसानों के लिए 40 प्रतिशत सब्सिडी के साथ अधिकतम 4 लाख रुपए तक का प्रावधान किया गया है (सशर्त). वहीं भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, कृषि विज्ञान केंद्र तथा कृषि विश्वविद्यालयों के लिए इस यंत्र के क्रय तथा व्यापक प्रचार प्रसार हेतु 100 प्रतिशत सब्सिडी (सशर्त) का प्रावधान किया गया है।
यह यंत्र निश्चित रूप से एक वरदान है क्योंकि जहां पारंपरिक तरीके से खेत में लगे हुए फसल प्रबंधन मे काफी समय लग जाता था, जबकि इस यंत्र की सहायता से अल्प समय में भली-भांति फसलों की देख-रेख कर सकते हैं। पीड़कनाशी और कृषि के अन्य रसायन का सामान्य तौर पर छिड़काव किसी मनुष्य/पालतु जानवरों के लिए गंभीर स्वास्थ्य समस्या पैदा कर सकता है, जबकि ड्रोन की मदद से कम समय एवं कम मात्रा में, हानिकारक कृषि रसायनों के संपर्क में आए बिना आसानी से छिड़काव संभव हो जाता है। इस यंत्र में लगे हाई रेजोल्यूशन कैमरों के जरिए घर बैठे ही कृषक बंधु अपनी फसल की सेहत का रिकॉर्ड रख सकते हैं, इसके अतिरिक्त खेत में इस तकनिक के प्रयोग से उत्पादन लागत में भी कमी आती है, क्योंकि इसमें सामान्य तरीके के मुक़ाबले 25 फीसदी कम दवा डालनी पड़ती है। जिससे फसल स्वास्थय एवं प्रकाश संश्लेषण भी अच्छा होता है।
किसानों की आमदनी को कैसे बढ़ाया जाए इस दिशा में भारत तथा राज्य सरकार भी अपनी अहम भूमिका निभा रही है, इसी कड़ी में किसानों को कृषि ड्रोन क्रय हेतु अनुसूचित जाति-जनजाति, लघु सीमांत महिला वर्ग के लिए अधिकतम 50 प्रतिशत सब्सिडी के साथ ही 5 लाख रुपए तथा अन्य वर्ग के किसानों के लिए 40 प्रतिशत सब्सिडी के साथ अधिकतम 4 लाख रुपए तक का प्रावधान किया गया है (सशर्त). वहीं भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, कृषि विज्ञान केंद्र तथा कृषि विश्वविद्यालयों के लिए इस यंत्र के क्रय तथा व्यापक प्रचार प्रसार हेतु 100 प्रतिशत सब्सिडी (सशर्त) का प्रावधान किया गया है। यह यंत्र निश्चित रूप से एक वरदान है क्योंकि जहां पारंपरिक तरीके से खेत में लगे हुए फसल प्रबंधन मे काफी समय लग जाता था, जबकि इस यंत्र की सहायता से अल्प समय में भली-भांति फसलों की देख-रेख कर सकते हैं।
पीड़कनाशी और कृषि के अन्य रसायन का सामान्य तौर पर छिड़काव किसी मनुष्य/पालतु जानवरों के लिए गंभीर स्वास्थ्य समस्या पैदा कर सकता है, जबकि ड्रोन की मदद से कम समय एवं कम मात्रा में, हानिकारक कृषि रसायनों के संपर्क में आए बिना आसानी से छिड़काव संभव हो जाता है। इस यंत्र में लगे हाई रेजोल्यूशन कैमरों के जरिए घर बैठे ही कृषक बंधु अपनी फसल की सेहत का रिकॉर्ड रख सकते हैं, इसके अतिरिक्त खेत में इस तकनिक के प्रयोग से उत्पादन लागत में भी कमी आती है, क्योंकि इसमें सामान्य तरीके के मुक़ाबले 25 फीसदी कम दवा डालनी पड़ती है। जिससे फसल स्वास्थय एवं प्रकाश संश्लेषण भी अच्छा होता है। नतीजतन, पौधों की उत्पादन क्षमता 12 से 15 फ़ीसदी बढ़ जाती है। कुछ साल पहले देश में जब तिलचट्टों का हमला हुआ था, तब सरकार ने देशभर में खेती को बचाने के लिए ड्रोन की मदद ली थी। वैश्विक स्तर पर ड्रोन यंत्र की कृषि में प्रयोग के आधार पर हुए आशातीत् परिणाम के कारण बहुत जल्द इस यंत्र के माध्यम से खेती आम बात हो जाएगी ।
