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पटसन किसानों की तकनीकी मदद करने के लिए आगे आया सीआरआईजेएफ

चक्रवाती तूफान ‘अंफान’ से पश्चिम बंगाल के पटसन किसानों को भारी क्षति हुई है. तूफान और बारिश से पटसन की फसल तहस-नहस हुई है जिसे लेकर किसान बहुत चिंतित हैं. पटसन किसानों की चिंता दूर करने और शेष फसल को बचाने के लिए सेंट्रल रिसर्च इंस्टीच्यूट फार जूट एंड एलाइड फाइबर्स (सीआरआईजेएफ) आगे आया है. संस्थान के कृषि वैज्ञानिक उचित चलाह देकर किसानों को संकट से उबारने के प्रयास में लगे हैं. पश्चिम बंगाल के उत्तर 24 परगना जिला के बैरकपुर स्थित सीआरआईजेएफ के मुताबिक इस बार राज्य में लगभग 5 लाख हेक्टेयर भूमि में पटसन की खेती हुई है.

अनवर हुसैन

चक्रवाती तूफान ‘अंफान’ से पश्चिम बंगाल के पटसन किसानों को भारी क्षति हुई है. तूफान और बारिश से पटसन की फसल तहस-नहस हुई है जिसे लेकर किसान बहुत चिंतित हैं. पटसन किसानों की चिंता दूर करने और शेष फसल को बचाने के लिए सेंट्रल रिसर्च इंस्टीच्यूट फार जूट एंड एलाइड फाइबर्स (सीआरआईजेएफ) आगे आया है. संस्थान के कृषि वैज्ञानिक उचित चलाह देकर किसानों को संकट से उबारने के प्रयास में लगे हैं. पश्चिम बंगाल के उत्तर 24 परगना जिला के बैरकपुर स्थित सीआरआईजेएफ के मुताबिक इस बार राज्य में लगभग 5 लाख हेक्टेयर भूमि में पटसन की खेती हुई है.

उत्तर 24 परगना, पूर्व मेदिनीपुर, हुगली, नदिया, मुर्शिदाबाद, हावड़ा और बर्दवान आदि जिलों एक विस्तृत क्षेत्र में पटसन की फसल लहलाहा रही थी. किसानों को इस बार पटसन की खेती से अच्छी आय करने की उम्मीद बंधी थी. लेकिन ‘अंफान’ ने पटसन किसानों की उम्मीदों पर पानी फेर दिया. पटसन की जो क्षतिग्रस्त फसल खेत में बची है उसको सुरक्षित रखना भी किसानों के समक्ष एक बड़ी चुनौती है. ऐसी स्थिति में सीआरआईजेएफ पटसन की शेष फसल बचाकर नुकसान की भरपाई के लिए किसानों को उचित सलाह देकर उनका मार्ग दर्शन कर रहा है.

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पटसन की क्षति रोकने के लिए सीआरआईजेएफ ने किसानों को वैज्ञानिक सलाह देने की प्रक्रिया शुरू की है. संस्थान के निदेशक डॉ. गौरांग कर ने कहा कि संकट की घड़ी में वह फसल की क्षति को कम करने और उत्पादन बढ़ाने के लिए पटसन किसानों को वैज्ञानिक और तकनीकी मदद कर उनका मार्ग दर्शन करने के लिए तैयार हैं. संस्थान की ओर से पटसन किसानों को क्षतिग्रस्त फसल की देखभाल करने और पटसन का उत्पादन बढ़ाने के लिए कुछ सुझाव दिए गए हैं. खेत से पानी निकालने की के लिए 20 सेंटी मीटर चौड़े और 20 सेंटी मीटर गरहरे नाले बनाने के तरीके बताए गए हैं. तूफान की चपेट में आकर कर धरातल पर गिरे एक मीटर से ऊंचे 8-10 पौधों को एक साथ मिलाकर उसे बांधने की सलाह दी गई है. एक साथ 8-10 पौधों को बांध देने से फसल खड़ी हो जाएगी और सही दिशा में उसकी बढ़त भी होने लगेगी.

