खेती-बाड़ी के लिए आज के जमाने में ट्रैक्टर उतना ही जरूरी है जितना पुराने जमाने में बैल. लेकिन जमीन की जोत जैसे-जैसे छोटी होती जा रही है, वैसे-वैसे हर किसानों के लिए बड़े और महंगे ट्रैक्टर खरीदना बस से बाहर होता जा रहा है. इस समस्या से निदान के लिए सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनी नेशनल रिसर्च डेवलपमेंट कारपोरेशन (एनआरडीसी) ने पहल कर 10 हार्स पावर (एचपी) का ट्रैक्टर विकसित करने में सफलता पाई है.
अच्छी बात है कि इसकी कीमत आम ट्रैक्टर के मुकाबले काफी कम है. इस समय इसकी कीमत करीब सवा दो लाख रुपये प्रति ट्रैक्टर है, लेकिन यदि ज्यादा संख्या में इसका उत्पादन हो तो कीमत पौने दो लाख रुपये के करीब पड़ेगी. नेशनल रिसर्च डेवलपमेंट कारपोरेशन (एनआरडीसी) के वैज्ञानिक एवं अध्यक्ष एवं प्रबंध निदेशक डॉ. एच. पुरुषोत्तम से बातचीत के मुख्य अंश :
प्रश्न- एनआरडीसी की पहचान प्रयोगशाला में हुए अनुसंधान को बाजार तक पहुंचाने के लिए है. इस समय आप किस परियोजना पर काम कर रहे हैं?
उत्तर- हम एक समय में कई परियोजनाओं पर काम करते रहते हैं. यह एक सतत प्रक्रिया है. इस समय की बात करें तो अभी हम 10 एचपी केछोटे ट्रैक्टर को बाजार में लाने की प्रक्रिया में है. इस ट्रैक्टर का नाम हमने कृषि शक्ति दिया है. इस पर जिस सोच के साथ काम चल रहा है, वैसा ही हो तो हम किसानों को दो लाख रुपये के अंदर एक ट्रैक्टर उपलब्ध करा सकेंगे.
प्रश्न- यह तो छोटा ट्रैक्टर होगा, किसानों के काम कर सकेगा?
उत्तर- आप देखिए, देश में जैसे-जैसे आबादी बढ़ती जा रही है, प्रति व्यक्ति खेती की जमीन घटती जा रही है. औसत जोत का आकार तो चार हेक्टेयर है, लेकिन बिहार, पश्चिम बंगाल एवं कुछ अन्य राज्यों की बात की जाए तो वहां जोत और छोटी हो गई है. छोटी जोत वाले किसानों के लिए 30, 40 या 50 एचपी के ट्रैक्टर खरीदना बस के बाहर है. यदि कहीं से पैसे का जुगाड़ कर यह ट्रैक्टर खरीद भी लिया तो उसका पर्याप्त उपयोग नहीं हो पाएगा.
इसे ही ध्यान में रख कर हमारी एक प्रयोगशाला ने एक छोटे, कंपैक्ट और आसानी से उपयोग हो सकने वाले ट्रैक्टर को विकसित किया है. इस तरह के प्रोटोटाइप ट्रैक्टर का प्रयोगशाला स्तर पर परीक्षण हो चुका है. यही नहीं, इसके लिए सेंट्रल फार्म मशीनरी ट्रेनिंग एंड टेस्टिंग इंस्टीच्यूट, बूंदी से सीएमवीआर सर्टिफिकेट भी प्राप्त कर लिया गया है. यह छोटा ट्रैक्टर तो है ही, इसका रख-रखाव भी बड़े ट्रैक्टर के मुकाबले काफी सस्ता है. यह किसानों का काम उसी तरह करेगा जैसे कि कोई बड़ा ट्रैक्टर करता है.
क्या कीमत होगी इस ट्रैक्टर की और कब तक किसानों को उपलब्ध होगा?
