बिहार के किसानों की बदहाली का सबब जानना हो, तो ज़रा समय की सूई को पीछे घूमाते हुए चलिए हमारे साथ साल 2006 में. जब प्रदेश के तत्तकालीन मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने किसानों के हितों के मद्देनजर एपीएमसी व्यवस्था को खत्म कर दिया था. हालाकि, उस समय उनके इस फैसले का उनके सियासी प्रतिद्वंदियों ने जमकर विरोध किया था,
लेकिन उन्होंने अपने तमाम विरोधकों का यह कह कर मुंह बंद कर दिया कि यह फैसला उन्होंने किसानों की खुशहाली को ध्यान में रखते हुए लिया है. अब जब उनके फैसले को डेढ़ दशक मुकम्मल हो चुके हैं, तो इस बात पर बहस लाजिमी है कि क्या मुख्यमंत्री साहब का वह फैसला किसानों के जीवन को खुशहाल करने में कामयाब रहा है? क्या मुख्यमंत्री साहब का यह फैसला किसानों के जीवन में समृद्ध ला पाएगा? इन सभी सवालों पर हम पूरे तफसील से चर्चा करेंगे, लेकिन उससे पहले जरा यह जान लेते हैं कि आखिर एपीएमसी क्या है? आखिर, मुख्यमंत्री साहब को क्यों नागवार गुजरी यह व्यवस्था?
क्या है, एपीएमसी
अगर आप एपीएमसी को समझना चाहते हैं, तो सबसे पहले आपको किसानों की उस समस्या को समझना होगा, जिससे हमारे देश के हर अन्नदाता को जूझना पड़ता है और वो समस्या हैं, किसानों को उनकी फसलों का उचित मूल्य न मिल पाना, लिहाजा किसानों को इन्हीं समस्याओं से निजात दिलाने हेतु 1970 के दशक में एपीएमसी एक्ट य़ानी की एग्रीकल्चर मार्केटिंग प्रोड्यूस मार्केटिंग कमेटी है. इस एक्ट के तहत प्रदेश सरकार की तरफ से विपणन समितियों का गठन किया गया, लेकिन केंद्र सरकार की तरफ से इस दिशा में कानून बनाए गए, तो किसानों को उनकी फसलों का उचित मूल्य नहीं मिल पाया. इसके अलावा एपीएमसी एक्ट के तहत निजी कंपनियां किसानों से उचित मूल्य पर फसलें भी खरीदती हैं, जिससे किसानों को उनकी फसलों का उचित मूल्य मिल जाता है, लेकिन नीतीश कुमार ने साल 2006 में कृषि सुधारों को मद्देनजर रखते हुए एपीएमसी को खत्म कर दिया था. उनका मानना था कि इस कानून के खत्म होने से बिहार के किसानों के जीवन में समृद्धि आएगी, लेकिन नीतीश का यह दावा उतना कारगर साबित नहीं हो पाया.
नीतीश कुमार के इस फैसले से बिहार की मंडी व्यवस्था खत्म हो गई। मुख्यमंत्री के इस फैसले का बिहार के किसानों पर गहरा दुष्प्रभाव दिखा है. पिछले साल देश के 43,35,972 किसानों से एमएसपी पर फसलों की खरीद की गई थी, मगर इसमें बिहार के मात्र 1003 किसान शामिल थे, जबकि यहां किसानों की संख्या 1.64 करोड़ है. देश के कुल उत्पादन में बिहार के किसानों का योगदान मात्र 6.4 फीसद है. नतीजतन, जिस तरह अन्य देश के किसान को उनकी फसलों का उचित दाम मिल पाता है, उतना बिहार के किसानों को नहीं मिल पाता है.
इस संदर्भ में विस्तृत जानकारी देते हुए बिहार किसान मंच के अध्यक्ष धीरेंद्र सिंह टुडू कहते हैं, 'बिहार के किसानों की फसलों का बहुत कम मात्रा में ही एमएसपी पर खरीद हो पाती है. वे कहते हैं कि यहां मंडी व्यवस्था ही नहीं है, तो खरीद कैसे होगी? जिन राज्यों में मंडीं व्यवस्था दुरूस्त है, वहां के किसानों को फसलों का वाजिब दाम मिल जाता है. मजबूरन, बिहार के किसान बदहाली में ही अपना पूरा जीवन गुजार देते हैं.
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