चक्रवात के पश्चात फसल में किड़ा लगने और रोग बढ़ने की आशंका भी बढ़ जाती है. सीआरआईजेएफ के फसल सुरक्षा विभागाध्यक्ष डॉ. एस सत्पथि ने कहा कि किसानों को इस समय पटसन की फसल में होने वाले रोग से अवगत कराया गया है. पटसन की तना में डेंपिंग आफ (सइन रोग) से बचाव के लिए कारगर उपाय बताए गए हैं. पटसन में सइन रोग दिखने पर एक लीटर पानी में कॉपर आक्सिक्लोराइड़ 50 डब्ल्यूपी 5 ग्राम मिलाकर छिड़काव करने की सलाह दी गई है. खेत से जमे पानी लिकालने के बाद एक लीटर पानी में मैन्कोजेब 50 डब्ल्यूपी दो ग्राम मिलाकर फसल में छिड़काव करने से पौधे सुरक्षित रहेंगे और सही दिशा में बढ़ेंगे. इस बारे में भी किसानों को परामर्श दिया गया है.डॉ. एसके झा ने संस्थान के निदेशक गौरांग कर के हवाले से बताया कि सीआरआईजेएफ की वेबसाइट पर प्रति सप्ताह पटसन किसानों के लिए विशेष परामर्श अपडेट किया जाता है. किसानों के हित में यह सुझाव सोशल मीडिया व विभिन्न संचार माध्यमों के द्वारा प्रसारित किए जाए रहे हैं ताकि अधिक से अधिक किसान इसका लाभ उठा सकें. संस्थान की ओर से अपने सुझावों के प्रचार-प्रसार करने से अब तक ढाई से तीन लाख पटसन किसान लाभान्वित हुए हैं.

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संस्थान के प्रधान वैज्ञानिक डॉ. एसके सिंह ने कृषि जागरण से बातचीत में कहा कि सीआरआईजेएफ भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के जलवायु प्रतिरोधक क्षमता पूर्ण कृषि कार्यक्रम के तहत ऐसे प्रतिकूल जलवायु प्रभाव के कारण उपज और फसल के नुकसान की भरपाई के लिए उपयुक्त विकल्पों की दिशा में काम कर रहा है. संस्थान प्रतिकूल मौसम में बुवाई के समय में बदलाव, फसल किस्मों की उन्नतिकरण, ब्लू वाटर फुट प्रिंट को कम करके जल उत्पाकता में वृद्धि, उर्वरक का उचित मात्रा में उपयोग, दक्षता व अन्य इनपुट्स देकर फसलों को नुकसान से बचाने की दिशा में कार्यरत है. संस्थान के सभी कृषि वैज्ञानिक पटसन किसानों को फसल के नुकसान की भरपाई के लिए उचित सलाह देकर उनका मार्ग दर्शन करने में जुटे हैं. किसानों को भी परामर्शन लेने के लिए संस्थान के संपर्क में रहने के लिए उनमें जागरूकता पैदा की जा रही है.

उल्लेखनीय है कि पश्चिम बंगाल सबसे बड़ा पटसन उत्पादक राज्य है. उच्च गुणवत्ता वाले पटसन उत्पादन करने में राज्य की नम मिट्टी और यहां की जलवायु विशेष रूप से सहायक है. पश्चिम बंगाल में ही अधिकांश जूट मिलें स्थित. खेतों में तैयार पटसन की फसलों की आपूर्ति आसानी से राज्य की जूट मिलों में हो जाती है. इस तरह पटसन की खेती किसानों की आय का उत्तम जरिया है. यह एक नकदी फसल है. पश्चिम बंगाल के अतिरिक्त बिहार, ओड़िशा, असम और मेघालय में भी पटसन की खेती होती है. लेकिन देश में जूट उत्पादन में पश्चिम बंगाली की भागीदारी सबसे अधिक और महत्वपूर्ण है भी है. इसलिए कि फसल की खपत आसानी से यहां के जूट जूट कारखानों में हो जाती है. किसानों को अपनी फसल का उचित मूल्य प्राप्त हो जाता है. लेकिन इस बार चक्रवाती तूफान ‘अंफान’ ने पटसन की फसल पर कहर बरपा दिया. मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के कृषि सलाहकार प्रदीप मजूमदार ने कहा कि अंफान से राज्य में पटसन की फसल तहस-नहस हो गई है. क्षति का आकलन के लिए संबंधित जिला प्रशासन से रिपोर्ट मांगी गई है. अंफान से कितने रुपए की पटसन की फसल का नुकसान हुआ है इस पर संपूर्ण रिपोर्ट तैयार की जा रही है. रिपोर्ट तैयार होने के बाद उसे सार्वजनिक किया जाएगा.

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English Summary: CRIJF came forward to provide technical assistance to jute farmers Published on: 29 May 2020, 12:58 PM IST

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