किसानों के आत्महत्या करने के मामलों में 2016 में 10 फीसदी की गिरावट देखने को मिली है। हालांकि अब भी देश में हर एक घंटे के भीतर एक किसान मौत को गले लगा लेता है। अब भी महाराष्ट्र पूरे देश में किसानों की आत्महत्या के मामले में टॉप पर है। कृषि मंत्रालय की ओर से मंगलवार को लोकसभा में यह जानकारी दी गई। डेटा के मुताबिक 2016 में 11,370 किसानों ने जान दे दी, जबकि 2015 में यह आंकड़ा 12,601 किसानों ने आत्महत्या कर ली। इस तरह एक साल के भीतर किसानों के आत्महत्या करने के मामलों में 10 फीसदी तक की कमी आई है।
कृषि के जानकारों का कहना है कि 2016 में मॉनसून बेहतर रहने के चलते खरीफ की फसल अच्छी थी। यही वजह रही कि किसानों के आत्महत्या करने के मामलों में गिरावट देखने को मिली। इससे उलट 2014 के बाद 2015 में भी लगातार दूसरे साल किसानों को सूखे का संकट झेलना पड़ा था। इस साल मॉनसून सीजन में जून से लेकर सितंबर तक बारिश में 10 फीसदी या कुछ इलाकों में इससे भी ज्यादा की कमी देखने को मिली।
हालांकि आंकड़े बताते हैं कि रेकॉर्ड अन्न उत्पादन का कृषि मजदूरों के आत्महत्या के मामलों पर कोई असर नहीं पड़ा है। आंकड़ों के मुताबिक 2015 में 4,595 कृषि मजदूरों ने तनाव के चलते मौत को गले लगा लिया, जबकि 2016 में यह आंकड़ा बढ़कर 5,019 हो गया। हालांकि सूइसाइड के मामलों में कुल गिरावट किसानों के आत्महत्या में कमी के चलते आई है। 2015 में कुल 8,007 किसानों ने अपनी जान दे दी, जबकि 2016 में यह आंकड़ा कम होकर 6,351 हो गया। मंत्रालय के मुताबिक नैशनल क्राइम रेकॉर्ड्स ब्यूरो की ओर से ये आंकड़े दिए गए हैं। ब्यूरो ने इन आंकड़ों को अभी सार्वजनिक रूप से जारी नहीं किया है।
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