Pesticides Banned in UP: बासमती चावल का निर्यात भारत के लिए एक महत्वपूर्ण आर्थिक गतिविधि है, विशेष रूप से उत्तर प्रदेश जैसे राज्य के लिए, जहां बासमती चावल का उत्पादन बड़े पैमाने पर किया जाता है. हालांकि, अंतरराष्ट्रीय बाजारों में बासमती चावल की गुणवत्ता और निर्यात के स्तर को बनाए रखने के लिए कुछ मानकों का पालन करना अनिवार्य होता है. पिछले कुछ वर्षों में बासमती चावल के निर्यात में गिरावट आई है, जिसका मुख्य कारण चावल में कीटनाशक अवशेषों का पाया जाना है. इसके समाधान के रूप में उत्तर प्रदेश सरकार ने दस प्रमुख कीटनाशकों के प्रयोग पर रोक लगाई है, ताकि बासमती चावल को अंतरराष्ट्रीय मानकों के अनुरूप बनाया जा सके और उसका निर्यात बढ़ सके.
निर्यात में गिरावट का कारण
यूरोपीय संघ (EU) और अन्य प्रमुख निर्यात बाजारों ने बासमती चावल में पाए जाने वाले कीटनाशक अवशेषों के लिए सख्त नियम बनाए हैं. इनमें से एक प्रमुख रसायन ट्राईसाइक्लाजोल है, जो फफूंदनाशक के रूप में इस्तेमाल किया जाता है. यूरोपीय संघ ने बासमती चावल में ट्राईसाइक्लाजोल का अधिकतम कीटनाशी अवशेष स्तर (MRL) बेहद कम (0.01 ppm) रखा है. लेकिन किसानों द्वारा इसका अत्यधिक उपयोग किए जाने के कारण MRL से अधिक अवशेष चावल में पाए जा रहे हैं. इसका परिणाम यह हुआ है कि यूरोप, अमेरिका और खाड़ी देशों में बासमती चावल के निर्यात में 15 प्रतिशत तक की कमी आई है.
इन कीटनाशकों पर लगा प्रतिबंध
उत्तर प्रदेश सरकार ने राज्य के 30 जिलों में जिन 10 प्रमुख कीटनाशकों के प्रयोग पर प्रतिबंध लगाया है, वे इस प्रकार हैं:
- ट्राईसाइक्लाजोल
- बुप्रोफेजिन
- एसीफेट
- क्लोरपाइरीफास
- हेक्साकोनोजोल
- प्रोपिकोनाजोल
- थायोमेथाक्साम
- प्रोफेनोफास
- इमिडाक्लोप्रिड
- काबेंडाजिम
इन सभी कीटनाशकों के की बिक्री को पूरी तरह से प्रतिबंधित कर दिया गया है. इन रसायनों का उपयोग बासमती चावल के उत्पादन में कीटों और फफूंद से बचाव के लिए किया जाता है, लेकिन इनके अत्यधिक उपयोग से चावल की गुणवत्ता प्रभावित हो रही थी, जिससे निर्यात में दिक्कतें आ रही थीं.
सरकार की भूमिका और कदम
उत्तर प्रदेश सरकार ने एपीडा (Agriculture and Processed Food Products Export Development Authority) के निर्देशों का पालन करते हुए यह कदम उठाया है. एपीडा ने कृषि विभाग को इस समस्या के बारे में सूचित किया और सुझाव दिया कि कीटनाशकों के उपयोग को नियंत्रित किया जाए, ताकि बासमती चावल की गुणवत्ता अंतरराष्ट्रीय मानकों के अनुरूप बनाई जा सके. इसके परिणामस्वरूप, सरकार ने जिन 30 जिलों में बासमती चावल का प्रमुख उत्पादन होता है, वहां इन प्रतिबंधों को लागू किया है.
निर्यातकों और किसानों पर प्रभाव
इस निर्णय का सबसे बड़ा प्रभाव किसानों और निर्यातकों पर पड़ेगा. किसानों को अपनी फसलों की सुरक्षा के लिए अब वैकल्पिक तरीकों या जैविक कीटनाशकों का उपयोग करना होगा. सरकार की योजना है कि किसानों को नई तकनीकों और जैविक कृषि उत्पादों के बारे में जागरूक किया जाए ताकि वे इन प्रतिबंधों का पालन कर सकें और बासमती चावल की गुणवत्ता में सुधार हो सके. निर्यातक भी इस प्रतिबंध से लाभान्वित होंगे, क्योंकि इससे उनकी निर्यात सामग्री का स्तर बढ़ेगा और अंतरराष्ट्रीय बाजारों में भारत के बासमती चावल की प्रतिस्पर्धा क्षमता बेहतर होगी.
गौरतलब है कि उत्तर प्रदेश सरकार का यह कदम बासमती चावल के निर्यात को बढ़ाने के लिए एक सकारात्मक दिशा में उठाया गया है. यह प्रतिबंध न केवल चावल की गुणवत्ता को सुधारने में मदद करेगा, बल्कि किसानों और निर्यातकों को भी नई चुनौतियों का सामना करने के लिए प्रेरित करेगा. किसानों के लिए यह आवश्यक होगा कि वे नए और सुरक्षित कीटनाशक विकल्पों का उपयोग करें, जिससे न केवल उनकी फसल की गुणवत्ता सुधरेगी, बल्कि निर्यात के अवसर भी बढ़ेंगे.
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