भगत सिंह नाम सुनते ही हमारे दिल में देशभक्ति का ज़ज्बा जागने लगता है. भगत सिंह का जन्म 27 सितंबर 1907 को लायलपुर के बंगा गांव में हुआ था, जो कि अब पाकिस्तान का हिस्सा है. जब उनका जन्म हुआ तब उनके पिता किशन सिंह, चाचा अजित और स्वरण सिंह जेल में ही थे. खून में देशभक्ति की लहर बचपन से ही दौड़ने लगी.
भगत सिंह करतार सिंह सराभा और लाला लाजपत राय से अत्याधिक प्रभावित थे. उन्होनें कई बड़े आंदोलनों में हिस्सा लिया. उन्हें सबसे प्रभावशाली क्रांतिकारी माना जाता था. जब उनकी उम्र महज 23 साल की थी उन्हें अंग्रेजों ने फांसी पर लटका दिया. उनकी देशभक्ति का यह ज़ज्बा आज भी हमारे रौंकटे खड़े कर देता है.
भगत सिंह का बचपन
भगत सिंह का देशभक्ति के प्रति प्रेम बचपन से ही कूट-कूट के भरा हुआ था. आखिर ऐसा हो भी क्यों ना, परिवार में पिता से लेकर चाचा तक सभी देश की आज़ादी के लिए अपना जीवन समर्पित कर रहे थे. उन्होंने अपनी 5वीं तक की पढ़ाई अपने गांव में ही की. जिसके बाद भगत सिंह का दाखिला दयानंद एंग्लो वैदिक हाई स्कूल, लाहौर में करवाया गया. बहुत छोटी सी आयु में भगत सिंह ने महात्मा गांधी के असहयोग आंदोलन में हिस्सा लिया, और अपने देशभक्ति के इसी जब्जे से अंग्रेजों को भारत से भगाने के लिए जुड़ गए.
जलियांवाला कांड
अंग्रेजों को देश से भगाने के लिए कई प्रयास किए जा रहे थे. अंग्रेजों का भारतियों पर अत्याचार रूकने का नाम ही नहीं ले रहा था और फिर शुरू हुआ जलियांवाला बाग हत्याकांड. बात है 13 अप्रैल सन् 1919 की, जब सिख समुदाय के लोग बैसाखी के आयोजन के लिए एकत्रित हुए. लोग शांतिपूर्वक अंग्रेजों के खिलाफ अपना विरोध प्रदर्शन प्रकट कर रहे थे. अंग्रेजों ने निहत्थे भारतियों पर गोलीबारी शुरू कर दी. जिसके बाद भगत सिंह के जीवन पर इसका बहुत गहरा प्रभाव पड़ा. उनके भीतर अंग्रेजों के खिलाफ गुस्सा और भड़कने लगा. उन्होंने कई क्रांतिकारी आंदोलनों में अंग्रेजों के दांत खट्टे कर दिए.
अंग्रेज़ समझ गए थे कि भगत सिंह रूकने वाले नहीं हैं. जिसके बाद लाहौर षड़यंत्र मामले में भगत सिंह के साथ उनके साथी सुखदेव और राजगुरू को फांसी की सजा सुनाई गई. 23 मार्च, 1931 को भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरू को एक साथ फांसी पर लटका दिया. वह हंसते-हंसते देश के लिए अपने प्राण न्यौछावर कर गए.
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भगत सिंह के नारे
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'इंकलाब जिंदाबाद'
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“इस कदर वाकिफ है मेरी कलम मेरे जज़्बातों से,
अगर मैं इश्क़ लिखना भी चाहूँ तो इंक़लाब लिखा जाता है.” -
“वे मुझे मार सकते हैं, लेकिन वे मेरे विचारों को नहीं मार सकते. वे मेरे शरीर को कुचल सकते हैं,
लेकिन वे मेरी आत्मा को कुचल नहीं पाएंगे" -
''आज जो मै आगाज लिख रहा हूं, उसका अंजाम कल आएगा.
मेरे खून का एक-एक कतरा कभी तो इंकलाब लाएगा.'' -
"मैं ऐसा पागल हूं कि जेल में भी आजाद हूं.''
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''मेरा धर्म मेरे देश की सेवा करना है.''
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