केन्द्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री राधा मोहन सिंह ने कहा कि कृषि वैज्ञानिकों ने हरित क्रान्ति और उसके पश्चात अनुसंधान एवं प्रौद्योगिकी विकास करके भारत में कृषि के विकास में उल्लेखनीय भूमिका निभाई है। कृषि मंत्री ने यह बात पूसा में आयोजित भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (भाकृअनुप) के89वें स्थापना दिवस एवं वार्षिक पुरस्कार वितरण समारोह में कही।
कृषि मंत्री ने कहा कि कृषि क्षेत्र में सन् 1951 की तुलना में देश में खाद्यान्न के उत्पादन में 5 गुणा, मत्स्य उत्पादन में 14.3 गुणा, दुग्ध उत्पादन में 9.6 गुणा और अण्डा उत्पादन में 47.5 गुणा वृद्धि हुई है। बागवानी सेक्टर में, 1991-92 की तुलना में फल तथा सब्जी उत्पादन में तीन गुणा वृद्धि हासिल की गई है। इस प्रकार के विकास का राष्ट्र की खाद्य एवं पोषणिक सुरक्षा पर सीधा प्रभाव पडा है। वैज्ञानिकों द्वारा उच्चतर कृषि शिक्षा में उत्कृष्टता को आगे बढाने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई गई है। हमारे वैज्ञानिक विज्ञान व प्रौद्योगिकी विकास के इनोवेटिव क्षेत्रों में संलग्न हैं और उन्हें अपने विषय क्षेत्रों में अंतर्राष्ट़ीय स्तर पर सराहा जाता है।
पुरस्कार वितरण समारोह में 19 विभिन्न श्रेणियों में उत्कृष्टता के लिए 122 पुरस्कार प्रदान किए गये जिसमें 3 संस्थान, 2 AICRPs, 12 कृषि विज्ञान केन्द्र, 19 किसान, 30 महिलाओं सहित 80 वैज्ञानिक शामिल हैं। कृषि मंत्री ने उल्लेखनीय उपलब्धियों और योगदान के लिए तीन Best Ranked Universities तथा राजभाषा पुरस्कार पाने वालों तथा अन्य पुरस्कार विजेताओं को बधाई दी। इस मौके पर कृषि व किसान कल्याण तथा संसदीय कार्य राज्य मंत्री एस.एस. अहलूवालिया,कृषि व किसान कल्याण तथा पंचायती राज राज्य मंत्री परशोत्तम रूपाला, कृषि व किसान कल्याण राज्य मंत्री सुदर्शन भगत, डेयर के सचिव एवं आईसीएआर के महानिदेशक डॉ. त्रिलोचन महापात्र और कृषि विश्वविद्यालयों के कुलपति मौजूद थे।
कृषि मंत्री ने कहा कि भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद वह अग्रणी संगठन है जिसके द्वारा इस देश में हरित क्रान्ति का सूत्रपात किया गया जिससे आज राष्ट्र खाद्यान्न की कमी वाली स्थिति से निकलकर खाद्यान्न में आत्मनिर्भर और अब सरप्लस खाद्यान्न की स्थिति तक आने में सफल रहा है।
उन्होंने बताया कि कृषि एवं सम्बद्ध सेक्टर की ग्रास वैल्यू एडिड (जिसे पहले जीडीपी के नाम से जाना जाता था) में 18 प्रतिशत की हिस्सेदारी है। देश में लगभग 274 मिलियन टन खाद्यान्न का रिकार्ड उत्पादन हुआ है जो कि प्रौद्योगिकियों, गुणवत्ता बीजों की उपलब्धता और किसानों को सुलभ कराई जा रहीं सम्बद्ध सेवाओं के फलस्वरूप संभव हो पाया है। इस उपलब्धि में जहां एक ओर आईसीएआर के संस्थानों और राज्य कृषि विश्वविद्यालयों के सकारात्मक प्रयास हैं वहीं दूसरी ओर किसानों की कडी मेहनत है।
कृषि मंत्री ने कहा कि कृषि क्षेत्र को महत्व देते हुए सरकार ने कृषि के टिकाऊ विकास के लिए अनेक कदम उठाये हैं। कृषि में सुधार लाने और किसान कल्याण को बढाने के लिए अनेक उपायों का प्रस्ताव है जैसे कि वर्ष 2018 तक 2.85 मिलियन हेक्टेयर को सिंचित क्षेत्र के अंतर्गत लाना, ग्राम पंचायतों और नगर पालिकाओं को रूपये 2,87,000 करोड (42.1 बिलियन यूएस डॉलर) की सहायता प्रदान करना और सभी गांवों में बिजली पहुंचाना शामिल है।
उन्होंने इस मौके पर जानकारी दी कि सरकार द्वारा कृषि उत्पादन में सुधार लाने में महत्वपूर्ण दो प्रमुख कारकों (मृदा एवं जल) में समाधान हेतु पहले ही कदम उठाये जा चुके हैं। मृदा स्वास्थ्य कार्ड स्कीम और जैविक खेती स्कीम ‘परम्परागत कृषि विकास योजना’ के माध्यम से टिकाऊ आधार पर मृदा की उर्वरता में सुधार लाने के लिए कदम उठाये गये हैं। अन्य कदमों में शामिल है – प्रधानमंत्री ग्राम सिंचाई योजना के माध्यम से सिंचाई तक पहुंच में सुधार लाना, प्रति बूंद – अधिक फसल द्वारा जल की प्रभावशीलता को बढाना, तथा किसानों की आय को बढाने के लिए एकीकृत राष्ट्रीय कृषि बाजार। कृषि विकास के लिए जलवायु प्रतिकूलताओं से किसानों के जोखिम को कवर करने में ‘प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना’ को एक प्रमुख लैण्डमार्क पॉलिसी के रूप में व्यापक मान्यता मिली है। उन्होंने इस बात पर खुशी है जताई कि भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के संस्थानों, कृषि विश्वविद्यालयों और विभिन्न विकास विभागों द्वारा भारत सरकार की सॉयल हैल्थ कार्ड स्कीम को अत्यंत सफल बनाया गया है। कृषि मंत्री ने उम्मीद जताई कि सरकारी योजनाओं की सफलता के लिए युवा अनुसंधानकर्मी विशेष पहल करेंगे।
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