इरादा मजबूत हो और खुद पर यकीन हो, तो हर सपना मुमकिन है। दिवालिया होने के बाद कुछ ऐसा ही कर दिखाया देश के 52वें सबसे अमीर शख्स ने।
इनका नाम है लक्ष्मण दास मित्तल, जो ट्रैक्टर बनाने वाली कंपनी सोनालिका ग्रुप के चेयरमैन हैं और आज उनकी नेटवर्थ 9 हजार करोड़ से ऊपर की है। मगर 86 साल के लक्ष्मण दास मित्तल आज जिस मुकाम पर पहुंचे हैं, उसके पीछे जिंदगी के कई बड़े संघर्ष छुपे हैं। जो हर किसी के लिए प्रेरणा हैं।
ऐसे कूदे बिजनेस में
आज 9 हजार करोड़ से ऊपर की नेटवर्थ वाले लक्ष्मण दास मित्तल का बचपन बड़ी ही मुश्किलों में बीता। ये अलग बात है कि मित्तल पढ़ने में शुरू से ही होशियार थे। स्कूल में हमेशा अव्वल आते थे। मगर उनके नाम में तो कुछ और ही चलता था। वो खुद के दम पर कुछ करना चाहते थे। इसीलिए 1962 में पंजाब के होशियारपुर जिले के इस नौजवान ने अपने बीमा क्षेत्र की नौकरी छोड़कर स्थानीय लोहारों की मदद से थ्रेसर बनाने लगा। मगर बड़ा बनने की ये कोशिश कामयाब नहीं हुई और साल भर के भीतर ही थ्रेसर बनाने का उनका ये धंधा चौपट हो गया। मजबूरन लक्ष्मीदास मित्तल को खुद को दिवालिया घोषित करना पड़ा। इसके बाद भी उनके हौसले पस्त नहीं हुए।
किसानों ने कहा तब ट्रैक्टर बनाना शुरू किया
कुछ साल बाद लक्ष्मीदास मित्तल फिर से एक सोच को लेकर आए और उस पर काम शुरू कर दिया। इस बार उनकी मेहनत को किस्मत का भी साथ मिला और सोनालिका ग्रुप की नींव पड़ी, जो आज भारत की तीसरी बड़ी ट्रैक्टर बनाने वाली कंपनी है। इसके बाद उन्होंने पंजाब एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी में काम करने वाले अपने एक दोस्त की मदद ली। दोस्त ने मित्तल की थ्रेशर मशीन में कमियां ढूंढी। फिर उसमें सुधार करके नया थ्रेशर बनाए गए। अबकी बार डिजाइन सही थी। मशीनें खूब लोकप्रिय हुईं। 10 साल के भीतर ही सोनालिका थ्रेशर की अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर पहचान बन चुकी थी।
थ्रेसर की कामयाबी के बाद लोगों का भरोसा बढ़ गया। किसान मित्तल से ट्रैक्टर बनाने को कहने लगे। उन्हें लगता था कि मित्तल ट्रैक्टर बनाएंगे, तो वे भी ऊंची गुणवत्ता के होंगे। मित्तल परिवार ने 1994 में शुरुआत की। आज सोनालिका ग्रुप ग्रुप की नेटवर्थ 9,200 करोड़ रुपए के बराबर है। सोनालिका ग्रुप 74 देशों में ट्रैक्टर एक्सपोर्ट करता है। पांच देशों में इसके प्लांट हैं और ग्रुप में 7 हजार कर्मचारी हैं।
पिता मंडी में थे डीलर
सोनालिका ग्रुप के चेयरमैन लक्ष्मीदास मित्तल के पिता मंडी में डीलर थे। इस काम से जो कमाई होती थी, उसी से पूरा घर चलता था। मगर पिता शिक्षा की अहमियत समझते थे, इसलिए उन्होंने बेटे को हमेशा पढ़ाई के लिए प्रेरित किया। मगर मित्तल ने कुछ कर गुजरने की ललक तब पैदा हुई, जब उन्होंने बिजनेस में घाटा होने पर अपने पिता को रोते देखा। इस घटना ने लक्ष्मीदास मित्तल को बुरी तरह हिला दिया। इसके बाद ही उन्होंने फैसला किया वो अपने मां-बाप को दुनिया की सारी खुशियां देंगे। इसके बाद जो हुआ, वो सबके सामने है।
Share your comments