उत्तर प्रदेश के किसानों के लिए यह खबर राहत देने वाली है. प्रदेश सरकार ने छोटे और सीमांत किसानों से धान की ई-खरीद प्रक्रिया को आसान बना दिया है. इसके तहत उन मानदंडों में रियायत दी गई है जिनके अंतर्गत फसल की खरीद की जाती थी. ताजा बदलाव के बाद किसानों को 100 क्विंटल तक की फसल बिक्री के लिए जमीन और फसल संबंधी विवरण देने की जरुरत नहीं होगी. ई-खरीद की प्रक्रिया को बढ़ावा देने के लिए सरकार ने यह फैसला किया है.
पिछले दो दशकों में भारतीय कृषि बड़े बदलावों से गुजरी है. अब कृषि कार्यों में मशीनरी और तकनीक का इस्तेमाल आम बात है. स्मार्ट फ़ोन आने के बाद इस दिशा में और भी तेज प्रगति हुई है. इसकी अहमियत को देखते हुए सरकारें ई-खरीद जैसी व्यवस्था कर रही हैं. इसके साथ ही वार्षिक बजट में कृषि तकनीक के विकास के लिए एक अलग धनराशि जारी की जाती है. इस श्रृंखला में उत्तर प्रदेश सरकार ने भी छोटे और सीमांत किसानों के हित में ई-खरीद की व्यवस्था को सुगम बनाया है.
गौरतलब है कि इस योजना के तहत अपने कृषि उत्पाद बेचने के लिए राज्य के किसानों को सत्यापन की प्रक्रिया से गुजरना पड़ता है. इसके लिए उन्हें अपनी फसल क्षेत्र और खेत की पैमाइश संबंधी सभी मापदंडों पर परखा जाता है. छोटे किसानों से 25 क्विंटल और सीमांत किसानों से 50 क्विंटल से अधिक की खरीद पर उनके दस्तावेजों के सत्यापन का प्रावधान है. इस व्यवस्था के चलते किसानों को खासी दिक्कतों का सामना करना होता है. अधिक पैदावार की दशा में वो इस योजना के तहत अपने उत्पाद नहीं बेच पाते हैं. इसके अलावा सत्यापन प्रक्रिया भी काफी जटिल और पेचीदा है.
राज्य में गेहूँ और धान की सबसे अधिक पैदावार होती है. हालाँकि गन्ना को इस श्रेणी में शामिल नहीं किया गया है. राज्य कृषि विभाग का कहना है कि अब तक किए गए सत्यापन से पता चला है कि बड़ी संख्या में किसान धान के अलावा अन्य फसलों को भी उपजा रहे हैं. उत्तर प्रदेश में ई-खरीद के अंतर्गत धान की खरीद की जाती है. इसके लिए किसानों को कुल भूमि और धान के कुल बुवाई रकबे का विवरण भरना होता है.
मौजूदा फसल सीजन में ई-खरीद में काफी कमी देखने को मिली है. इसके पीछे किसानों का निजी व्यापारियों को फसल बिक्री, मिलर्स के आंदोलन और तकनीकी खामियों की वजह बताई जा रही है. नतीजतन पिछले साल की तुलना में कुल खरीद में 20-25 फीसदी की गिरावट होने की संभावना है.
रोहिताश चौधरी, कृषि जागरण
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