उत्तर- इस ट्रैक्टर का प्रोटोटाइप तैयार है, उसके आधार पर मैं कह रहा हूं कि इस समय इसकी कीमत 2.20 लाख रुपये पड़ी है. लेकिन यदि कोई कंपनी हर साल 2,000 ट्रैक्टरों के निर्माण के लिए तैयारी करता है, तो इसकी कीमत घट कर एक लाख 80 हजार रुपये से भी कम रह जाएगी. ऐसा इसलिए, क्योंकि संख्या बढ़ने पर स्पेयर पार्ट्स की कीमत में उल्लेखनीय कमी आ जाती है. जहां तक इसके किसानों के पास पहुंचने की बात है, तो इसका भी इंतजाम हो चुका है. हमने हावड़ा की कंपनी मेसर्स सिंघा कंपोनेंट्स और हैदराबाद की कंपनी मेसर्स केएन बायोसाइंसेज प्राइवेट लिमिटेड के साथ तकनीक हस्तांतरण का समझौता किया है. हमारी उम्मीद है कि इसी वित्तीय वर्ष में यह ट्रैक्टर किसानाें के पास पहुंच जाएगा.
प्रश्न- एनआरडीसी के सोलर पावर ट्री की इन दिनों काफी चर्चा है. इस बारे में कुछ बताएं?
उत्तर- हमारे वैज्ञानिकों ने तकनीक और कला के मिश्रण (फ्यूजन) से एक ऐसा सोलर ट्री तैयार किया है जिसमें परंपरागत सोलर पावर प्लांट के मुकाबले 100 गुना ज्यादा बिजली पैदा की जा सकती है. यही नहीं, इसमें परंपरागत प्लांट के मुकाबले महज एक फीसदी जमीन की आवश्यकता होती है. आप तो जान ही रहे होंगे कि सोलर पावर प्लांट लगाने में सबसे ज्यादा जरूरत जमीन की होती है. पर हमने जो सौर वृक्ष बनाया है, उसमें धातु का एक वृक्ष तैयार किया है जिसकी टहनियों पर फोटो वोल्टिक सेल लगा होता है, जिससे बिजली पैदा होती है.
यदि एक मध्यवर्गीय परिवार की बात की जाए तो तीन किलोवाट का सोलर पावर ट्री पर्याप्त होगा. इसे महज चार वर्ग फुट जमीन पर लगाया जा सकता है. यह वृक्ष इतना मजबूत होता है कि यह 200 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से चलने वाले तूफान को भी झेल जाता है. यदि किसी परिवार की ऊर्जा की आवश्यकता बढ़ती है तो इसे 12 किलोवाट क्षमता तक भी बढ़ाया जा सकता है. यदि छोटा परिवार है तो एक किलोवाट का सोलर ट्री ही उसकी आवश्यकता के लिए पर्याप्त है.
एक किलोवाट के सोलर पावर ट्री को लगाने का खर्च करीब 85,000 रुपये पड़ता है. यह सोलर पावर ट्री वाणिज्यिक संगठनों के लिए मुफीद रहेगा, क्योंकि उन्हें औसतन 7-8 रुपये प्रति यूनिट पर बिजली मिलती है, जबकि इससे 3.5 रुपये प्रति यूनिट पर ही बिजली मिल जाएगी. यदि उनका उपयोग कम है तो फालतू बिजली को ग्रिड में डाल कर उससे पैसे भी कमा सकते हैं.
प्रश्न- देश के कई हिस्सों में पानी की समस्या विकराल होती जा रही है. पानी के स्टोरेज की समस्या के लिए आप एक परियोजना पर काम कर रहे थे?
उत्तर- हमारी एक प्रयोगशाला में सस्ते और ड्यूरेबल वाटर टैंक पर काम हो रहा है, जिसे फ्लोवेबल सीमेंट मोर्टार (एफसीएम) के उपयोग से बनाया गया है. इसे फेरोसीमेंट वाटर टैंक भी कहते हैं. इसे 25 से 30 मिलीमीटर मोटे फेरोसीमेंट प्लेट से बनाया जाता है. इसलिए यह कंक्रीट, प्लास्टिक या किसी धातु से बने वाटर टैंक के मुकाबले हल्का होता है. लेकिन मजबूती में यह स्टील प्लेट से बने वाटर टैंक जितना मजबूत होता है. यह फेरोसीमेंट का बना है, इसलिए इसमें जंग लगने का भी खतरा नहीं है. यह पूरी तरह से वाटरप्रूफ है. इसका उपयोग घरों, स्कूल या कल-कारखाने कहीं भी किया जा सकता है. अच्छी बात यह है कि इसे कहीं भी तैयार किया जा सकता है और इसे बनाने में औद्योगिक अवशिष्ट पदार्थों का उपयोग होता है.
साभार : अमर उजाला
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