छत्तीसगढ़ में पाई जाने वाली चरोटा ने कई बाहर के देशों जैसे चीन, मलेशिया, और ताइवान में धूम मचा दिया है. अपने औषधीय गुणों की पहचान के बाद आयातक देश मलेशिया, ताईवान और चीन अब छत्तीसगढ़ के चरोटा में बड़े दाने की मांग कर रहे है. दरअसल पिछले पांच वर्षों में छत्तीसगढ़िया चरोटा को विदेशों में जो भी अलग पहचान मिली है उसके पीछे कृषि वैज्ञानिकों का योगदान और कारोबारियों की मेहनत इसमें अहम है. पहले इसे कभी तुच्छ समझा जाता था और लेकिन इस फसल को अब अच्छी कीमत मिलने भी लगी है.
90 के दशक में हुई चरोटे की खरीद
90 के दशक के दौरान इसकी पहली खरीद हुई थी तब इसका भाव 700 रूपए क्विंटल था. आज बाजार में इसकी कीमत 1600 से 1700 प्रति क्विंटल है. आज बढ़ते हुए बाजार, बढ़ती कीमत और बढ़ती मांग के बाद हाल ही में छत्तीसगढ़ की साथ निर्यातक राज्य के रूप में उभरकर तेजी से सामने आ रहे है. अब छत्तीसगढ़ के इस उत्पाद की मांग अब काफी जोर पकड़ने लगी है. पिछले वर्ष करीब 30 हजार टन चरोटे का निर्यात राज्य से किया गया. इस वर्ष यह लक्ष्य 40 हजार टन रखा गया है.
चीन सबसे बड़ा निर्यातक
आज आयातक देश चीन, ताईवान, मलेशिया में बीते वर्ष से इस कारोबार में काफी बदलाव हुए है.जिसके मुताबिक उन्होंने बोल्ड दाने में गुणों की मात्रा का ज्यादा होना पाया है. बता दें कि छत्तीसगढ़ का चरोटा उनके इस तरह के मानक पर बिल्कुल सटीक उतरा है इसीलिए ये तीनों देश छत्तीसगढ़ से चरोटा की खेती शुरू कर रहे है. आज सभी उत्पादक क्षेत्रों को सलाह दी जा रही है.
इस काम आता है चरोटा
छत्तीसगढ़ में यह फसल पहले एक तरह की खरपतवार मानी जाती थी, ग्रामीण क्षेत्रों में लोग इसके पत्तों को भाजी की तरह बना कर खाते है. इसका वैज्ञानिक नाम केशिय तोरा है जो कि सीजल पीनेसी कुल का पौधा होता है. चरोटा बीज की गिरी का उपयोग कॉफी बनाने में किय़ा जाता है. इसके बीज में गोंदनुमा पदार्थ से पान मसाला के अलावा बीज के पाउडर का प्रयोग अगरबत्ती के इस्तेमाल में होता है. यह आयुर्वेदिक दवा के आलवा अनव्य तरह के हर्बल प्रोडक्ट, चर्म रोग के लिए मलहम, फंगस आदि की दवाई बनाने का काम हो रहा है.
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