देश के खेत-खलिहानों में आपको कहीं भी ड्रोन उड़ते दिखने लगेंगे, स्वदेशी कंपनी गरुड़ एयरोस्पेस के ‘किसान ड्रोन’ को सरकार से एक अहम मंजूरी मिली है। गरुड़ एयरोस्पेस को स्वदेशी किसान कृत्रिम बुद्धिमता यंत्र के लिए एविएशन सेक्टर के रेग्युलेटर नागर विमानन महानिदेशालय के तहत् सर्टिफिकेशन की मंजूरी मिल गई है। गरुड़ एयरोस्पेस ने अपने एक बयान में कहा है कि इस यंत्र को खेती से जुड़े कामों को ध्यान में रखकर तैयार किया गया है। इसके जीए-एजी मॉडल के लिए सर्टिफिकेशन मिला है। डीजीसीए ये सर्टिफिकेट क्वालिटी चेक के आधार पर देती है। इसे ड्रोन (मानवरहित विमान) की सख्त जांच के बाद ही जारी किया जाता है। वहीं यह संस्थान रिमोट पायलट ट्रेनिंग ऑर्गेनाइजेशन डीजीसीए से मान्यता प्राप्त संगठन है जो ड्रोन नियम-2021 के नियम-34 के तहत रिमोट पायलट प्रमाणपत्र प्रदान करता है, किसान ड्रोन को डीजीसीए से दोनों तरह के सर्टिफिकेशन मिलने पर गरुड़ एयरोस्पेस के फाउंडर अग्निश्वर जयप्रकाश ने कहा कि डीजीसीए दोनों सर्टिफिकेट देना, असल में भारत की स्वदेशी, मेड इन इंडिया मैन्युफैक्चरिंग क्षमताओं का सबूत है, उन्होंने कहा कि अब ये मंजूरी मिलने के बाद हमें भरोसा है कि इस सेक्टर में काफी तीव्र गति से विकास होगा.
यह भी पढ़ें: Artificial Intelligence: भारत को गुणवत्तापूर्ण कृषि की ओर ले जाने का एक व्यवहार्य मार्ग
वहीं अनिवार्य कौशल का सही से उपयोग भी हो सकेगा। यंत्र की उपयोगिता के बारे में अग्निश्वर जयप्रकाश ने कहा कि उनकी कंपनी को अभी 5000 कृत्रिम बुद्धिमता यंत्र बनाने हेतु विभिन्न जगहों से मांग भी है जो इस बात का द्योतक है कि भारत में इस यंत्र की उपयोगिता किसानों के साथ-साथ कृषि उद्यमियों के लिए भी काफी लाभकारी है, ये नई पीढ़ी के जीविकोपार्जन का प्रमुख साधन बन सकेगा.
यूपी के मिर्जापुर में स्थित कृषि विज्ञान केंद्र, बरकच्छा (बी.एच.यू.) के कृषि वैज्ञानिकों ने किसानों के लिए अत्याधुनिक कृत्रिम बुद्धिमता प्रणाली यंत्र का निर्माण किया है जिसकी सहायता से कीटनाशक व खाद का छिड़काव किसान अपने मिलेट्स यथा ज्वार, बाजरा, सामा, कोनी, मड़ुआ एवं कोदो तथा अन्य मोटे अनाजों की खड़ी फसलों में कर सकेंगे यह यंत्र 15 मिनट में एक एकड़ जमीन पर खाद या फिर कीटनाशक का छिड़काव करने में सक्षम है, इस तकनीक के प्रयोग से पानी के साथ समय की भी बचत होगी हम दूसरे शब्दों में यह भी कह सकते हैं कि कृत्रिम बुद्धिमता प्रणाली एक यंत्र नहीं वरदान है तो इसमें कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी।
लेखक-
डॉ. राजीव कुमार श्रीवास्तव1, राजेश कुमार2 एवं दिपांशु कुमार3
1सहायक प्राध्यापक-सह-वैज्ञानिक (सस्य विज्ञान),
2उच्च वर्गीय लिपिक (स्नातकोत्तर हिन्दी)
3फिल्ड/फार्म तकनीशियन
बीज निदेशालय, तिरहुत कृषि महाविद्यालय परिसर,
ढोली, मुजफ्फरपुर-843121, बिहार
(डॉ.राजेन्द्र प्रसाद केन्द्रीय कृषि विश्वविद्यालय, पूसा, समस्तीपुर)
Share your comments