पिछले 30 साल के दौरान भारत में 59,000 किसानों ने जलवायु परिवर्तन की वजह से आत्महत्या की. इससे भी चिंताजनक बात यह है कि बढ़ते ग्लोबल तापमान के कारण देशभर में किसानों की आत्महत्या में बड़ा इजाफा हो सकता है. ये जानकारियां अमेरिका की कैलिफॉर्निया यूनिवर्सिटी-बर्कले के रिसर्च से सामने आई हैं. शोधकर्ताओं के मुताबिक फसल बर्बाद होने के कारण किसान गरीबी के दलदल में जा रहे हैं, जिससे निकलने के लिए उनके पास रास्ता नहीं बच जाता है. शोधकर्ताओं ने आत्महत्या के आंकड़ों और फसलों की बर्बादी के मामले में इंडियन नेशनल क्राइम रिकॉर्ड्स ब्यूरो समेत अन्य सरकारी आंकड़ों का उपयोग किया है.
रिसर्च के अनुसार, फसलों के मौसम में एक दिन के दौरान तापमान के 20 डिग्री सेल्सियस से ऊपर होने की स्थिति में उसमें महज एक डिग्री के इजाफे से देशभर में अनुमानित रूप से 65 किसान आत्महत्या कर लेते हैं. अगर एक दिन के दौरान तापमान में 5 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि हो जाए तो आत्महत्या करने वालों की संख्या 5 गुना अधिक हो जाती है.
यूसी बर्कले के शोधकर्ताओं में एक तमा कार्लेटन ने बताया कि अगर सरकारी स्तर पर उचित नीतियां अपनाई जाएं तो हजारों किसानों की जिंदगी बचाई जा सकती है. इस क्रम में किसानों के आर्थिक जोखिम को कम करना जरूरी हो गया है. फसल बीमा योजना इस प्रक्रिया का एक अहम हिस्सा है. भारत सरकार ने 1.3 अरब डॉलर की फसल बीमा योजना बनाई है, जिसका मकसद किसानों पर फसलों की बर्बादी का जोखिम कम करना है, ताकि आत्महत्या की बढ़ती दर को रोका जा सके.
रिसर्च के अनुसार तापमान बढ़ने का असर वैसे मौसम में नहीं देखने को मिलता है, जब प्रमुख फसलें नहीं लगी होती हैं. बढ़ते तापमान और कम बारिश के आत्महत्या से सीधे संबंध हैं, क्योंकि उनकी वजह से प्रमुख फसलें बर्बाद हो जाती हैं.
1980 से स्यूसाइड रेट दोगुनी हो गई है. इस तरह हर साल 130,000 से अधिक लोग आत्महत्या कर रहे हैं. रिसर्च के अनुसार, आत्महत्या करने वालों की बढ़ रही इस संख्या में 7 फीसदी का योगदान जलवायु परिवर्तन का है.
रिसर्च के अनुसार, 75 फीसदी से अधिक आत्महत्याएं विकासशील देशों में हो रही हैं. इनमें लगभग 20 फीसदी लोग भारत के होते हैं.
2050 तक तीन डिग्री सेल्सियस बढ़ेगा तापमान
स्टडी के मुताबिक 2050 तक तापमान में तीन डिग्री सेल्सियस का इजाफा हो सकता है. इससे आत्महत्या करने वालों की संख्या और बढ़ सकती है.
आधी आबादी कृषि पर आश्रित
देश की आधी कामकाजी आबादी कृषि पर आश्रित है और कृषि काफी हद तक बारिश पर निर्भर है. भारत की एक-तिहाई कामकाजी आबादी इंटरनेशनल पॉवर्टी लाइन से कम कमाती है.
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